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कोविड संबंधी खबरों की डूमस्क्रॉलिंग का भावनात्मक प्रभाव- अपने सोशल मीडिया को ऐसे सकारात्मक बनाएं

By भाषा | Updated: October 23, 2021 13:40 IST

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(कैथरीन बुखानन, व्याख्याता, मनोविज्ञान विभाग, यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स, गिलियन सैंडस्ट्रॉम, वरिष्ठ व्याख्याता, मनोविज्ञान विभाग, यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स, लारा एकनिन, मनोविज्ञान की विशिष्ट सहायक प्रोफेसर, सिमोन फ्रेसर यूनिवर्सिटी और शाबा लोतुन, पीएचडी उम्मीदवार, मनोविज्ञान विभाग, यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स)

लंदन, 23 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) अप्रैल 2020 में आप जूम बैठकों में और अपने सोशल मीडिया न्यूजफीड के जरिए खबरों को देखने में व्यस्त थे। आपको कंप्यूटर या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर ‘‘मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है’’, ‘‘कोविड-19 से स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन असर पड़ सकते हैं’’ और ‘‘स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली ढह गयी है’’, जैसे शीर्षक वाले समाचार ही नजर आ रहे थे। आपका मन खराब हो रहा था लेकिन आप स्क्रॉल (कम्प्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर किसी पाठ्य सामग्री को ऊपर/नीचे और दाएं/बाएं करना) करना बंद नहीं कर सकते थे।

अगर आपने भी ऐसी स्थिति का सामना किया तो यकीन मानिए आप अकेले नहीं हैं। अध्ययन से पता चलता है कि लोगों में मुश्किल वक्त में सूचना लेने की प्रवृत्ति होती है -यह किसी स्थिति से उबरने का स्वाभाविक तरीका है। लेकिन सोशल मीडिया से लगातार सूचनाएं लेना, जिसे ‘डूमस्क्रॉलिंग’ कहा जाता है, क्या महामारी या किसी भी स्थिति के दौरान मददगार है?

डूमस्क्रॉलिंग और डूमसर्फिंग का मतलब सोशल मीडिया पर दुखद खबरों को लगातार स्क्रॉल करना है भले ही वे खबरें दिल तोड़ने वाली या तनाव पैदा करने वाली ही क्यों न हो।

खराब खबरों का मनोभाव पर पड़ने वाले असर पर अध्ययन से पता चलता है कि कोविड-19 संबंधी नकारात्मक खबरें हमारी भावनात्मक भलाई के लिए हानिकारक हो सकती है। उदाहरण के लिए मार्च 2020 में अमेरिका के 6,000 से अधिक नागरिकों के साथ हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि इसमें भाग लेने वाले लोगों ने एक दिन में कोविड-19 संबंधी खबरों को देखने में जितना समय दिया, उतने ही वे दुखी हुए।

ये निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं लेकिन कुछ सवालों का जवाब नहीं देते। क्या डूमस्क्रॉलिंग लोगों को दुखी करता है या दुखी लोग ज्यादा डूमस्क्रॉल करते हैं? डूमस्क्रॉलिंग पर कितना समय बिताना एक समस्या है? और क्या होगा अगर डूमस्क्रॉलिंग के बजाय हम किसी वैश्विक संकट का हल खोजने वाली मानवता संबंधी सकारात्मक खबरें पढ़ें?

यह पता लगाने के लिए हमने एक अध्ययन किया जहां हमने सैकड़ों लोगों को दो से चार मिनट के लिए ट्वीटर या यूट्यूब पर वास्तविक दुनिया की कोविड संबंधी आम खबरें या कोविड के दौरान दयालुता की खबरें दिखायी। इसके बाद हमने एक प्रश्नपत्र के जरिए इन लोगों के मूड का पता लगाया और उन लोगों से उसकी तुलना की जिन्होंने ये खबरें नहीं देखी।

इसमें पाया गया कि जिन लोगों ने कोविड संबंधी खबरें पढ़ी वे उन लोगों के मुकाबले दुखी थे जिन्होंने ये खबरें नहीं पढ़ी। इस बीच जिन लोगों को कोविड संबंधी सकारात्मक खबरें दिखायी गयी, वे दुखी नहीं पाए गए लेकिन साथ ही उनका मूड पहले के मुकाबले अच्छा नहीं हुआ जैसा कि हमने उम्मीद की थी।

ये निष्कर्ष दिखाते हैं कि अगर हम दो से चार मिनट का थोड़ा वक्त भी कोविड-19 के बारे में नकारात्मक खबरें पढ़ने में लगाते हैं तो इसका हमारे मूड पर हानिकारक असर पड़ता है।

अपने सोशल मीडिया को अधिक सकारात्मक स्थान बनाना :

हमारा अध्ययन इस महीने के शुरुआत में प्रकाशित हुआ। अपने सोशल मीडिया को अधिक सकारात्मक बनाने के लिए एक विकल्प अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स को एक साथ डिलीट करना है। आंकड़ें दिखाते हैं कि ब्रिटेन और अमेरिका में फेसबुक के तकरीबन आधे उपयोगकर्ताओं ने 2020 में इस मंच को छोड़ने पर विचार किया।

लेकिन ऐसे मंचों से अपने आप को दूर रखना कितना वास्तविक है जो दुनिया की करीब आधी आबादी को जोड़ता है खासतौर से ऐसे वक्त में जब आमने-सामने की बातचीत करना खतरे का सबब या असंभव है?

सोशल मीडिया को नजरअंदाज करना व्यावहारिक नहीं है, यहां कुछ और तरीकों से आप अपने सोशल मीडिया को अधिक सकारात्मक बना सकते हैं।

सबसे पहले इसका ध्यान रखिए कि आप सोशल मीडिया पर क्या देखते हैं। अगर आप अन्य लोगों से जुड़ने के लिए लॉग इन करते हैं तो ताजा सुर्खियों के बजाय निजी खबरों और तस्वीरों पर ध्यान केंद्रित करिए। ऐसी सामग्री पढ़िए जो आपको खुश करें। आप ऐसा सोशल मीडिया अकाउंट भी फॉलो कर सकते हैं जो केवल सकारात्मक खबरें साझा करता हो।

सोशल मीडिया का इस्तेमाल सकारात्मकता और दयालुता का प्रचार करने में करिए। आपकी जिंदगी में हो रही अच्छी चीजें साझा करने से आपके मूड में सुधार हो सकता है और आपका सकारात्मक मूड दूसरे लोगों का भी खुश कर सकता है।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम आपको सभी खबरें और नकारात्मक सामग्री को नजरअंदाज करने का सुझाव नहीं दे रहे हैं। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि दुनिया में क्या हो रहा है। लेकिन हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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