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क्या श्रीलंका ने चीन के खोजी पोत को हंबनटोटा आने से मना किया? चीनी विदेश मंत्रालय ने दिया जवाब

By शिवेंद्र राय | Updated: August 9, 2022 13:41 IST

उच्च तकनीक वाले अनुसंधान पोत 'युआन वांग-5' का इस्तेमाल चीन सैटेलाइट निगरानी के अलावा रॉकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों की लॉन्चिंग में भी करता है। इस पोत को 11 से 17 अगस्त तक श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दी गई थी जिसका भारत ने विरोध किया था।

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ठळक मुद्देचीनी अनुसंधान पोत के श्रीलंका पहुंचने पर स्थिति स्पष्ट नहींश्रीलंका के मना करने के सवाल का चीनी विदेश मंत्रालय ने दिया जवाबभारत ने श्रीलंका के समक्ष दर्ज कराई थी आपत्ति

बीजिंग: शोध और अनुसंधान में महारत रखने वाले चीनी नौसेना के जहाज  'यूआन वांग 5' के श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर आने को लेकर भारत ने श्रीलंका के सामने अपनी आपत्ति जताई थी और चिंताओं से अवगत कराया था। इसके बाद खबर आई थी कि भारत की आपत्ति और सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए श्रीलंका ने चीन से अपने पोत की यात्रा को टालने को कहा है। अब इस मामले में चीनी विदेश मंत्रालय की भी प्रतिक्रिया आई है।

अंग्रेजी अखबार द हिंदू के अनुसार, इस सवाल के जवाब में कि क्या श्रीलंका ने चीन से कहा है कि 'यूआन वांग 5' के हंबनटोटा आने की योजना को अभी टाल दिया जाए? चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने अपनी प्रतिक्रिया दी।  वांग वेनबिन ने कहा,  ''मैंने इससे जुड़ी रिपोर्ट्स देखी हैं और मैं इस मामले में दो बिंदुओं पर अपनी बात रखूंगा। पहली बात यह कि श्रीलंका हिन्द महासागर में ट्रांसपोर्टेशन हब है। वैज्ञानिक शोध से जुड़े पोत कई देशों के पोत श्रीलंका ईंधन भरवाने जाते हैं और इनमें चीन भी शामिल है। चीन हमेशा से नियम के मुताबिक समुद्र में मुक्त आवाजाही का समर्थन करता रहा है। हम तटीय देशों के क्षेत्राधिकार का सम्मान करते हैं। पानी के भीतर वैज्ञानिक शोध की गतिविधियां भी चीन नियमों के तहत ही करता है।''

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, ''दूसरी बात यह कि श्रीलंका एक संप्रभु देश है। विकास से जुड़े आधार पर श्रीलंका के पास अधिकार है कि वह दूसरे देशों के साथ संबंध विकसित करे। दो देशों के बीच सामान्य सहयोग उनकी अपनी पसंद होती है। दोनों देशों के अपने-अपने हित होते हैं और यह किसी तीसरे देश को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं होता है। यह पूरी तरह से अनुचित है कि कोई देश कथित सुरक्षा चिंता का हवाला देकर श्रीलंका पर दबाव डाले। श्रीलंका अभी राजनीतिक और आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। ऐसे में श्रीलंका के आंतरिक मामलों और दूसरे देशों के साथ संबंधों में हस्तक्षेप से स्थिति और खराब होगी। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ है।''

बता दें कि आर्थिक संकट से जूझ रहा श्रीलंका चीन के भारी भरकम कर्ज को नहीं चुका पाया था इसलिए उसने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर दे दिया। अब चीनी खोजी जहाज हंबनटोटा में जहां रुकने वाला है वह जगह भारतीय समुद्री सीमा से महज 50 किलोमीटर दूर है। ऐसे में भारत को आशंका है कि चीनी जहाज खोज और शोध की आड़ में जासूसी कर सकता है।

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