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सीरिया की तबाही की पूरी कहानीः अरब स्प्रिंग से हुई थी बगावत की शुरुआत, जिसे रूस-अमेरिका ने उलझा दिया!

By आदित्य द्विवेदी | Updated: October 10, 2019 16:33 IST

सीरिया की तबाही को 21वीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी माना जाता है। 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध में करीब पांच लाख लोगों की मौत हुई। करीब 50 लाख लोगों ने अन्य देशों में शरण ली और करीब 70 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए। पढ़े, इसकी पूरी कहानी...

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ठळक मुद्देसीरिया की तबाही को 21वीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी माना जाता है। 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध में करीब पांच लाख लोगों की मौत हुई। सीरिया गृहयुद्द में करीब 50 लाख लोगों ने अन्य देशों में शरण लीसीरिया में करीब 70 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए।

2010-12 के बीच अरब के कई देशों में सत्ता के खिलाफ बगावत शुरू हुई जिसे 'अरब स्प्रिंग' नाम दिया गया। इसी से प्रेरित होकर सीरिया के दक्षिणी शहर दाराआ में भी लोकतंत्र की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हुआ। उस वक्त सीरिया में बशर-अल-असद की सरकार थी। बशर-अल-असद ने सन 2000 में अपने पिता हाफेज अल असद की जगह ली थी।

असद सरकार को लोकतंत्र के लिया किया जा रहा यह प्रदर्शन रास नहीं आया और उन्होंने इस आंदोलन को बर्बरता से कुचलने का फैसले किया। असद सरकार की क्रूरता के विरोध में धीरे-धीरे यह प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। इस असंतोष का एक और कारण यह था कि असद शिया समुदाय से हैं जबकि सीरिया की करीब 83 प्रतिशत आबादी सुन्नी है। लोगों ने बड़े स्तर पर बशर-अल असद के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी।

2011 में आर्मी ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई। बदले में प्रदर्शनकारियों ने भी सेना पर हमले किए। सीरिया आर्मी से इस्तीफा देकर कई लोगों ने फ्री सीरियन आर्मी (एफएसए) बना ली। 2012 में कई जिहादी समूहों ने सीरिया की लड़ाई में हिस्सा लिया। इसमें जबात अल नुसरा शामिल है। इसके अलावा मुस्लिम ब्रदरहुड जिसे तुर्की का सपोर्ट था वो भी शामिल हो गया। फ्रेंड्स ऑफ सीरिया ग्रुप की सक्रिय हो गया। 

2012 में इरान ने विद्रोहियों के खिलाफ असद सरकार को मिलिट्री सपोर्ट देना शुरू कर दिया। इरान दुनिया का सबसे बड़ा शिया मुल्क है। इसके बाद खाड़ी देशों और तुर्की ने विद्रोहियों को समर्थन करना शुरू कर दिया। उन्हें डर था कि इलाके में इरान अपना प्रभाव बढ़ाना ना शुरू कर दे।

2013 तक सीरिया की लड़ाई पूरे मध्य पूर्व एशिया के देशों को शामिल कर चुकी है। अमेरिका ने सीआईए को पॉवर दी कि विद्रोहियों और विपक्षी दलों ट्रेनिंग दी जाए। इसके अलावा अमेरिका ने सऊदी को कहा कि आप चरमंथियों को फंडिंग बंद कीजिए। दूसरी तरफ असद सरकार को रूस ने खुले तौर पर समर्थन दिया।

2013 के अगस्त में असद की सरकार ने अपनी ही जनता पर घूटा इलाके में सेरिन गैस छोड़ दी। इस केमिकल अटैक में 700 लोग मारे गए। पूरी दुनिया ने इस हमले की निंदा की। जब ओबामा ने कहा कि हम सीरिया पर हमला करना चाहते हैं तो अमेरिका की सीनेट ने मना कर दिया। रसिया ने असद सरकार को इस बात के लिए तैयार किया कि एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन को अपने सारे केमिकल हथियार सौंप दीजिए।

2014 में आईएसआईएल अल कायदा से अलग हो गया। उसने राका शहर पर कब्जा कर लिया। कुर्दों पर भी हमले करने शुरू कर दिए। 2014 की गर्मियों में आईएसआईएल ने फलूजा और मोसुल में कब्जा कर लिया।

इस्लामिक स्टेट के बढ़ते आतंक को देखते हुए अमेरिका ने कुर्दों को मदद देनी शुरू की। इस लड़ाई में करीब 11 हजार कुर्दिश लड़ाके मारे गए लेकिन इस्लामिक स्टेट के खिलाफ यह कठिन लड़ाई जीत ली गई।

सीरिया में पिछले आठ साल से जारी गृहयुद्ध की आग ठंडी पड़ने लगी है। फिलहाल सीरिया के 65 प्रतिशत हिस्से पर असद सरकार का कब्जा है और 30 प्रतिशत हिस्से पर कुर्दिशों की स्वायत्त सरकार है। कुछ ही हिस्सों में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन बचे हैं। लेकिन इस बीच तुर्की ने उत्तरी सीरिया पर हमला कर दिया है। यह सीरियाई कुर्दों के कब्जे वाला इलाका है। इस हमले की वजह से इस्लामिक स्टेट के दोबारा पनपने की भी संभावनाएं भी जन्म ले चुकी हैं।

सीरिया की तबाही को 21वीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी माना जाता है। 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध में करीब पांच लाख लोगों की मौत हुई। करीब 50 लाख लोगों ने अन्य देशों में शरण ली और करीब 70 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए।

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