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डार्विन ने लैंगिक चयन के सिद्धांत के बारे में साक्ष्य जुटाए, अध्ययन ; तामस स्केली, मिलनर सेंटर फॉर इवोल्यूशन, बाथ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर

By भाषा | Updated: June 19, 2021 17:10 IST

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बाथ(ब्रिटेन),19 जून (द कन्वरसेशन) महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन 19 वीं सदी के मध्य में जब प्रजातियों के प्राकृतिक चयन से विकास के सिद्धांत के लिए साक्ष्य जुटा रहे थे, उन्होंने पाया कि यह नर मोर के खूबसूरत पंखों, बारसिंगे की सीगों, या कुछ प्रजातियों के नर सदस्यों के अपनी मादा समकक्षों की तुलना में अधिक बड़े होने के कारणों के बारे में विस्तार से नहीं बताता है।

इन सवालों के जवाब के लिए डार्विन ने एक अनुषंगी सिद्धांत दिया: विशिष्टताओं का लैंगिक चयन, जो किसी जंतु के अपना साथी चुनने और प्रजनन करने की गुंजाइश को बढ़ाता है। उन्होंने सीगों, तेजी से भागना, लंबे नुकीले दांत और बड़ा आकार, जो प्रतिद्वंद्वियों को वशीभूत करने में इस्तेमाल किये जाते हैं, और विपरित लिंग को आकर्षित करने वाली शारीरिक सुंदरता का सावधानीपूर्व अध्ययन किया।

डार्विन ने सोचा कि लैंगिक विशिष्टताओं को असमान लिंगानुपात से विस्तृत रूप से परिभाषित किया जा सकता है-जब किसी आबादी में मादा सदस्यों की तुलना में अधिक नर हो, या फिर इसके उलट स्थिति हो। उन्होंने तर्क दिया कि किसी प्रजाति के एक नर सदस्य को मादा सदस्यों की कम संख्या उपलब्ध होने पर उनमें से एक को अपना साथी चुनने के लिए कहीं अधिक मेहनत करनी होगी और यह प्रतिस्पर्धा लैंगिक चयन की ओर ले जाएगा।

डार्विन के समय से हमने असमान लिंगानुपात के बारे में काफी कुछ सीखा है, जो जंगली जंतु की आबादी में सामान्य बात है। उदाहरण के लिए, कई तितलियों और मानव सहित स्तनधारी जंतुओं में वयस्क मादा सदस्यों की संख्या वयस्क नर सदस्यों की तुलना में अधिक होती है।

आस्ट्रेलिया में चूहे जैसे दिखने वाले एंटेचिनस जंतु में उदाहरण के तौर पर सभी नर सदस्य सहवास के मौसम के बाद मर जाते हैं, इस तरह आगे चल कर ऐसा वक्त आता है जब कोई नर सदस्य जीवित नहीं रहता और समूची वयस्क आबादी गर्भवती मादा सदस्यों की होती है।

वहीं, इसके उलट पक्षियों की कई प्रजातियों की आबादी में मादा सदस्यों की तुलना में नर सदस्यों की संख्या अधिक होती है। उदाहरण के लिए कुछ टिटिहरी में नर सदस्यों की संख्या मादा की तुलना में छह अनुपात एक की होती है।

इस तरह, कई पक्षियों की प्रजातियों में नर सदस्यों की संख्या अधिक क्यों होती है, जबकि स्तनधारी जंतुओं में अक्सर ही अधिक मादा होती है? इसका सीधा सा जवाब यह है कि हम नहीं जानते। लेकिन कई अटकलें हैं।

असमान लिंगानुपात का अध्ययन:

कुछ असमान लिंगानुपात को बहुत हद तक जीवनकाल की अवधि में अंतर से विस्तृत रूप से बताया जा सकता है। मानव सहित मादा स्तनधारी जंतु आमतौर पर अपने नर समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक लंबे समय तक जीते हैं। मानव में, पुरूषों की तुलना में महिलाएं करीब पांच प्रतिशत अधिक लंबे समय तक जीती हैं। अफ्रीकी शेरों और व्हेल मछलियों में मादा सदस्य नर सदस्यों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक लंबे समय तक जीती हैं।

जंतुओं का परभक्षी होना भी इसका एक कारण हो सकता है। अफ्रीकी शेर भैंसों से करीब सात गुना अधिक इसके नर सदस्यों की जान लेते हैं क्योंकि भैंसा में अकेले विचरण करने की प्रवृत्ति होती है, जबकि भैंसों (मादा सदस्यों) को झुंड के अंदर सुरक्षा मिलती है। इसके उलट चीता नर हिरण की तुलना में कहीं अधिक संख्या में मादा हिरणों की जान लेते हैं। शायदा ऐसा इसलिए कि वे मादा हिरणी का पीछा कर उन्हें पकड़ सकते हैं- खासतौर पर गर्भवती हिरणी को।

आखिरकार, नर और मादा जंतु अक्सर ही परजीवी और रोगों से अलग-अलग मात्रा में पीड़ित होते हैं। कोविड-19 महामारी इसका एक उदाहरण है:कई देशों में संक्रमित पुरूषों और महिलाओं की संख्या समान है, लेकिन पुरूष मरीजों की मौत महिलाओं की तुलना में अधिक हुई है।

लिंगानुपात और लैंगिक चयन:

असमान लिंगानुपात के बारे में हमारे बढ़ते ज्ञान के बावजूद लिंगानुपात को लैंगिक चयन से जोड़ने की डार्विन की अंतरदृष्टि ने वैज्ञानिकों का बहुत कम ध्यान आकर्षित किया है। हमारे अध्ययन में इसका समाधान करने की कोशिश की गई है, डार्विन के तर्क पर फिर से गौर करने के लिए उदविकास के सिद्धांत के इन दो पहलुओं को एक साथ जोड़ा गया है।

कभी-कभी नर की तुलना में मादा का आकार बड़ा होता है-पक्षियों की कुछ प्रजातियों में, जैसे कि अफ्रीकी जल-कपोत। जब किसी प्रजाति में नर और मादा के आकार आपस में दूसरे से बड़े होते हैं तो इसके लिए वैज्ञानिक शब्दावली ‘लैंगिक आकार द्विरूपता’का इस्तेमाल किया जाता है।

सरीसृपों, स्तनधाारियों जंतुओं और पक्षियों की करीब 462 विभिन्न प्रजातियों का विश्लेषण कर हमारे अध्ययन में पाया गया कि लैंगिक आकार द्विरूपता और लिंगानुपात के बीच एक मजबूत संबंध है।

लैंगिक चयन के निहितार्थ:

प्राकृतिक चयन और लैंगिक चयन के डार्विन के सिद्धांतों को यह किसी भी तरह से अमान्य नहीं करता है।

डार्विन की पूर्वधारणा इस विचार पर आधारित है कि जब सहवास के लिए साथियों की कमी होती है तब साथी चुनने के लिए सर्वाधिक प्रतिस्पर्धा होती है। लेकिन हालिया सिद्धांतों में यह बताया गया है कि यह तर्क सही नहीं हो सकता है और लैंगिक चयन वास्तव में एक ऐसी प्रणाली है जिसमें विजेता के हिस्से में सब कुछ आता है।

इसका यह मतलब है कि जब किसी आबादी में कई संभावित साथी होते हैं तो सबसे उत्कृष्ट नर-हमारे अध्ययन में, सबसे बड़ा और सबसे भारी- सबसे प्रमुख बन जाता है, जो काफी संख्या में मादा सदस्यों को गर्भवती करता है।

हमे यह समझने के लिए और अधिक अध्ययन करने की जरूरत है कि नर प्रधान आबादी और मादा प्रधान आबादी में किस तरह से नर और मादा नये साथी ढूंढते हैं तथा किन परिस्थितियों में उनका आकार और सुंदरता उपयोगी साबित होती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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