नेपाल में सदन भंग करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नयी संविधान पीठ का गठन

By भाषा | Published: June 6, 2021 03:04 PM2021-06-06T15:04:12+5:302021-06-06T15:04:12+5:30

Formation of a new constitution bench to hear petitions filed against dissolution of the house in Nepal | नेपाल में सदन भंग करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नयी संविधान पीठ का गठन

नेपाल में सदन भंग करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नयी संविधान पीठ का गठन

काठमांडू, छह जून नेपाल में प्रतिनिधि सभा को 22 मई को भंग किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए रविवार को देश की शीर्ष अदालत की एक संविधान पीठ का गठन किया गया। मीडिया में आई खबरों में यह जानकारी दी गई है।

पीठ का गठन नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्तियों के वरिष्ठता क्रम और विशेषज्ञता के आधार पर किया है।

हिमालयन टाइम्स की खबर के मुताबिक नयी संविधान पीठ में न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई, न्यायमूर्ति मीरा ढुंगना, न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और स्वयं प्रधान न्यायाधीश शामिल हैं।

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने अल्पमत सरकार की अगुवाई कर रहे प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सलाह पर 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को पांच महीनों में दूसरी बार 22 मई को भंग कर दिया था और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी।

न्यायमूर्ति विशंभर प्रसाद श्रेष्ठ के बीमार पड़ने के बाद उनके क्रमानुयायी न्यायमूर्ति भट्टाराई और न्यायमूर्ति खातीवाड़ा को संविधान पीठ में शामिल किया गया है।

इससे पहले, संविधान पीठ के गठन में एक विवाद के चलते सुनवाई प्रभावित हुई थी।

खबर के मुताबिक प्रधान न्यायाधीश राणा ने इससे पहले पीठ के लिए न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई, न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ को चुना था जो “असंवैधानिक” तौर पर सदन को भंग किये जाने के खिलाफ दायर करीब 30 याचिकाओं पर सुनवाई करती।

भंग किए गए सदन के करीब 146 सदस्यों ने भी सदन की बहाली के अनुरोध के साथ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है। इनमें नेपाल कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा भी शामिल हैं जिन्होंने संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के तहत नयी सरकार के गठन का दावा भी पेश किया था।

राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी गठबंधन दोनों के सरकार बनाने के दावे को खारिज करते हुए कहा था कि “दावे अपर्याप्त” हैं।

विवाद उस वक्त खड़ा हो गया था जब देउबा के वकील ने उन दो न्यायमूर्तियों को संविधान पीठ में शामिल करने पर सवाल खड़े किए थे जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के एकीकरण एवं पंजीकरण के पुनर्विचार मामले में पूर्व में फैसला ले चुके हैं।

न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ के पीठ न छोड़ने का फैसला लेने के बाद, दो अन्य न्यायामूर्तियों ने पीठ से खुद को अलग कर लिया। इससे प्रधान न्यायाधीश राणा को पीठ का पुनर्गठन करने पर मजबूर होना पड़ा।

इस बीच, विपक्ष के गठबंधन ने ओली सरकार द्वारा कैबिनेट में फेरबदल किए जाने की शनिवार को निंदा की।

ओली ने शुक्रवार को मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था। नये कैबिनेट में तीन उप प्रधानमंत्री, 12 कैबिनेट मंत्री और दो राज्य मंत्री हैं।

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