फ्रांस पहुंचे दो अफगान अफगानिस्तान से बाहर आ रहे लोगों के लिए सबक

By भाषा | Updated: September 19, 2021 16:50 IST2021-09-19T16:50:58+5:302021-09-19T16:50:58+5:30

two afghans reached france a lesson for people coming out of afghanistan | फ्रांस पहुंचे दो अफगान अफगानिस्तान से बाहर आ रहे लोगों के लिए सबक

फ्रांस पहुंचे दो अफगान अफगानिस्तान से बाहर आ रहे लोगों के लिए सबक

पेरिस, 19 सितंबर (एपी) नसीरुल्ला यूसुफी और अब्दुल वली उन 10 लाख से अधिक शरणार्थियों और प्रवासियों में से हैं, जो वर्ष 2015 या उसके बाद यूरोप आए और जिनमें से एक ने पेरिस की फुटपाथ पर सोकर जीवन बिताया तो दूसरे को उत्तरी फ्रांस के अस्थायी शिविर में शरण लेनी बड़ी।

यूसुफी और वली एक दूसरे को नहीं जानते लेकिन दोनों की कहानी एक जैसी है और दोनों ही पैदल, बस,ट्रेन और फेरी आदि से मुश्किल भरी यात्रा कर अनजान देश पहुंचे, जहां पर उनको कोई अधिकार हासिल नहीं था, यहां तक कि रहने का अधिकार भी।

सालों बाद दोनों को फ्रांस में रहने की कानूनी अनुमति मिल गई और अब एक पेरिस में शरणार्थी अदालत में दुभाषिये के तौर पर जबकि दूसरा पूर्वोत्तर फ्रांस से एक रेस्तरां में काम करता है। दोनों अनुभवी हैं जो अफगानिस्तान की राजधानी पर तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका और यूरोप जाने के लिए देश से निकले हजारों लोगों को उचित सलाह दे सकते हैं।

यूसुफी और वली सलाह देते हैं कि वे मतभेदों को स्वीकार करें, नयी जिंदगी से प्यार करें और स्थानीय भाषा सीखें।

उल्लेखनीय है कि काबुल पर तालिबान के हमले के बाद तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद करीब 1,24,000 लोगों को अमेरिका नीत अभियान में अफगानिस्तान से हवाई जहाज से निकाला गया लेकिन इससे कहीं अधिक अफगान तालिबान के कब्जे की आहट पाकर कुछ महीने पहले ही अपने साधनों से ही देश छोड़ चुके थे।

युसूफी (32) और वली(31) क्रमश: 2015 और 2016 में फ्रांस में आए थे और उनका न तो स्वागत हुआ और न ही उनके लिए कोई शरणार्थी सेवा थी। वली करीब 10 महीने उत्तरी पोर्ट और कैलियस में बने अस्थायी प्रवासी शिविर में रहे जिसे ‘ दि जंगल’ के नाम से जाना जाता है और वहां की स्थिति दयनीय थी और कई बार हिंसा तक की घटनाएं हो जाती थी। शरण की आस लिए पहुंचे लोगों को उम्मीद थी कि वे इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन में नयी जिंदगी की शुरुआत करेंगे।

जब फ्रांसीसी सरकार ने शिविर को बंद करने का फैसला किया तो वली ने अधिकारियों को हजारों लोगों को फ्रांस के विभिन्न स्थानों पर भेजने में मदद की और स्वयं 27 अक्टूबर 2016 को आखिरी बस में सवार हुए, जिसके बाद वहां मौजूद ढांचों को आग के हवाले कर दिया गया। उस बस से उन्हें स्ट्रॉसबर्ग ले जाया गया, जर्मनी की सीमा पर स्थित इस स्थान पर उन्हें लकड़ी के बने घर में ठहराया गया। तब उनके पास कुछ कपड़े और मात्र दस्तावेज थे और पीले रंग का कमरबंद था जो शरणार्थियों की मदद करने के लिए उन्होंने पहना था। बाद में इसी कमरबंद को उन्होंने शरणार्थी आवेदन के साथ जमा किया, जो सबूत था कि उन्होंने फ्रांसीसी सरकार के लिए काम किया है।

वली पुराने दिनों को याद करते हुए रुआंसे हो जाते हैं और बताते हैं कि उन्हें अनजान शहर ले जाया गया लेकिन स्ट्रॉसबर्ग में शरणार्थी का दर्जा मिला जिससे उन्हें रेस्तरां में छोटी नौकरी और सिर पर छत मिल सकी।

युसूफी की कहानी भी अलग नहीं है अफगानिस्तान से निकलने के बाद करीब डेढ़ साल की मुश्किल यात्रा कर फ्रांस पहुंचे और जिंदगी की शुरुआत पेरिस की सड़कों से की। यह सौभाग्य ही था कि एक दिन कक्षा में देर होने पर फ्रांसीसी शिक्षिका ने उनसे कारण पूछा तब उन्होंने बेघर होने की व्यवस्था बताई और तब उस शिक्षिका ने शरण पाने की जटिल प्रक्रिया की जानकारी दी। वह उन्हें मां की तरह मानते हैं।

वली और युसूफी दोनों इस बात पर सहमत हैं कि जो फ्रांस को अपना नया घर बनाना चाहते हैं उन्हें यहां की भाषा को सीखना चाहिए। युसूफी कहते हैं, ‘‘ जब अपने आप को दूसरे देश में पाते हैं और आप न तो वहां की भाषा और न ही वहां की संस्कृति जानते हैं तो निश्चित तौर पर अकेला महसूस करते हैं।’’

वह फ्रांस के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को भी आत्मसात करने के महत्व को इंगित करते हैं। वली भी उनका समर्थन करते हैं।

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Web Title: two afghans reached france a lesson for people coming out of afghanistan

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