सलमान रश्दी: अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक, जिनकी किताब ने उनके जीवन को खतरे में डाल दिया

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 14, 2022 01:39 PM2022-08-14T13:39:48+5:302022-08-14T13:42:54+5:30

रश्दी के खिलाफ फतवा जारी होने से पहले ही ‘द सैटेनिक वर्सेज’ कई देशों में प्रतिबंधित कर दी गई थी और इन देशों में उनकी जन्मभूमि भारत भी शामिल था। भारत में एक दशक से अधिक समय तक उनके प्रवेश पर प्रतिबंध रहा। एक किताब के कारण ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा जारी फतवे के चलते वर्षों मौत के भय के साये में जीने और छुपकर रहने को मजबूर होना पड़ा।

Salman Rushdie Supporter of freedom of expression whose book put his life in danger | सलमान रश्दी: अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक, जिनकी किताब ने उनके जीवन को खतरे में डाल दिया

‘द सैनेटिक वर्सेस’ के कारण सलमान रश्दी के खिलाफ फतवा जारी हुआ था

Highlights‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ के लिए रश्दी को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया‘द सैनेटिक वर्सेस’ के कारण ईरान के सर्वोच्च नेता ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर दियाइस पुस्तक के कारण रश्दी को नौ साल तक छुपकर रहना पड़ा

न्यूयॉर्क: ‘बुकर पुरस्कार’ पाने के बाद दुनियाभर के दिग्गज साहित्यकारों में शुमार हुए लेखक सलमान रश्दी को उनकी एक किताब के कारण ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा जारी फतवे के चलते वर्षों मौत के भय के साये में जीने और छुपकर रहने को मजबूर होना पड़ा। मुंबई में जन्मे रश्दी को उनके जीवन एवं लेखन को परिभाषित करने वाली जिस अनूठी विशेषता के कारण सराहा जाता है, उसी की वजह से उनके कई आलोचक हैं और वह विशेषता है-‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थक होना।’ रश्दी की पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ को लेकर ईरान के तत्कालीन (अब दिवंगत) सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहोल्ला खामनेई ने उन्हें (रश्दी को) जान से मारने का एक फतवा जारी किया था। इसके 33 से अधिक साल बाद रश्दी (75) पर पश्चिमी न्यूयॉर्क के चौटाउक्वा संस्थान में शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान उस समय एक व्यक्ति ने चाकू से हमला कर दिया, जब वह अपना व्याख्यान शुरू करने वाले थे।

प्राधिकारियों ने हमलावर की पहचान न्यूजर्सी निवासी 24 वर्षीय हदी मतार के रूप में की है, लेकिन उन्हें हमले के पीछे के मकसद की अभी जानकारी नहीं है। रश्दी की गर्दन पर और पेट में चाकू से हमला किया गया। वह इस समय वेंटिलेटर पर हैं और उनके यकृत को नुकसान पहुंचा है। इस हमले ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया है। दुनियाभर के नेताओं एवं साहित्य जगत के दिग्गजों ने कहा है कि वे रश्दी पर हमले से स्तब्ध हैं। अहमद सलमान रश्दी का जन्म बंबई (अब मुंबई) के कश्मीरी मुसलमान परिवार में 19 जून, 1947 को हुआ था। इसी साल भारत को ब्रितानी शासन से आजादी मिली थी। रश्दी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने वाले वकील अनीस अहमद रश्दी और शिक्षिका नेगिन भट्ट के पुत्र हैं। रश्दी ने 14 उपन्यास लिखे हैं: ‘ग्राइमस’, ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’, ‘शेम’, ‘द सैटेनिक वर्सेज’, ‘हारून एंड द सी ऑफ स्टोरीज’, ‘द मूअर्स लास्ट साई’, ‘द ग्राउंड बिनीथ हर फीट’, ‘फ्यूरी’, ‘शालीमार द क्लाउन’, ‘द एन्चेन्ट्रेस ऑफ फ्लॉरेंस’, ‘ल्यूका एंड द फायर ऑफ लाइफ’, ‘टू ईयर्स एट मंथ्स एंड ट्वंटी एट नाइट्स’, ‘द गोल्डन हाउस’ और ‘क्विचोटे’। उन्होंने ‘जोसेफ एण्टन’ नाम से एक संस्मरण लिखा। उन्होंने छुपकर रहने के दौरान अपने लिए इसी छद्म नाम का इस्तेमाल किया था।

ब्रितानी शासन से स्वतंत्रता और देश के विभाजन तक के भारत के सफर की पृष्ठभूमि पर आधारित ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ के लिए उन्हें 1981 में प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार ने उन्हें दुनिया भर के साहित्य जगत में नई पहचान दी, लेकिन कुछ ही वर्षों बाद 1988 में प्रकाशित ‘द सैनेटिक वर्सेस’ के कारण ईरान के सर्वोच्च नेता ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया। विवादित पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ ईरान में 1988 से प्रतिबंधित है। कई मुसलमानों का मानना है कि रश्दी ने इस पुस्तक के जरिए ईशनिंदा की है। ईरान ने रश्दी की हत्या करने वाले को 30 लाख डॉलर से अधिक का इनाम देने की भी घोषणा की थी। यह उपन्यास भी बुकर पुरस्कार के लिए चयनित किये गए उपन्यासों की अंतिम सूची में जगह बनाने में कामयाब रहा था। इस पुस्तक के कारण रश्दी को नौ साल तक छुपकर रहना पड़ा। फतवा जारी होने के बाद रश्दी ब्रिटिश पुलिस के संरक्षण में एक कड़ी सुरक्षा वाले आवास में रहे। रश्दी के खिलाफ फतवा जारी होने से पहले ही यह किताब कई देशों में प्रतिबंधित कर दी गई थी और इन देशों में उनकी जन्मभूमि भारत भी शामिल था। भारत में एक दशक से अधिक समय तक उनके प्रवेश पर प्रतिबंध रहा।

इस प्रतिबंध को 11 साल बाद 1999 में हटा दिया गया। इसके अलावा बांग्लादेश और श्रीलंका ने भी किताब पर प्रतिबंध लगाया दिया था। ‘अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स’ के सदस्य और ‘डिस्टिंग्विश्ड राइटर इन रेजीडेंस एट न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी’ रश्दी ‘पेन अमेरिकन सेंटर’ के पूर्व अध्यक्ष भी हैं। ‘साहित्य की सेवा’ के लिए उन्हें 2007 में नाइट की उपाधि दी गई थी। उन्हें 1999 में फ्रांस के ‘कमांडर डी एल’ऑर्द्रे देस आर्ट्स एट देस लेट्रेस’ नियुक्त किया गया था। रश्दी को यूरोपीय संघ के अरिस्टियन पुरस्कार, ब्रिटेन एवं जर्मनी के ‘ऑथर ऑफ द ईयर’ पुरस्कारों, भारत के क्रॉसवर्ड बुक अवॉर्ड, लंदन इंटरनेशनल राइटर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन के जेम्स जॉयस पुरस्कार, सेंट लुइस साहित्यिक पुरस्कार, शिकागो पब्लिक लाइब्रेरी के कार्ल सैंडबर्ग पुरस्कार और एक यूएस नेशनल आर्ट्स अवार्ड से सम्मानित किया गया है। रश्दी पर हमले की संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस, फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों से लेकर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और ब्रिटेन के निवर्तमान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन समेत दुनिया भर के नेताओं ने निंदा की है।

इनपुट - एजेंसी

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