दलाई लामा ने किया साफ, कहा- तिब्बती मुद्दा अब राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं
By भाषा | Published: July 5, 2019 05:57 AM2019-07-05T05:57:12+5:302019-07-05T05:57:12+5:30
दलाई लामा ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘चीन में शीर्ष नेताओं में यह भावना बढ़ रही है कि उनकी नीतियां तिब्बत मुद्दे को गत 70 वर्षों में हल नहीं कर पायी हैं। इसलिए उन्हें अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यद्यपि तिब्बत एक स्वतंत्र देश था आज चीन का तिब्बत पर राजनीतिक रूप से कब्जा है।’’
तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि तिब्बती मुद्दा अब राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं रहा। दलाई लामा ने जोर दिया कि तिब्बत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी पहचान के संरक्षण पर ध्यान देने की जरुरत है। दलाई लामा ने सवाल किया कि राजनीतिक स्वतंत्रता मुख्य तौर पर लोगों की खुशी के लिए होती है लेकिन क्या वह अकेले खुशी की गारंटी हो सकती है।
उन्होंने समाचार पत्रिका ‘द वीक’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘चीन में शीर्ष नेताओं में यह भावना बढ़ रही है कि उनकी नीतियां तिब्बत मुद्दे को गत 70 वर्षों में हल नहीं कर पायी हैं। इसलिए उन्हें अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यद्यपि तिब्बत एक स्वतंत्र देश था आज चीन का तिब्बत पर राजनीतिक रूप से कब्जा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान परिस्थितियों में मैं कुछ समय से कह रहा हूं कि तिब्बत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी पहचान के संरक्षण पर ध्यान देने की जरुरत है। अब यह राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं रहा।’’ उन्होंने इस वर्ष अप्रैल में एक वैश्विक सम्मेलन में कहा था कि तिब्बत के लोग चीन के साथ 1974 से ही तिब्बती मुद्दे का परस्पर रूप से स्वीकार्य हल चाह रहे हैं लेकिन चीन उन्हें (दलाई लामा को) एक ‘‘अलगाववादी’’ मानता है लेकिन वह हैं नहीं।
दलाई लामा जल्द ही 84 वर्ष के होने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि "एक तरह से पुनर्मिलन" के तौर पर तिब्बत चीन के साथ रहे। दलाई लामा से यह साक्षात्कार हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज में लिया गया। उन्होंने इसमें यह भी कहा कि तिब्बती लोग जब तक अपनी हजारों वर्ष पुरानी विरासत, धर्म और पहचान को संरक्षित रख पाएंगे, वह उन्हें आंतरिक शांति और खुशी प्रदान करेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसके लिए भारतीय संघ की उसकी विविधता में एकता की प्रशंसा करता हूं। इसी तरह से तिब्बत की सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक पहचान को बरकरार रखते हुए चीनी गणराज्य और तिब्बत सह अस्तित्व में रह सकते हैं। दलाई लामा से जब उनके उत्तराधिकारी के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं केवल इस जीवन के बारे में चिंतित हो सकता हूं, अगला मेरी चिंता नहीं है। जो महत्वपूर्ण है वह है शिक्षा, दलाई लामा की व्यवस्था उसके बाद आती है। यदि पुनर्जन्म इतना महत्वपूर्ण है तो बुद्ध का पुनर्जन्म क्यों नहीं हुआ।’’
उन्होंने साथ ही कहा, ‘‘कभी कभी, मैं यह महसूस करता हूं कि लामा व्यवस्था का कुछ संबंध सामंती व्यवस्था से है और यह आज प्रासंगिक नहीं है।’’ दलाई लामा ने बीबीसी के साथ एक साक्षात्कार में महिला को लेकर की गई अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगी थी। धर्मशाला स्थित उनके कार्यालय ने कहा था कि उन्होंने हमेशा ही उन्हें वस्तु की तरह पेश किये जाने का विरोध किया है।
उन्होंने इस सवाल पर कि क्या उनका पुनर्जन्म एक महिला के रूप में हो सकता है, उन्होंने मजाक में कहा था कि वह आकर्षक होनी चाहिए। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि भारत में अमीरों को ‘‘राम राम’’ जपने और पूजा करने की बजाय भारतीय दर्शन और ग्रंथ पढ़ने चाहिए।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से उनके जुड़ाव के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘पंडित मेरे प्रति बहुत उदार थे, उन्होंने मुश्किल समय में मुझे सलाह दी। मैंने उनकी सलाह मानी और वह बहुत व्यावहारिक थी। मैं 1956 में बुद्ध जयंती पर भारत आया। उस समय कई तिब्बती अधिकारियों ने मुझसे कहा कि मुझे भारत में रहना चाहिए और लौटना नहीं चाहिए।’’
दलाई लामा ने कहा कि वह 1957 में तिब्बत लौटे। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने (चीनियों के साथ शांति के लिए) सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया लेकिन कुछ समय बाद वहां विद्रोह हो गया। 1959 में चीजें नियंत्रण से बाहर हो गई और मैंने तिब्बत से निकलने का निर्णय किया।’’