ग्लासगो, दो नवंबर भारत ने मंगलवार को छोटे द्वीपीय देशों में बुनियादी ढांचे के विकास की खातिर एक महत्वाकांक्षी पहल की शुरुआत की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह पहल उन सबसे संवेदनशील देशों के लिए कुछ करने की नयी उम्मीद, नया आत्मविश्वास और संतोष प्रदान करती है, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रहे हैं।
जलवायु शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन यहां इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस भी शामिल हुए।
मोदी ने कहा कि ‘‘छोटे द्वीपीय देशों के लिए लचीली आधारभूत संरचना’’ (आईआरआईएस) पहल एक नयी आशा, एक नया आत्मविश्वास प्रदान करती है तथा इस पहल से सबसे संवेदनशील के लिए कुछ करने का संतोष मिलता है।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ दशकों ने साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से कोई भी देश नहीं बच पाया है। चाहे वे विकसित देश हों या प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश, यह सभी के लिए एक बड़ा खतरा है।"
मोदी ने कहा कि छोटे द्वीपीय विकासशील देशों या एसआईडीएस को जलवायु परिवर्तन से सबसे बड़े खतरे का सामना करना पड़ता है तथा यह उनके लिए जीवन और मौत मामला है तथा उनके अस्तित्व के लिए एक चुनौती है।
उन्होंने कहा, "जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाएं उनके लिए सचमुच तबाही ला सकती हैं। ऐसे देशों में, जलवायु परिवर्तन न केवल लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी एक प्रमुख चुनौती है।"
उन्होंने कहा कि ऐसे देश पर्यटन पर निर्भर हैं, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के कारण पर्यटक भी वहां जाने से डरते हैं।
मोदी ने कहा कि एसआईडीएस देश सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते आए हैं और उन्हें मालूम है कि प्रकृति के प्राकृतिक चक्रों से कैसे सामंजस्य बिठाना है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन पिछले कई दशकों के स्वार्थी आचरण के कारण प्रकृति का अप्राकृतिक रूप सामने आया है और इसका परिणाम आज निर्दोष छोटे द्वीपीय देश भुगत रहे हैं।"
प्रधानमंत्री ने इस पहल की खातिर ‘‘आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन’’ (सीडीआरआई) को बधाई दी और कहा कि उनके लिए सीडीआरआई या आईआरआईएस केवल बुनियादी ढांचे नहीं हैं बल्कि यह मानव कल्याण की बहुत संवेदनशील जिम्मेदारी का हिस्सा हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, "यह मानव जाति के प्रति हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। एक प्रकार से यह हमारे पापों का साझा प्रायश्चित है। उन्होंने कहा कि भारत ने जलवायु परिवर्तन के खतरों के मद्देनजर प्रशांत द्वीप समूह और ‘कैरिकॉम’ देशों के साथ सहयोग के लिए विशेष व्यवस्था की है। उन्होंने कहा कि भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो उनके लिए एक विशेष ‘डेटा विंडो’ बनाएगी ताकि उन्हें उपग्रह के जरिए चक्रवात, ‘कोरल-रीफ’ निगरानी, तट-रेखा निगरानी आदि के बारे में समय पर जानकारी प्रदान की जा सके।
आईआरआईएस की शुरुआत को काफी अहम करार देते हुए मोदी ने कहा कि इस पहल से एसआईडीएस के लिए प्रौद्योगिकी जुटाना, जरूरी सूचनाओं के लिए जल्दी वित्तपोषित करना आसान होगा। उन्होंने कहा, "छोटे द्वीपीय देशों में गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने से वहां के जीवन और आजीविका दोनों को फायदा होगा।"
उन्होंने कहा, "मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि भारत इस नयी परियोजना का पूरा समर्थन करेगा और इसकी कामयाबी के लिए सीडीआरआई, अन्य सहयोगी देशों तथा संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करेगा।"
इस मौके पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा कि वह सीडीआरआई के नेतृत्व के लिए अपने मित्र और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुत आभारी हैं। उन्होंने कहा कि मोदी लंबे समय से इसमें आगे रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह अस्तित्व से जुड़ा खतरा है... पिछले साल, ग्रीनलैंड में 600 अरब बर्फ पिघल गई थी।’’ उन्होंने कहा कि यह कटु सत्य है कि ऐसे कमजोर व छोटे द्वीपीय देश ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण होने वाला नुकसान झेलने में सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि समस्या पैदा करने में उन देशों की कोई भूमिका नहीं है और उन्होंने वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड की भारी मात्रा का उत्सर्जन भी नहीं किया है।
जॉनसन ने कहा कि ब्रिटेन आईआरआईएस पहल में आर्थिक रूप से योगदान दे रहा है। वहीं ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने सीडीआरआई नेतृत्व के लिए भारत और ब्रिटेन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, "मैं भारत के सीडीआरआई के लिए अमेरिका और जापान के समर्थन सहित क्वाड के समर्थन को स्वीकार करता हूं।"
आईआरआईएस पहल ‘‘आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन’’ का हिस्सा है, जिसके तहत विशेष रूप से छोटे द्वीपीय विकासशील देशों में प्रायोगिक परियोजनाओं के साथ क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना है।
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