Russian Election 2024: पुतिन ने पांचवां कार्यकाल हासिल किया, 87.29 फीसदी वोट, 7.6 करोड़ लोगों ने रूसी राष्ट्रपति को दिया वोट
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 18, 2024 02:53 PM2024-03-18T14:53:47+5:302024-03-18T14:54:34+5:30
Russian Election 2024: रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने सोमवार को कहा कि करीब 100 फीसदी क्षेत्रों में पड़े मतों की गिनती कर ली गई है और पुतिन को 87.29 फीसदी वोट मिले हैं।
Russian Election 2024:रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने सोमवार को कहा कि देश में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में व्लादिमीर पुतिन ने जीत दर्ज की है और उन्होंने रिकॉर्ड मत प्रतिशत के साथ राष्ट्रपति पद का पांचवां कार्यकाल हासिल किया है। सोवियत काल के बाद से विपक्ष और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर की गई देश की सबसे क्रूर कार्रवाई के बीच चुनाव के ये नतीजे आए हैं। पुतिन के सामने नाममात्र के सिर्फ तीन उम्मीदवार थे और यूक्रेन युद्ध का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति को पुतिन के खिलाफ चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं थी।
पुतिन दिसंबर 1999 से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के तौर पर रूस का नेतृत्व कर रहे हैं। रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने सोमवार को कहा कि करीब 100 फीसदी क्षेत्रों में पड़े मतों की गिनती कर ली गई है और पुतिन को 87.29 फीसदी वोट मिले हैं। आयोग की प्रमुख एला पैम्फिलोवा ने कहा कि पुतिन के लिए करीब 7.6 करोड़ लोगों ने मतदान किया है जो उन्हें हासिल अब तक के सबसे ज्यादा वोट हैं।
क्रेमलिन में व्लादिमीर पुतिन के अगला कार्यकाल हासिल करने के साथ ही अपने नियंत्रण को वैध बनाने के लिए दिखावटी चुनावों का उपयोग वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र के मूल्य में जहर घोलता है। रूस के इतिहास में आठवीं बार राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हुआ है। पुतिन का फिर से राष्ट्रपति चुना जाना किसी के लिए भी हैरानी की बात नहीं है।
पुतिन उन तीन व्यक्तियों में से एक हैं जो 1991 में पहले लोकतांत्रिक चुनावों के बाद से राष्ट्रपति पद पर रहे हैं। साल 2000 में बोरिस येल्तसिन के स्थान पर राष्ट्रपति बने पुतिन ने चार साल का समय छोड़ कर, 24 साल तक देश पर प्रभावी रूप से शासन किया। बीच के चार साल का समय ‘‘अदला-बदली’’ वाला था जब पुतिन के करीबी सहयोगी दमित्री मेदवेदेव प्रधानमंत्री बने थे।
हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जब लोकतांत्रिक मूल्यों का हृास हुआ है। ‘फ्रीडम हाउस’ की ‘दुनिया में स्वतंत्रता 2024’ रिपोर्ट में कहा गया है कि हम आजादी में समग्र गिरावट का 18वां वर्ष देख रहे हैं। यह चुनावों में बढ़ते हेरफेर के कारण हुआ है। इन हथकंडों में मतपेटियों को अव्यवस्थित रूप से भरना, पक्षपाती नियम बनाना और सत्ताधारियों को लाभ पहुंचाने के लिए मीडिया कवरेज से लेकर परिष्कृत दुष्प्रचार अभियान तक शामिल हैं। यह साल कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद लेकर किए गए दुष्प्रचार के लिहाज से महत्वपूर्ण हो सकता है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले पहले ही एआई की मदद से तैयार की गई तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें राष्ट्रपति जो बाइडन को एक महिला का ‘स्विमसूट’ पहने हुए और डोनाल्ड ट्रंप को गिरफ्तार होते हुए दिखाया गया है। पिछली सदी के अंतिम दशकों में ऐसा लग रहा था कि लोकतंत्र फलेगा-फूलेगा क्योंकि कोई विकल्प नहीं था।
जबकि उसी समय नव-उदारवादी विचारधारा ने राष्ट्र में अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था। हमें यह भी मानना होगा कि जब असमानता बड़े पैमाने पर होती है तो लोकतंत्र काम नहीं करता है। जीन जैक्स राउसू ने ‘द सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ में लिखा है ‘‘धन के संबंध में, कोई भी नागरिक कभी इतना अमीर नहीं होगा कि दूसरे को खरीद सके, और इतना गरीब नहीं होगा कि खुद को बेचने के लिए मजबूर हो सके।’’ यहां मुद्दा यह है कि लोकतंत्र को नवीनीकरण की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो बहुत जल्द हमारे चुनाव उन चुनावी अंजीर के पत्तों से बेहतर नहीं रह जायेंगे जो आज की निरंकुशता को ढक देते हैं।