पद्मावत-तीन तलाक: तो क्या मुसलमान सुप्रीम कोर्ट और कानून का करते हैं राजपूतों से ज्यादा सम्मान

By पल्लवी कुमारी | Published: January 25, 2018 12:11 PM2018-01-25T12:11:33+5:302018-01-25T13:40:44+5:30

पद्मावत फिल्म पर कुछ राजपूत संगठनों को ऐतराज है। तीन तलाक के मुद्दे पर कई मुस्लिम संगठन विरोध में थे। लेकिन दोनों समुदायों के विरोध के तरीके में इतना फर्क क्यों है?

Padmaavat protest shows Muslim groups have greater respect for Supreme Court than Rajputs | पद्मावत-तीन तलाक: तो क्या मुसलमान सुप्रीम कोर्ट और कानून का करते हैं राजपूतों से ज्यादा सम्मान

पद्मावत-तीन तलाक: तो क्या मुसलमान सुप्रीम कोर्ट और कानून का करते हैं राजपूतों से ज्यादा सम्मान

संजय लीला भंसाली को थप्पड़ मारने और फिल्म सेट पर तोड़फोड़ से शुरू होकर स्कूली बच्चों की बस पर पथराव, आगजनी, सिनेमाघरों में तोड़फोड़ तक करणी सेना ने साबित कर दिया है कि वो देश के कानून व्यवस्था को ठेंगे पर रखती है। मिथकीय रानी पद्मावती और राजपूतों के सम्मान के स्वघोषित ठेकेदार करणी सेना का पहले दावा था कि फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी (रणवीर सिंह) और रानी पद्मावती (दीपिका पादुकोण) के बीच ड्रीम सीक्वेंस फिल्माया गया है जिसका वो विरोध करते हैं। संजय लीला भंसाली फिल्म पत्रकारों को पहले ही दिखा चुके हैं और ये साफ हो चुका है कि फिल्म में ऐसा कोई दृश्य नहीं है। फिल्म में ऐसा कोई सीन नहीं है जिसमें खिलजी और पद्ममिनी आमने-सामने हुए हों। फिर भी करणी सेना जैसे संगठन फिल्म का विरोध कर रहे हैं। और सच कहा जाए तो ये मुद्दा एक फिल्म का नहीं बल्कि देश के सुप्रीम कोर्ट और राज्य की कानून-व्यवस्था के प्रति करणी सेना जैसे संगठनों के अनादर का भी है। 

पद्मावती को लेकर जिस तरह राजपूत समुदाय के संगठन हिंसक और बर्बर तरीके से पेश आए हैं उससे कुछ दिन पहले तलाक-ए-बिद्दत को लेकर देश में हुए विवाद की याद आना स्वाभाविक है। तीन तलाक को लेकर भी बहुत से मुस्लिम संगठन आहत थे। करणी सेना एक छुटभैया स्थानीय संगठन है जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश भर के सुन्नी मुसलमानों का बड़ा संगठन है जो तीन तलाक पर बीजेपी सरकार के विधेयक के खिलाफ था। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी तलाक-ए-बिद्दत को गैर-कानूनी करार दिया था जबकि मुस्लिम संगठन चाहते थे कि इस मसले को उन पर छोड़ दिया जाए और वो इसका हल निकाल लेंगे। सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ होते हुए भी  किसी मुस्लिम संगठन ने कोई उग्र रवैया नहीं अपनाया है। मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने तीन तलाक पर बयानबाजी तो बहुत की लेकिन कानून को हाथ में नहीं लिया। तोड़फोड़ और आगजनी नहीं की। चक्का जाम नहीं किया। तलवार नहीं निकाली।मासूम स्कूली बच्चों की बस पर पथराव करके दहशत का नंगा नाच नहीं किया। 

पद्मावत के विरोध में करणी सेना ने दीपिका के नाक काटने की धमकी से लेकर भंसाली को जानलेवा धमकियां भी दीं और इसके लिए इनाम राशि की भी घोषणा भी की गई। मामला यहीं नहीं थमा, इसके बाद बस में आग लगाना, सड़कों, मॉल, सिनेमाघरों में तोड़-फोड़ मचाकर उन्होंने यह साफ कर दिया है कि ना तो उन्हें किसी आम आदमी का ख्याल है और ना ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मान है। सुप्रीम कोर्ट ने पद्मावत को लेकर यह साफ कह दिया था कि फिल्म देश के हर कोने में रिलीज होगी। इसके बावजूद करणी सेना ने फिल्म को ना रिलीज करने की धमकी दी। उन्होंने कई जगह सिनेमाघरों में आग लगाई। राजपूत हमेशा खुद को देशभक्त बताते हैं, देशभक्ति की बात करते हैं, तो यह उनकी कैसी देशभक्ति है जो यह सुप्रीम कोर्ट और सेंसर बोर्ड के फैसले को भी नहीं मान रहे हैं। 

फिल्म रिलीज हो चुकी है, फिल्म को एक शब्द में कहा जाए तो पूरी फिल्म राजपूत आन-बान शान की एक गौरव गाथा है। इसके बाद भी ऐसी खबरें आ रही हैं कि राजपूत समर्थक बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में तोड़-फोड़ मचा रहे हैं। अभी हाल ही में एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बात के लिए ताना मारा। ओवैसी ने 'पद्मावत' फिल्‍म पर जारी विवाद के बीच एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि इस फिल्‍म के विरोध में राजपूतों के विरोध के बाद सरकार को एक कमेटी का गठन करना पड़ा। कमेटी की सिफारिशों के बाद फिल्‍म के नाम में तब्‍दीली की गई और कई सीनों को हटा दिया गया। देश की आबादी में राजपूतों की आबादी महज 4 प्रतिशत है। यह उनकी ताकत ही है कि सरकार को उनकी मांगों के सामने झुकना पड़ा है। इसकी तुलना में मुस्लिमों की आबादी 14 प्रतिशत है लेकिन वह बेबस हैं। ओवैसी के मुताबिक सरकार उनको( मुस्लिम समाज) नजरअंदाज करते हुए मनमाने तरीके से तीन तलाक पर कानून बना रही है। इस मामले में मुस्लिमों के पक्ष को सुनने के लिए कोई कमेटी का गठन नहीं किया गया था। लेकिन फिर भी मुस्लिमों ने देश के कानून का मान रखा है। 

ओवैसी भले ही पद्मावत का इस्तेमाल अपने राजनीतिक मंसूबे साधने के लिए कर रहे हों लेकिन उनके उठाए सवाल का क्या कोई जवाब है? दूसरी तरफ बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी, नरेंद्र मोदी कैबिनेट के मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज, राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जैसों के बयान देखिए। ये सभी कहीं न कहीं करणी सेना के स्टैंड को वैचारिक समर्थन करते नजर आते हैं। 

Web Title: Padmaavat protest shows Muslim groups have greater respect for Supreme Court than Rajputs

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