ब्लॉग: दावोस के समझौते सच्चाई में बदलें

By Amitabh Shrivastava | Published: January 20, 2024 10:42 AM2024-01-20T10:42:06+5:302024-01-20T10:42:48+5:30

बीते साल निवेश की घोषणा में भी अनेक उद्योग ऐसे थे, जो भारत में पहले से अस्तित्व में थे। वह अपना विस्तार, या यह पुरानी घोषणाओं को दोबारा कर रहे थे।

Davos agreements turn into reality | ब्लॉग: दावोस के समझौते सच्चाई में बदलें

ब्लॉग: दावोस के समझौते सच्चाई में बदलें

महाराष्ट्र में घोषणाओं के ऊपर घोषणाएं करने का सिलसिला थम नहीं पा रहा, इस बात में कोई शक नहीं है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बहुत कम समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक अच्छी केमिस्ट्री तैयार कर ली है। जब वह कहीं भी प्रधानमंत्री की उपस्थिति में भाषण देते हैं और उनकी तारीफ करते हैं तो दोनों के बीच एक समझ की झलक मिलती है।

यही वजह थी कि शुक्रवार को जब उन्होंने सोलापुर में दावोस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की चर्चा का उल्लेख किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में उसका संदर्भ लिया। मुख्यमंत्री समेत राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना तक कर डाली। किंतु मंच, सम्मेलन, भाषण और चर्चाओं से अधिक अब राज्य में निवेश एक वास्तविकता बनने की आवश्यकता है। हाल के दिनों में इतनी घोषणाएं हो चुकी हैं कि अब किसी नई बात पर आसानी से भरोसा ही नहीं होता है।

महाराष्ट्र सरकार प्रत्यक्ष में चाहे कितने भी दावे करे, मगर धरातल पर निवेश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। छोटे-मोटे कारखाने यदि छोड़ दिए जाएं तो किसी बड़ी कंपनी की कोई बड़ी परियोजना महाराष्ट्र की धरती पर आरंभ होती नहीं दिखाई दे रही । वहीं दूसरी ओर पड़ोसी राज्य तेलंगाना हो या गुजरात, हर साल दोनों स्थानों पर निवेश की घोषणा प्रत्यक्ष में बदल जाती है।

राज्य में लंबे समय तक विश्व की सबसे प्रतिष्ठित मोबाइल कंपनी एप्पल के महाराष्ट्र में बड़े निवेश की चर्चाएं तो अनेक बार हुईं, लेकिन जमीन पर कुछ भी नहीं दिखाई देता है। अलबत्ता कंपनी ने अपना एक स्टोर मुंबई में जरूर खोला है, जो उसकी अपनी वैश्विक उपस्थिति की एक आवश्यकता है।  इसी प्रकार अमेरिकी कार निर्माता टेस्ला से अनेक दौर की बातचीत हो चुकी है. उसे भी लेकर राज्य में सपना दिखाया जा रहा है।

परंतु उसका कोई ठौर-ठिकाना अभी तक निश्चित नहीं हुआ है. इससे पहले सेमीकंडक्टर की एक बड़ी परियोजना गुजरात में आरंभ हो गई, जिसकी आशा महाराष्ट्र ने लगाई थी।इलेक्ट्रिक वाहनों के चलते उसकी मूल आवश्यकता बैटरी का हब छत्रपति संभाजीनगर को बनाने की बात की गई थी।

वह भी जहां की तहां है। रक्षा हथियार बनाने के लिए भी महाराष्ट्र के अनेक शहरों के नाम प्रस्तावित किए गए थे, लेकिन उन पर भी कोई चर्चा नहीं हो रही है। पिछले दस साल से छत्रपति संभाजीनगर में दस हजार एकड़ जमीन अधिगृहीत कर उद्योगों को डीएमआईसी परियोजना के तहत आमंत्रित करने की योजना बनाई गई थी, जो आज भी बड़े उद्योगों का इंतजार कर रही है। कुछ साल पहले प्रधानमंत्री मोदी इस योजना के कार्यालय का उद्घाटन करने भी आए थे, लेकिन बाद में भी कोई अधिक सुधार नहीं हो पाया।

एक तरफ जहां महाराष्ट्र में घोषणाओं के ऊपर घोषणाएं की जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलगांना और गुजरात जैसे राज्य निवेश की चर्चाओं को वास्तविकता में बदलते चले जा रहे हैं। महाराष्ट्र के लातूर में रेलवे कोच फैक्टरी बनाने की घोषणा की गई थी।

हर बार उसे आरंभ करने का विश्वास दिलाया जाता है, लेकिन सच सबके सामने है। पहले ट्रेन के डिब्बे, मेट्रो के डिब्बे और अब वंदे भारत के डिब्बे बनाने का भरोसा दिलाया गया। किंतु यह कब मूर्त रूप लेगा, कहा नहीं जा सकता। वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु में कब वंदे भारत के डिब्बे बनाने का निर्णय लिया गया और कैसे बड़ी संख्या में वे बनने लगे, किसी को कानोंकान तक खबर नहीं लगी। इसी प्रकार गुजरात में मेट्रो डिब्बे बनते-बनते निर्यात होने की नौबत तक आ पहुंची, पर किसी को पता नहीं चल पाया। इन सभी स्थानों में नए निवेश की घोषणाएं कब हुईं और काम कब आरंभ हुआ, किसी को पता नहीं चला।

महाराष्ट्र में घोषणाएं तो पहले से हो रही हैं, लेकिन उनकी वास्तविकता का किसी को पता नहीं चल रहा है। अभी स्विट्जरलैंड के दावोस में चल रहे ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ से लौटकर महाराष्ट्र में निवेश को लेकर 3.53 लाख करोड़ रुपए के समझौतों (एमओयू) पर हस्ताक्षर होने का दावा किया गया है। मुख्यमंत्री शिंदे का कहना है कि वैश्विक उद्योगों और निवेशकों का महाराष्ट्र में विश्वास बढ़ा है, क्योंकि उद्योगों ने 1 लाख करोड़ के निवेश में रुचि भी दिखाई है।

इन समझौतों के जरिए राज्य में बड़ी संख्या में दो लाख रोजगार पैदा होंगे। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह एमओयू केवल कागजों पर नहीं, बल्कि इनके वास्तविक कार्यान्वयन में तेजी लाने पर हमारा ध्यान है।  हालांकि पिछले वर्ष दावोस में 1,37,000 करोड़ रुपए के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे, जिनमें से 76 प्रतिशत सच्चाई में बदले।

हालांकि इस बार दावोस जाने के पहले विपक्ष ने यात्रा को फिजूलखर्ची बता कर अनेक सवाल खड़े कर दिए थे, जिसके चलते उद्योग मंत्री उदय सामंत को अपने दौरे का हिसाब देने तक की घोषणा करनी पड़ी। बीते साल निवेश की घोषणा में भी अनेक उद्योग ऐसे थे, जो भारत में पहले से अस्तित्व में थे। वह अपना विस्तार, या यह पुरानी घोषणाओं को दोबारा कर रहे थे।

राज्य में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के लिए आठ-नौ माह का समय बाकी है। ऐसे में नई घोषणाओं का अंबार लगना स्वाभाविक है। किंतु उन पर सवाल भी उठना सहज है, क्योंकि विदर्भ और मराठवाड़ा के उद्योगों की अड़चन दूर करने के लिए समृद्धि मार्ग बनकर लगभग तैयार है।इसके अलावा राज्य में अनेक मार्ग पहले से बेहतर हो चुके हैं। मुंबई और पुणे में स्थान का अभाव साफ दिख रहा है। इसलिए राज्य के बाकी भागों में औद्योगिकीकरण की बयार का पहुंचना प्राकृतिक परिस्थिति ही बन रही है।

यदि आंकड़े सही हैं और निवेशक केवल सम्मेलन तक ही नहीं, राज्य की भूमि पर काम करने लिए गंभीर हैं, तो समझौतों को वास्तविकता में परिवर्तित होने में देर नहीं लगेगी। अन्यथा समझौतों की सच्चाई को समझने के लिए ही लोगों को प्रयास करते रहना होगा। कभी आशा और कभी निराशा में जीवन व्यतीत करते रहना होगा।

Web Title: Davos agreements turn into reality

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