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विदेश मंत्री जयशंकर ने रूसी समकक्ष के साथ परमाणु,अंतरिक्ष और रक्षा सहयोग पर चर्चा की

By भाषा | Updated: July 9, 2021 22:05 IST

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: शब्द सुधार के साथ:

मास्को, नौ जुलाई विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ सार्थक बातचीत करते हुए कहा कि “समय की कसौटी पर खरा और विश्वास आधारित” रिश्ता मजबूत बना हुआ है और बढ़ रहा है। दोनों विदेश मंत्रियों ने मित्र राष्ट्रों के बीच अंतरिक्ष, परमाणु, उर्जा और रक्षा सहयोग के क्षेत्र में प्रगति की समीक्षा की।

तीन दिवसीय दौरे पर यहां आए जयशंकर ने अफगानिस्तान, ईरान और सीरिया में स्थिति जैसे वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की।

उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच इस साल बाद में होने वाली शिखर बैठक की तैयारियों को लेकर “अच्छी प्रगति की।” जयशंकर ने कहा, “मैं कहूंगा कि बातचीत हमेशा की तरह बेहद गर्मजोशी के साथ, आरामदायक, समग्र और सार्थक हुई।”

जयशंकर ने कहा कि लैवरोव के साथ बातचीत यह दिखाती है कि “इस तथ्य के बावजूद की कोविड-19 महामारी के पहले और परिणामस्वरूप दुनिया में बहुत सी चीजें बदल रही हैं लेकिन हमारा समय की कसौटी पर खरा और विश्वास आधारित रिश्ता न सिर्फ अपनी जगह कायम है बल्कि बहुत मजबूत है और लगातार बढ़ रहा है।” उन्होंने महामारी की दूसरी लहर के दौरान रूस द्वारा भारत को दिए गए समर्थन की भी सराहना की।

उन्होंने कहा कि रूस के साथ अपने रिश्ते को भारत वैश्विक शांति, सुरक्षा और स्थायित्व में योगदान देने वाला मानता है।

जयशंकर ने कहा, “मेरा मानना है कि बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में हमारा विश्वास एक साथ हमारे काम करने को इतना स्वाभाविक व सुगम बनाता है। हम 21वीं सदी में इसे अंतर-राष्ट्रीय संबंधों के विकास की एक बेहद स्वाभाविक व अपरिहार्य प्रक्रिया का प्रतिबिंब मानते हैं।”

जयशंकर ने कहा कि हमारी अधिकांश बातचीत हमारे व्यापक सहयोग के विभिन्न आयामों में प्रगति की समीक्षा को लेकर थी। हमनें काफी अच्छी प्रगति की।

उन्होंने कहा, “हमनें वास्तव में काफी अच्छी प्रगति की है भले ही बीते एक साल में इनमें से काफी कुछ डिजिटल संपर्क के माध्यमों से हुआ लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि जब इस साल वार्षिक द्विपक्षीय बैठक होगी तब हमारे सहयोग में विकास और प्रगति काफी कुछ आपके समक्ष प्रदर्शित होगी।”

उन्होंन कहा, “हमारे रिश्तों में एक नया आयाम जुड़ा है और वह विदेश और रक्षा मंत्रियों के 2+2 डायलॉग आयोजित करने को लेकर हुआ समझौता है। हमें लगता है कि हमें इस साल परस्पर सुविधा के मुताबिक किसी समय इसे करना चाहिए। हम अपने रिश्तों के समग्र विकास से संतुष्ट हैं।”

उन्होंने कहा, “हमारे सहयोग का काफी कुछ अंतरिक्ष, परमाणु, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में केंद्रित है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना पटरी पर है।” उन्होंने कहा कि रूस अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का मूल और सबसे मजबूत साझेदार है और अंतरिक का हमारे रिश्तों के लिये व्यवहारिक व प्रतीकात्मक महत्व दोनो है।

उन्होंने कहा, “बीते कुछ वर्षों में ऊर्जा सहयोग महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा है और तेल व गैस के क्षेत्र में संभावित निवेशों और दीर्घकालिक निवेश की प्रतिबद्धताओं से यह परिलक्षित होता है।” उन्होंने कहा, “रक्षा सैन्य-तकनीकी सहयोग पर मैं कहूंगा कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में रूसी रूचि से औद्योगिक सहयोग मजबूत हुआ है।”

दोनों विदेश मंत्रियों ने अंतर-क्षेत्रीय सहयोग खासकर रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी चर्चा की।

उन्होंने कहा, “हमनें बात की कि हम इसे कैसे आगे लेकर जा सकते हैं, कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर होने हैं, मुझे लगता है कि हमनें वहां कुछ प्रगति की है। हमने संपर्कता पर चर्चा की खास तौर पर उत्तर-दक्षिण गलियारा…चेन्नई व्लाडिवोस्टक पूर्वी समुद्री गलियारे पर भी।”

दोनों नेताओं ने ब्रिक्स और आरआईसी में सहयोग पर भी चर्चा की। भारत फिलहाल ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और आरआईसी (रूस, भारत, चीन) समूहों का अध्यक्ष है।

दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा की जहां तालिबानी आतंकवादियों ने हाल के हफ्तों में दर्जनों जिलों पर कब्जा जमाया और ऐसा माना जा रहा है कि देश के एक तिहाई हिस्से पर उसका नियंत्रण है।

जयशंकर ने कहा, “अफगानिस्तान में स्थिति ने हमारा काफी ध्यान खींचा है क्योंकि क्षेत्रीय सुरक्षा पर इसका सीधा असर है। हमारा जोर इस बात पर है कि हिंसा रूकनी चाहिए। अफगानिस्तान में हालात का समाधान हिंसा नहीं हो सकती। ”

विदेश मंत्री ने कहा, “हम अफगानिस्तान और उसके आसपास शांति चाहते हैं तो भारत और रूस के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए साथ मिलकर काम करें कि आर्थिक, सामाजिक क्षेत्र में प्रगति बरकरार रखी जाए। हम एक स्वतंत्र, सम्प्रभु और लोकतांत्रिक अफगानिस्तान बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

उन्होंने सीरिया और लीबिया में स्थिति पर भी चर्चा की।

जयशंकर ने हिंद-प्रशांत पर भी अपना नजरिया साझा किया। इस क्षेत्र में चीन का आक्रामक रुख देखा गया है।

उन्होंने कहा, “निश्चित तौर पर रूस के साथ हमारी व्यापक भू-राजनीतिक अनुकूलता के कारण इस क्षेत्र में हम रूस की अधिक सक्रिय मौजूदगी और भागीदारी को बेहद महत्वपूर्ण रूप में देखते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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