(अदिति खन्ना)
लंदन, तीन अगस्त कम और मध्यम आय (एलएमआईसी) वाले देशों में नवजात शिशुओं में जन्म से संबंधित मस्तिष्क क्षति के इलाज के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रक्रिया से मौत का खतरा बढ़ सकता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन के नेतृत्व में, भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश के कई अस्पतालों के साथ यह अध्ययन किया गया। ‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में 408 बच्चों के साथ चिकित्सीय हाइपोथर्मिया नामक एक तकनीक का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें जन्म से संबंधित संदग्धि मस्तिष्क क्षति हुई थी। यह तकनीक शिशु के शरीर के तापमान को एक प्रकार की ‘कूलिंग मैट’ पर रखकर चार डिग्री तक ठंडा करती है।
‘इंपीरियल कॉलेज लंदन के मस्तिष्क विज्ञान विभाग से अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रो. सुधीन थायिल ने कहा, ‘‘हेलिक्स परीक्षण से ये आंकड़े, उच्च गुणवत्ता वाले गहन देखभाल उपचार के साथ-साथ चिकित्सीय हाइपोथर्मिया का सुझाव देते हैं, एलएमआईसी में मस्तिष्क की चोट या मौत के खतरे को कम नहीं करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘निष्कर्ष यह भी सुझाव देते हैं कि उपचार प्राप्त करने वाले बच्चों की तुलना में उपचार से मौत का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए, हाइपोथर्मिया उपचार का उपयोग अब निम्न और मध्यम आय वाले देशों में नवजात मस्तिष्क विकृति के उपचार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।’’
प्रो थायिल ने कहा, ‘‘कोविड-19 ने उजागर किया है कि कैसे कुछ बीमारियां वंचित आबादी को अलग तरह से प्रभावित करती हैं। यह संभव है कि सामाजिक आर्थिक स्थिति, संक्रमण और पोषण की स्थिति, उदाहरण के लिए, उच्च आय वाले देशों में भी जन्म से संबंधित मस्तिष्क की चोट को प्रभावित कर सकती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जन्म से संबंधित मस्तिष्क की चोट के लिए नए उपचार को रोकने और विकसित करने के लिए इन कारकों के कारण अजन्मे बच्चों में मस्तिष्क की चोट कैसे होती है, इस पर सावधानीपूर्वक शोध करना महत्वपूर्ण है।
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