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जलवायु घड़ी दिखाती है कि दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस ‘वार्मिंग’ सीमा के एक साल करीब पहुंची

By भाषा | Updated: November 7, 2021 14:09 IST

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(एच डेमन मैथ्यूज, प्रोफेसर और कॉनकोर्डिया विश्वविद्यालय में जलवायु विज्ञान एवं स्थिरता में कॉनकोर्डिया विश्वविद्यालय अनुसंधान अध्यक्ष और ग्लेन पीटर्स, अनुसंधान निदेशक, सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट)

मांट्रियल, सात नवंबर (द कन्वरसेशन) वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के इस साल तकरीबन 2019 के स्तर तक बढ़ने की संभावना है जबकि पिछले साल कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन के कारण उत्सर्जन में अभूतपूर्व कमी देखी गयी थी।

इसका मतलब है कि उत्सर्जन फिर से बढ़ रहा है जबकि अगर हमें ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को पूर्व औद्योगिक स्तर से अधिक 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर तक सीमित करना है तो इसमें तेजी से कमी लानी होगी।

हमने 2015 में यह देखने के लिए जलवायु घड़ी बनायी कि हम कितनी तेजी से 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक बढ़ रहे है जो पेरिस समझौते की सबसे कम सीमा है। यह घड़ी वैश्विक उत्सर्जन और तापमान के आंकड़ों पर नजर रखती है और यह पता लगाने के लिए हाल के पांच वर्षों के उत्सर्जन की प्रवृत्ति पर नजर रखती है कि ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक पहुंचने में कितना वक्त रह गया है।

2021 के नए आकलन में तकरीबन एक साल कम हो जाता है जिसका मतलब है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पर पहुंचने में हमारे पास 10 साल से कुछ अधिक समय ही बचा है।

वास्तविक समय में ग्लोबल वार्मिंग पर नजर रखना :

जलवायु घड़ी हमारे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की ओर प्रगति को मापने का तरीका है। हर साल ताजा वैश्विक आंकड़ों को दर्शाने के साथ ही हमारे वैज्ञानिक समझ को सुधारने के लिए हमने घड़ी को अद्यतन किया कि वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर तक सीमित रखने के लिए उत्सर्जन को कितने स्तर पर रखना होगा।

इस साल घड़ी में अद्यतन आंकड़ों के तीन सेटों का इस्तेमाल किया गया। पहला, जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति की छठी आकलन रिपोर्ट से वैश्विक तापमान वृद्धि के नए आकलन से पता चला कि जलवायु प्रणाली में सभी तरह की ‘वार्मिंग’ के लिए मानव द्वारा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन जिम्मेदार है।

दूसरा, ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट से पता चलता है कि 2021 में वैश्विक ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2020 से 4.9 प्रतिशत तक बढ़ेगा। हमने जीवाश्म ईंधन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वैश्विक प्रवृत्ति को दिखाने के लिए हाल के पांच वर्षों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया।

2016 से 2021 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हर साल 0.2 अरब टन के औसत तक बढ़ेगा।

तीसरा, हमने बाकी के कार्बन बजट के ताजा आकलन का इस्तेमाल किया। यह कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की कुल मात्रा को दर्शाता है जो हम एक विशेष वैश्विक तापमान लक्ष्य को पार किए बिना उत्सर्जित कर सकते हैं। आईपीसीसी के ताजा आकलन के अनुसार, बचा हुआ कार्बन बजट 2020 के बाद से 500 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन है। हम 2020-21 के दौरान 80 अरब टन तक उत्सर्जन करेंगे।

जिस साल हम बाकी के इस कार्बन बजट का उत्सर्जन करेंगे वह वही साल हो सकता है जब वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाएगा। मौजूदा उत्सर्जन की प्रवृत्ति दिखाती है कि यह क्षण अब महज 10 साल दूर है।

वैश्विक उत्सर्जन कम करने से घड़ी में वक्त जुड़ सकता है :

जब हमने 2020 में जलवायु घड़ी को अद्यतन किया तो कोविड से संबंधित लॉकडाउन के कारण वैश्विक उत्सर्जन में आयी कमी घड़ी में तकरीबन एक साल जोड़ने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन अब 2021 में उत्सर्जन फिर से बढ़ रहा है और पहले जो समय जुड़ा था अब वह कम हो गया है।

हालांकि, एक दशक में काफी कुछ किया जा सकता है। ताप वृद्धि के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों जैसे कि मिथेन या नाइट्रस ऑक्साइड में कमी से 1.5 डिग्री सेल्सियस की समयसीमा बढ़ाने में मदद मिलेगी।

अगर हम वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को अगले दो दशकों में शून्य तक रखने में कामयाब रहे तो हमारे पास 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक न पहुंचने का अच्छा मौका होगा। हालांकि, कुछ ही देशों ने यह महत्वाकांक्षा जतायी है जिसमें उरुग्वे, फिनलैंड, आइसलैंड और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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