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मस्तिष्क में किस तरह से बढ़ता है अल्जाइमर: अनुसंधान में आया सामने

By भाषा | Updated: October 31, 2021 14:02 IST

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(जॉर्ज मिसल, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय)

कैम्ब्रिज (ब्रिटेन), 31 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग अल्जाइमर और अन्य तरह की डिमेंशिया से प्रभावित हैं लेकिन दुनिया में इसका प्रभावी इलाज के संबंध में प्रगति धीमी है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अब भी इस बीमारी के पीछे की वजह या यह किस तरह से बढ़ता है, इसके बारे में ज्यादा समझ नहीं बन पाई है।

'साइंस एडवांसेस' में प्रकाशित जॉर्ज मिसल और उनके सहकर्मियों के हालिया अनुसंधान में अल्जाइमर रोगियों के आंकड़ों का विश्लेषण विज्ञान के अन्य क्षेत्रों का इस्तेमाल करके किया गया। इस तरह से अनुसंधानकर्ता मस्तिष्क में अल्जाइमर बीमारी के बढ़ने को रोकने की प्रक्रिया के संबंध में बेहतर समझ बनाने में सक्षम हुए।

इसकी पृष्ठभूमि को इस तरह से समझा जा सकता है कि अल्जाइमर की बीमारी और तंत्रिका तंत्र से संबंधित अन्य बीमारियों में प्रोटीन, जो कि सामान्य तौर पर स्वस्थ मस्तिष्क कोशिकाओं का हिस्सा होते है, वे सूक्ष्म गुच्छों में एकसाथ चिपकने लगते हैं। मरीज के मस्तिष्क में ये गुच्छे के रूप में जमा होने लगते हैं, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं और स्मृति लोप होने संबंधी लक्षण दिखने लगते हैं।

जैसे-जैसे इन गुच्छों की संख्या बढ़ती जाती है, बीमारी बढ़ती जाती है और हल्के लक्षण सामने आने के वर्षों बाद मौत तक हो जाती है। इन गुच्छों के जमा होने के पीछे कई प्रक्रियाएं जिम्मेदार हो सकती हैं लेकिन अब तक विस्तार से वैज्ञानिकों के हाथ यह जानकारी नहीं लग पाई है कि आखिर ये गुच्छे बन कैसे जाते हैं और इन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।

अल्जाइमर की बीमारी का अनुसंधान अक्सर प्रयोगशाला जीवों जैसे कि चूहों पर किया जाता है। यह बीमारी के आनुवांशिक कारकों के प्रभाव का अध्ययन करने में तो प्रभावी होते हैं लेकिन यह बीमारी का पूरी तरह पता लगाने के लिए अनुसंधान का अच्छा तरीका नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अल्जाइमर को मनुष्य में विकसित होने में आम तौर पर दशकों का समय लगता है जबकि प्रयोगशाला में इन जीवों पर अध्ययन कुछ समय के लिए ही किया जा सकता है। इस कमी को ही दूर करने के लिए नया अनुसंधान किया गया और इसमें फिजिकल केमेस्ट्री (भौतिक रसायन) जिसे केमिकल काइनेटिक्स कहा जाता है, इसका इस्तेमाल किया गया। इससे यह समझा जा सकता है कि अणु किस तरह से एक-दूसरे से संपर्क करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्लीच कैसे रंगीन अणुओं को नष्ट कर देते हैं, इसका पता सिर्फ यह देखकर लगाया जा सकता है कि ब्लीच जब लगाया गया तो कितनी तेजी से दाग गायब हुए।

हालांकि, अल्जाइमर की बीमारी में यह समझना पेंचीदा है लेकिन इसी तरह का अध्ययन यह समझने में किया गया कि अल्जाइमर से ग्रसित मनुष्य के मस्तिष्क में गुच्छे कैसे बनते हैं।

गत 10 वर्षों से केमिकल कानेटिक्स का इस्तेमाल करके जांच की गई। परिणाम में यह सामने आया कि रोगियों के मस्तिष्क में प्रोटीन के गुच्छे तेजी से बढ़ते हैं, जिसका मतलब है कि एक गुच्छे निश्चित अवधि के बाद दो गुच्छे उत्पन्न करते हैं और फिर यह समय के साथ चार में तब्दील हो जाते हैं और इस तरह यह बढ़ता रहता है।

जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान यह सामने आया कि प्रसार शुरू में तो धीमा लग सकता है लेकिन फिर अचानक तेजी से बढ़ने लगता है। अल्जाइर में भी कुछ ऐसा ही होता है, मरीज में शुरू में या तो लक्षण सामने नहीं आते या आंशिक लक्षण दिखते हैं और इसी दौरान प्रोटीन के गुच्छे बन रह होते हैं जो बाद में तेजी से बढ़ने लगते हैं।

इस अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि मानव मस्तिष्क इन गुच्छों की संख्या को रोकने में काफी अच्छा काम करता है। यह पता चला कि गुच्छों के दोगुना होने में करीब पांच साल का समय लगा। इस अध्ययन का हवाला देते हुए बताया गया कि कोविड-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिए देशों के बीच यात्रा रोकना बेहद प्रभावी कदम नहीं हो सकता है जब मूल देश में पहले से ही उल्लेखनीय रूप से संक्रमित लोगों की मौजूदगी पहले से ही हो।

इसी तरह से मस्तिष्क क्षेत्रों के बीच गुच्छों के प्रसार को रोकना अल्जाइमर के एक बार शुरू हो जाने के बाद इसे धीमा करने में नाकाफी हो सकता है। उम्मीद है कि मस्तिष्क के अलग-अलग क्षेत्र में इन गुच्छों के बढ़ने को लक्षित करना आशाजनक रणनीति हो। शायद एक दिन ऐसा करने में अनुसंधानकर्ता कामयाब हो जाएं और मरीजों को स्वस्थ जीवन जीने के और भी कई वर्ष मिल जाएं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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