बांग्लादेश के लिए बेहद खास हैं कल होने जा रहे चुनाव, शेख हसीना से मजबूत रहे हैं मोदी सरकार के रिश्ते

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 29, 2018 04:18 PM2018-12-29T16:18:57+5:302018-12-29T16:25:58+5:30

बांग्लादेश के चुनाव को भारत के नजरिये से भी काफी अहम माना जा रहा है. इस बार चुनाव प्रचार में भारत विरोधी रुख ना होना भारत के लिए राहत की बात है.

bangladesh general election is tomorrow sheikh hasina future will decide modi government relations with neighbours | बांग्लादेश के लिए बेहद खास हैं कल होने जा रहे चुनाव, शेख हसीना से मजबूत रहे हैं मोदी सरकार के रिश्ते

खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में सजा काट रही हैं.

Highlightsबांग्लादेश के भारत के साथ संबंध इस साल और प्रगाढ़ हुए हैं. इसी साल मई में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. बांग्लादेश चुनाव में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा छाया रहा।

बांग्लादेश के लिये वर्ष 2018 जाते जाते काफी अहम साबित होने वाला है. दक्षिण एशिया के इस देश में रविवार को होने वाले चुनाव पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं. हालांकि बांग्लादेश में इस बार के चुनाव पिछले चुनावों की तुलना में अलग होंगे क्योंकि इस बार 'दो बेगम' शेख हसीना और खालिदा जिया आमने-सामने नहीं होंगी.

खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में सजा काट रही हैं. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना (71) और पूर्व सैन्य तानाशाह जिया उर्रहमान की पत्नी खालिदा जिया (73) 1980 के दशक से बांग्लादेश की राजनीति की दो केंद्र बनी हुई हैं.

हसीना जहां आगामी चुनाव में चौथी बार प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद संजोए हुए हैं वही खालिदा ढाका जेल में अपने राजनीतिक भविष्य के लिए संघर्ष कर रही हैं. बांग्लादेश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री खालिदा को नवंबर में भ्रष्टाचार के एक मामले में एक अदालत के आदेश के बाद सलाखों के पीछे डाल दिया गया था. इसके बाद उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं खत्म हो गई थीं.

जिया के समर्थकों का कहना है कि उन पर लगे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं. उनके बेटे और बीएनपी के कार्यवाहक प्रमुख तारिक रहमान को भी जेल में डाला जा चुका है. बीएनपी ने अपने नेताओं को जेल में डाले जाने के विरोध में इन चुनावों में भाग नहीं लेने का फैसला लिया था, लेकिन कानूनी बाध्यताओं की वजह से पार्टी को अपना निर्णय बदलना पड़ा, क्योंकि लगातार दो बार चुनाव में हिस्सा नहीं लेने पर बीएनपी का पंजीकरण रद्द किया जा सकता था.

जिया को सजा दिए जाने के बाद उभरे विपक्षी पार्टी के नेशनल यूनिटी फोरम (एनयूएफ) ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है. इस गठबंधन का मसकद चुनाव से पहले बीएनपी की सरकार के साथ बातचीत कराना है. इस गठबंधन का नेतृत्व अवामी लीग के पूर्व नेता और मशहूर न्यायविद कमाल हुसैन कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने खुद चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है.

पश्चिमी देशों के कई राजनयिक और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एनयूएफ के उभार ने सभी विपक्षी दलों की जीत और बीएनपी की संसद में वापसी की राह आसान बनाने की उम्मीदें बढ़ा दी हैं.

भारत के नजरिये से आज के चुनाव अहम:

बांग्लादेश के चुनाव को भारत के नजरिये से भी काफी अहम माना जा रहा है. इस बार चुनाव प्रचार में भारत विरोधी रुख ना होना भारत के लिए राहत की बात है. इससे पहले भारत पर बांग्लादेश की राजनीति में दखल देने के आरोप लगते रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि कुछ साल से बीएनपी ने पुराना रुख छोड़कर भारत को सहयोगी के तौर पर देखना शुरू कर दिया है.

बांग्लादेश के भारत के साथ संबंध इस साल और प्रगाढ़ हुए हैं. इसी साल मई में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हालिया वर्ष भारत-बांग्लादेश के संबंधों का स्वर्णिम अध्याय है. इस दौरान दोनों देशों के बीच भूमि और तटीय सीमा से जुड़े पेचीदा मुद्दे हल हुए हैं. हसीना ने भी दोस्ताना माहौल में बचे हुए मुद्दों को सुलझाने की उम्मीद जताई थी.

रोहिंग्या का मुद्दा छाया रहा

इस साल बांग्लादेश में रोहिंग्या का मुद्दा भी छाया रहा. बांग्लादेश को म्यांमार पर रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने का दबाव बनाने के लिए कई देशों का साथ भी मिला.

इसका नतीजा यह हुआ कि कई दौर की बातचीत के बाद म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बुलाने के लिए राजी हो गया.

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