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कोविड-19 के गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज में कारगर साबित हुई नई दवा RLF-100

By भाषा | Updated: August 6, 2020 10:19 IST

ह्यूस्टन मेथडिस्ट अस्पताल ने इस दवा के इस्तेमाल से वेंटीलेटर वाले मरीजों के तेजी से स्वस्थ होने की जानकारी दी है।

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ठळक मुद्देदुनिया भर में कोरोना वायरस के 1.87 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैंविश्व भर में कोरोना वायरस से अब तक 7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है

अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में एक अस्पताल के डॉक्टरों ने आरएलएफ-100 नाम की नयी दवा का इस्तेमाल किया है, जिससे गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 के वे मरीज तेजी से स्वस्थ हुए जिन्हें सांस लेने में कठिनाई की शिकायत थी। इस दवा को एविप्टाडिल नाम से भी जाना जाता है। एफडीए ने आपात स्थिति में इस्तेमाल के लिए इस दवा को मंजूरी दे दी है।

न्यूरोएक्स और रिलीफ थेराप्यूटिक्स ने मिलकर इस दवा को विकसित किया है। दवा बनाने वाली कंपनी न्यूरोएक्स के एक बयान के अनुसार स्वतंत्र अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि एविप्टाडिल मानव फेफड़ों की कोशिकाओं और मोनोसाइट्स में सार्स कोरोना वायरस की प्रतिकृति बनने से रोकता है।

रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 की चपेट में आया 54 वर्षीय व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार होने के बाद इस दवा के इस्तेमाल से चार दिन के भीतर वेंटीलेटर से हट गया। इसके अलावा 15 से अधिक मरीजों पर भी इलाज के ऐसे ही नतीजे देखे गए। न्यूरोएक्स के सीईओ और अध्यक्ष प्रोफेसर जोनाथन जैविट ने कहा, ‘‘अन्य किसी भी वायरल रोधी एजेंट ने वायरल संक्रमण से इतनी तेजी से उबरने की दर नहीं दिखाई।’’ 

भारत की दूसरी कोविड-19 वैक्सीन ZyCoV-D का आज से शुरू होगा दूसरा ह्यूमन ट्रायल

भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच दवा कंपनी जायडस केडिला (Zydus Cadila) ने कोविड-19 के इलाज के लिए अपनी वैक्सीन 'जायकोव- डी' (ZyCoV-D) के दूसरे चरण का 6 अगस्त से लोगों पर चिकित्सकीय परीक्षण शुरू करेगी। इसके पहले चरण का चिकित्सकीय परीक्षण पूरा हो गया है। 

पहले चरण में सुरक्षित पाई गई वैक्सीनलाइव मिंट के अनुसार, कंपनी ने कहा है कि पहले चरण के चिकित्सकीय परीक्षण में जायकोव- डी को सुरक्षित और सहनीय पाया गया। कंपनी अब 6 अगस्त 2020 से दूसरे चरण का चिकित्सकीय परीक्षण शुरू करेगी। 

जायडस केडिला के चेयरमैन पंकज आर पटेल ने कहा कि पहले चरण में दी गई दवा में जायकोव-डी को सुरक्षित पाना महत्वपूर्ण पड़ाव है जिसे हासिल किया गया। उन्होंने कहा कि पहले चरण में जिन लोगों पर भी चिकित्सकीय परीक्षण किया गया उनकी दवा देने के 24 घंटे तक चिकित्सा यूनिट में पूरी तरह देखभाल की गई। उसके बाद सात दिन तक उनकी निगरानी की गई जिसमें टीके को पूरी तरह सुरक्षित पाया गया।

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