कोलंबोः श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में एक अप्रैल को लगाया गया आपातकाल मंगलवार देर रात हटा दिया। मंगलवार रात को जारी राजपत्रित अधिसूचना संख्या 2274/10 में राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने आपातकालीन नियम अध्यादेश को वापस ले लिया है, जिसके तहत सुरक्षा बलों को देश में किसी भी गड़बड़ी को रोकने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए थे।
राष्ट्रपति ने देश में बदतर आर्थिक हालात को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर एक अप्रैल को सार्वजनिक आपातकाल की घोषणा की थी। तीन अप्रैल को होने वाले व्यापक विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर आपातकाल लगाया गया था। इसके बाद सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया था। कर्फ्यू और आपातकाल के बावजूद विरोध प्रदर्शन जारी रहे।
इस दौरान नाराज प्रदर्शनकारियों ने सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेताओं के आवास का घेराव कर सरकार से आर्थिक संकट को हल करने का आग्रह किया था। विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने से कई लोग घायल हो गए और वाहनों में आग लगा दी गई। राष्ट्रपति के आवास के पास लगे बैरिकेड गिराए जाने के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछारे की।
इसके बाद कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और कोलंबो शहर के अधिकतर हिस्सों में कुछ समय के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी के कारण ईंधन और रसोई गैस जैसे आवश्यक सामान की किल्लत हो गई है। प्रतिदिन 12 घंटे तक बिजली कटौती हो रही है।
श्रीलंका में मध्यावधि चुनाव कराकर राजनीतिक संकट को खत्म किया जाना चाहिये: ननायक्कारा
श्रीलंका के वरिष्ठ वामपंथी नेता वासुदेव ननायक्कारा ने बुधवार को कहा कि देश में अभूतपूर्व आर्थिक संकट के कारण पैदा हुई राजनीतिक उथल पुथल को मध्यावधि चुनाव कराकर समाप्त किया जाना चाहिये। उन्होंने जोर देकर कहा कि चुनाव कराने से पहले कम से कम छह महीने के लिये एक समावेशी सरकार का गठन किया जाना चाहिये।
‘डेमोक्रेटिक लेफ्ट फ्रंट’ के नेता ननायक्कारा उन 42 सांसदों में शामिल हैं, जिन्होंने सतारूढ़ श्रीलंका पोदुजन पेरामुन (एसएलपीपी) गठबंधन से खुद को अलग करने की घोषणा की है। ननायक्कारा ने कहा, ''यह सरकार आगे नहीं चल सकती। कम से कम छह महीने के लिये एक ऐसी सरकार का गठन होना चाहिये, जिसमें सबका प्रतिनिधित्व हो और फिर चुनाव होने चाहिये।''