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वर्कफ्रॉम होम ने जॉब मार्केट को बदला, प्रकाश बियाणी का ब्लॉग

By Prakash Biyani | Updated: April 16, 2021 14:49 IST

स्टडी के अनुसार वे दिन दूर नहीं जब  सभी बिजनेस सेक्टर्स में 60 से 80 फीसदी हाइब्रिड वर्कर्स होंगे. आर्टि़फिशियल इंटेलिजेंट मशीनें प्लानिंग, लर्निग, लैंग्वेज प्रोसेसिंग और प्रेजेंटेशन कर रही हैं.

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ठळक मुद्देबीमा, बैंकिंग, फाइनेंस, टेलीकम्युनिकेशन्स, बीपीओ, कॉल सेंटर्स भी वर्कर्स मॉडल बदल रहे हैं.टीसीएस ने 25-25 वर्क मॉडल की भी घोषणा की है.2025 में कंपनी का 25 फीसदी स्टाफ ही दफ्तर आएगा.

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक हमारे देश में कोरोना से साल 2020 में 11 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं.

बेरोजगारी बढ़ाने के साथ इस महामारी ने जॉब मार्केट को भी बदला है. 9 से 5 की स्थायी नौकरी अब इतिहास हो गई है. नौकरीपेशा लोगों की दो नई पहचान बनी है- एक, कॉन्ट्रैक्ट आधार पर फ्री लांसर की तरह पार्ट टाइमर जिन्हें ‘गिग वर्कर्स’ कहते हैं. दूसरे, ‘हाइब्रिड वर्कर्स’ यानी जो घर से काम करे और कभी दफ्तर आए तो वह भी काम के लिए नहीं, मेल-मुलाकात के लिए.

वर्क फ्रॉम होम से स्टाफ की प्रोडक्टिविटी बढ़ने, अनुपस्थिति और वेतन भत्ते मद पर खर्च घटने से जॉब मार्केट में यह बदलाव आया है. देश की बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी के चीफ ह्यूमन रिसोर्सेस ऑफिसर राजेश उप्पल का कहना है कि नए वर्क मॉडल में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स के श्रमिक/ कर्मचारी ही कारखाने आएंगे.

शेष व्हाइट कालर स्टाफ में से अधिकांश घर से काम करेंगे. वीडियो से अपने सुपरवाइजर्स से निर्देश लेंगे और रिपोर्ट भेजेंगे. कोरोना लॉकडाउन के दौरान देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टिंग सर्विसेस ने सिक्योर बॉर्डरलेस वर्कस्पेस डेवलप करके अपने 4.5 लाख स्टाफ को सिक्योर्ड एक्सेस उपलब्ध करवाया और 95 फीसदी को रिमोट वर्कर बना दिया है.

टीसीएस ने 25-25 वर्क मॉडल की भी घोषणा की है जिसके अनुसार 2025 में कंपनी का 25 फीसदी स्टाफ ही दफ्तर आएगा. यही नहीं,  टीसीएस ने नई भर्ती के लिए भी नेशनल क्वालिफायर टेस्ट लांच किया और 1.30 लाख युवाओं का वर्चुअल सिलेक्शन किया, उन्हें ट्रेंड किया है. बीमा, बैंकिंग, फाइनेंस, टेलीकम्युनिकेशन्स, बीपीओ, कॉल सेंटर्स भी वर्कर्स मॉडल बदल रहे हैं.

एक स्टडी के अनुसार वे दिन दूर नहीं जब  सभी बिजनेस सेक्टर्स में 60 से 80 फीसदी हाइब्रिड वर्कर्स होंगे. इन्हें अपने मनचाहे वर्क प्लेस पर केवल वाई-फाई कनेक्शन और स्मार्टफोन उपलब्ध करवाने होंगे, पर इसके बदले ऑफिस स्पेस 15 से 50 फीसदी घट जाएगी. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी जॉब मार्केट को बदल रहा है. आर्टि़फिशियल इंटेलिजेंट मशीनें प्लानिंग, लर्निग, लैंग्वेज प्रोसेसिंग और प्रेजेंटेशन कर रही हैं.

कारखानों में रोबोटिक आर्म्स एक्यूरेट और फास्ट मैन्युफैक्चरिंग कर रहे हैं जिससे परंपरागत नौकरियां घटने लगी हैं तो नए किस्म के रोजगार अवसर पैदा हो रहे हैं. 2011 में रविचंद्रन द्वारा स्थापित एजुटेक बायजू ने डिस्टेंस टीचिंग और कोचिंग से प्रोफेशनल और टेक्निकल शैक्षणिक संस्थानों को आउटडेटेड कर दिया है. एंट्रेंस टेस्ट्स के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का तो अस्तित्व खतरे में पड़ गया है.

रविचंद्रन बायजू के लिए यह स्टार्टअप कुबेर का खजाना साबित हुए हैं. वे आज देश के सभी धनी अध्यापक ही नहीं, मात्न 10 सालों में धनी उद्यमियों की सूची में शामिल हो गए हैं. दिल्ली पब्लिक स्कूल आरके पुरम के  12वीं कक्षा के आरुषि नीमा ने आरू रोबोट बनाया है, उसे बनाने और बेचने के लिए आरुषि ने कंपनी स्थापित की है- द स्मार्ट इंटरफेस.

उनके रोबोट ने छोटे बिजनेसमेंस का ग्राहकों से संपर्क जोड़ा है तो काल सेंटर्स और हेल्प सेंटर्स का काम आसान कर दिया है. 2016 में स्थापित भारत रोहन स्टार्टअप के संस्थापक हैं एयरोनॉटिकल इंजीनियर अमनदीप और ऋषभ चौधरी. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित उनका ड्रोन 8 हजार एकड़ से ज्यादा खेतों का हवाई निरीक्षण करके जीवाणुजनित रोगों से फसल में हो रहे बायोकेमिकल्स बदलाव और पोषण की कमियों को चिह्न्ति करता है. किसान की फसल देश विदेश की एफएमसीजी कंपनियों और बड़े रिटेलर्स को बेचने का भी बंदोबस्त करता है.

भारत रोहन की कमर्शियल सेवा से देश के 5 लाख से ज्यादा किसान लाभान्वित हो रहे हैं. ड्रोन भारतीय फौज के लिए  सीमा पर चौकसी और जासूसी करने लगे हैं. स्विगी और जोमेटो ड्रोन से फूड डिलीवर करने की तैयारी कर रह रहे हैं. देश में ड्रोन पायलट तैयार करनेवाली अकादमीज का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ड्रोन खिलौना नहीं है.

इन्हें उड़ाने की स्किल सीखें और अच्छे वेतन की ऐसी नौकरी पाएं जिसमें एडवेंचर भी है. वर्क फ्रॉम होम मॉडल सबके लिए विन-विन भी साबित हुआ है. कॉर्पोरेट वल्र्ड को छोटे शहरों से कम वेतन पर प्रतिभावान युवा मिल रहे हैं तो अवसरों से वंचित युवाओं को नौकरी. न्यू एज युवा अब स्थायी सरकारी नौकरी या पेंशन जैसी सुरक्षा नकारने लगे हैं, उन्हें पर्सनल लाइफ की तरह प्रोफेशनल लाइफ में भी एडवेंचर चाहिए.

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