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कोविड-19 टीकों को लेकर भ्रामक धारणाओं को दूर करना जरूरी

By भाषा | Updated: August 1, 2021 13:05 IST

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(नीलावेनी पदायाची, यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सरैंड और वर्षा बांगली, यूनिवर्सिटी ऑफ क्वाजुलू-नटाल)

जोहानिसबर्ग/डरबन, एक अगस्त (द कन्वरसेशन) दक्षिण अफ्रीका में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 रोधी टीकाकरण कार्यक्रम को तीन चरणों में शुरू किया था। पहले चरण में अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों को जॉनसन ऐंड जॉनसन के कोविड रोधी टीके लगाए गए, दूसरे चरण में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का टीकाकरण किया गया और तीसरे एवं अंतिम चरण में बाकी की आबादी को टीके लगाए गए।

फरवरी 2021 में शुरू हुए टीकाकरण कार्यक्रम में कई चुनौतियां आईं, मसलन टीकों की आपूर्ति, संसाधन और शासन संबंधी मुद्दे थे और इन सबसे पार पाते हुए कार्यक्रम को हाल के हफ्तों में रफ्तार मिली। अब प्रतिदिन दो लाख खुराक लगाई जा रही हैं। हालांकि अब भी दक्षिण अफ्रीका के अनेक लोगों में टीका लगवाने को लेकर हिचक है। टीकों के संबंध में भ्रामक जानकारियों के कारण ऐसा खतरा है कि महामारी को काबू में करने के प्रयास प्रभावित हो सकते हैं।

इस लेख में हमारा उद्देश्य कोविड-19 रोधी टीकों के संबंध में ऐसे ही कुछ भ्रमों या मिथकों को दूर करना है।

पहला भ्रम: कोविड-19 रोधी टीके से महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होगी।

यह भ्रम दिसंबर 2020 में तब पैदा हुआ जब फाइजर में एलर्जी एवं रेस्पिरेटरी थेरेपी के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक एवं फिजिशियन डॉ. वोल्फगांग वोडार्ग और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. माइकल यीडॉन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की। इसमें उन्होंने दावा किया कि कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन गर्भावस्था के दौरान गर्भनाल के विकास के लिए जिम्मेदार स्पाइक प्रोटीन के जैसा ही है। आशंका जताई गई कि टीके के परिणामस्वरूप रोग प्रतिरोधक क्षमता दोनों स्पाइक प्रोटीन में अंतर नहीं कर पाएगी और गर्भनाल वाले प्रोटीन पर हमला कर देगी।

यह गलत है। गर्भनाल के प्रोटीन की बनावट कोरोना वायरस के प्रोटीन से काफी अलग है। बल्कि फाइजर टीकों के परीक्षण के दौरान 23 महिलाओं ने टीका लगवाने के बाद गर्भ धारण किया।

दूसरा भ्रम: कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आने के बाद टीका लगवाने की जरूरत नहीं है।

ऐसे लोग जिन्हें कोरोना वायरस संक्रमण एक बार चपेट में ले चुका है वे भी दोबारा संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन टीका कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जटिलताओं से बचाव करता है। व्यक्ति के संक्रमित होने के बाद जो प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होती है वह किस हद तक बचाव करती है यह अभी ज्ञात नहीं है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि टीका प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता के मुकाबले अधिक सुरक्षा प्रदान करता है।

तीसरा भ्रम: कोविड-19 रोधी टीके के खतरनाक दुष्प्रभाव होते हैं

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद से ऐसे अनेक अध्ययन हुए हैं जिनमें टीके को लेकर दक्षिण अफ्रीका के लोगों की सोच पता लगाने का प्रयास किया गया। जोहानिसबर्ग विश्वविद्यालय और दक्षिण अफ्रीका के मानव विज्ञान अनुसंधान परिषद ने हाल में एक अध्ययन किया जिसमें पाया गया कि जो लोग टीका नहीं लगवाना चाहते हैं उनमें से 25 फीसदी लोग टीकों के दुष्प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।

दरअसल कोविड रोधी टीकों के ज्यादातर दुष्प्रभाव मामूली होते हैं। इनमें हल्का बुखार, बांह में दर्द और थकान जैसी परेशानियां होती हैं जो एक से तीन दिन के भीतर ठीक हो जाती हैं। कुछ दुष्प्रभाव जो बहुत ही कम मामलों में सामने आते हैं, उनमें खून का थक्का जमने जैसे मामले हैं जो जॉनसन ऐंड जॉनसन का टीका लगवाने पर सामने आए लेकिन इसके बहुत कम मामले सामने आए हैं। टीकों को सुरक्षित माना गया है।

चौथा भ्रम: टीकों में माइक्रोचिप है जो इन्हें लगवाने वाले व्यक्तियों पर नजर रखने और उस पर नियंत्रण रखने का काम करता है।

यह दुष्प्रचार ऐसे लोगों ने किया है जिनका मानना है कि अमेरिका के कारोबारी बिल गेट्स टीके के जरिए लोगों में माइक्रोचिप लगवा देंगे, इसके जरिए उन पर नजर रखेंगे। यह गलत है और गेट्स मीडिया में इस बारे में स्पष्टीकरण दे चुके हैं।

फेसबुक पर एक वीडियो से इस भ्रामक धारणा ने जोर पकड़ा था। इसी वीडियो में कोविड-19 रोधी टीके की सिरिंज के लेबल पर लगे वैकल्पिक माइक्रोचिप को लेकर झूठे दावे किए गए। इस माइक्रोचिप का उद्देश्य यह पुष्टि करना है कि टीके की खुराक नकली नहीं है और इसकी उपयोग की अवधि समाप्त नहीं हुई है। इससे यह भी पता चलता है कि इंजेक्शन का इस्तेमाल हो चुका है।

वीडियो में टिप्पणी करने वाले लोग इस तकनीक को इंजेक्ट करने वाली खुराक से जोड़ते दिखे। जबकि यह माइक्रोचिप सिरिंज के लेबल का हिस्सा है, ना कि टीके की खुराक से इसका कोई संबंध है।

भ्रम 5: कोविड-19 रोधी टीके के विकास में हड़बड़ी की गई इसलिए यह प्रभावी नहीं है।

टीके का विकास तेजी से हुआ क्योंकि टीके की प्रौद्योगिकी सालों से विकास के क्रम में रही है। जब सार्स-सीओवी-2 की अनुवांशिक जानकारी मिली तो प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई। इसके अलावा अनुसंधान के वित्तपोषण के लिए पर्याप्त संसाधन थे, वहीं सोशल मीडिया की मदद से क्लिनिकल परीक्षणों के लिहाज से प्रतिभागियों को शामिल करना आसान रहा।

भ्रम 6: कोविड-19 टीके से डीएनए में बदलाव हो सकता है

मैसेंजर आरएनए टीका (फाइजर का) और वायरल वेक्टर टीका (जॉनसन ऐंड जॉनसन का) शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करते हैं। इसलिए जब आप सार्स-सीओवी-2 वायरस से संक्रमित होते हैं तो आपका शरीर वायरस से लड़ने के लिए तैयार होता है। डीएनए आपके शरीर में कोशिकाओं के केंद्रक में होते हैं और टीके की दवा केंद्रक में प्रवेश नहीं करती। इसलिए डीएनए में बदलाव की आशंका गलत है।

सोशल मीडिया मिथकों और भ्रामक धारणाओं को प्रसारित करने में बड़ी भूमिका निभाता है। इसलिए ऐसी कोई जानकारी साझा करने से पहले आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि यह वैज्ञानिक और प्रामाणिक स्रोत से प्राप्त हुई है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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