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प्रशिक्षित दाइयों की अधिक संख्या से वर्ष 2035 तक लाखों जिंदगियां बचाई जा सकती है: लांसेट रिर्पोट

By भाषा | Updated: December 2, 2020 16:21 IST

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लंदन, दो दिसंबर दाइयों की संख्या और देखरेख करने की उनकी क्षमता में सुधार कर अगले 15 साल में करीब 43 लाख जिदंगियां बचाई जा सकती है, खासतौर पर निम्न और मध्य आय वर्ग वाले देशों में। यह आकलन लांसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पेश किया गया है।

मॉडल के आधार पर किए गए अध्ययन एवं पूर्वानुमान के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रशिक्षित दाइयों नीत देखभाल बढ़ाने से मातृ मृत्युदर में 67 प्रतिशत और शिशु मृत्युदर में 64 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है जबकि प्रसव पूर्व भ्रूण के नष्ट होने के 65 प्रतिशत मामलों को टाला जा सकता है। इसके लिए परिवार नियोजन से बच्चे के जन्म के बाद के देखभाल में दाइयों के विस्तृत हस्तक्षेप की जरूरत है।

अनुसंधानकर्ताओं का आकलन है कि दाइयों की भूमिका बढ़ा कर वर्ष 2035 तक 43 लाख जिदंगियां बचाई जा सकती हैं।

अनुसंधान पत्र की प्रमुख लेखक व ब्रिटेन स्थित नोवामेट्रिक लिमिटेड में कार्यरत एंड्रिया नोव ने कहा, ‘‘उचित पेशेवर शिक्षा, नियमन और काम करने के बेहतर वातावरण बनाकर प्रसव में दाइयों की भूमिका को उल्लेखनीय स्तर पर बढ़ाया जा सकता है। इससे लाखों जिंदगियां बच सकती हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, उनकी भूमिका बढ़ाने में कई बाधाएं हैं, खासतौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में। ’’

नोव ने इन परिसीमाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रशिक्षित दाइयों का असमान वितरण, खराब परिवहन व्यवस्था, उपकरणों की आपूर्ति में कमी और कुछ देशों में लोगों के बीच इन दाइयों के प्रति विश्वास की कमी बड़ी बाधा है।

उन्होंने कहा कि संभावित लोगों तक इन सेवाओं को पहुंचाने के लिए इनको जनता में मान्यता दिलाना बहुत अहम है।

नए अध्ययन में पूर्व में लांसेट जर्नल में इस विषय पर प्रकाशित रिर्पोट का अनुकरण किया गया है और ‘‘लाइव्ज सेव्ड टूल’ (लिस्ट)का इस्तेमाल किया गया है जिसके जरिये कुछ उपायों को करने पर मौतों के टालने का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

‘लिस्ट’ के अद्यतन संस्करण का इस्तेमाल मौजूदा अध्ययन में किया गया है जिसका उद्देश्य दुनिया के स्वास्थ्य सेवा में दाइयों की भूमिका बढ़ने पर उसके सटीक असर का आकलन करना है। इसमें 30 आवश्यक उपायों के आधार पर 88 देशों का आकलन किया गया है।

अध्ययन में उपरोक्त बिंदुओं का आकलन करने पर कहा गया कि अगर इन 88 देशों में मौजूदा मृत्युदर बनी रहती है तो वर्ष 2035 तक 30 लाख अजन्मे बच्चों, 30 लाख शिशुओं की और चार लाख माओं की मौत हो सकती है।

लांसेट में प्रकाशित अनुसंधान के मुताबिक अगर इन 88 देशों में अगले पांच साल में दाइयों द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधा में 25 प्रतिशत की वृद्धि की जाती है तो अनुमान है कि 41 प्रतिशत कम महिलाओं की प्रसव के दौरान मौत होगी जबकि अजन्में बच्चों की मौत के मामलों में 39 प्रतशित और शिशु मृत्युदर में 26 प्रतिशत की कमी लाइ जा सकती है।

अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार वर्ष 2035 तक 1,70,000 मातृ मृत्यु, 8,52,000 अजन्मे बच्चे और 12 लाख शिशुओं की संभावित मौत रोकी जा सकती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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