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आतंकवाद, युद्ध, मादक पदार्थों से मुक्त स्वतंत्र, लोकतांत्रिक देश हो अफगानिस्तान : एससीओ

By भाषा | Updated: September 17, 2021 22:41 IST

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दुशांबे, 17 सितंबर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नेताओं ने शुक्रवार को कहा कि अफगानिस्तान को आतंकवाद, युद्ध और मादक पदार्थों से मुक्त स्वतंत्र, लोकतांत्रिक एवं शांतिपूर्ण देश बनना चाहिए तथा युद्धग्रस्त देश में एक ‘‘समावेशी’’ सरकार का होना महत्वपूर्ण है, जिसमें सभी जातीय, धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधि शामिल हों।

संगठन के वार्षिक शिखर सम्मेलन के समापन के बाद यहां जारी की गई एक संयुक्त घोषणा में एससीओ के सदस्य देशों के नेताओं ने सभी तरह के आतंकवाद की भी कड़ी निंदा की।

एससीओ नेताओं ने उल्लेख किया कि एससीओ क्षेत्र में सुरक्षा एवं स्थिरता का संरक्षण एवं मजबूती के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारकों में से एक यह है कि अफगानिस्तान में स्थिति का जल्द समाधान हो। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान ‘‘एक स्वतंत्र, तटस्थ, एकीकृत, लोकतांत्रिक एवं शांतिपूर्ण देश के रूप में उभरना चाहिए जो आतंकवाद, युद्ध और मादक पदार्थों से मुक्त हो।’’

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद से संबंधित काली सूची में शामिल विद्रोही संगठन के कम से कम 14 नेताओं के अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार में शामिल होने के संदर्भ में संयुक्त घोषणा में कहा गया, ‘‘सदस्य देशों का मानना है कि अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार का होना महत्वपूर्ण है जिसमें सभी जातीय, धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधि शामिल हों।’’

अगस्त के मध्य में अफगानिस्तान पर कब्जा करनेवाले तालिबान ने अफगानिस्तान के जटिल जातीय ढांचे का प्रतिनिधित्व करनेवाली ‘‘समावेशी’’ सरकार बनाने का वादा किया था, लेकिन उसकी अंतरिम सरकार में न तो हजारा समुदाय का कोई प्रतिनिधि शामिल है और न ही किसी महिला को शामिल किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम से दिखा है कि क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौतियों के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा ही है।

ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हुए सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सूफीवाद और मध्य एशिया की सांस्कृतिक विरासत के बारे में बात की और कहा कि एससीओ को क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत के आधार पर कट्टरपंथ एवं चरमपंथ से लड़ने के लिए एक साझा ढांचा विकसित करना चाहिए।

संयुक्त घोषणा में कहा गया कि क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करने में एससीओ की प्राथमिकताओं में सभी तरह के आतंकवाद, अलगाववाद, चरमपंथ, मादक पदार्थों, हथियारों एवं गोला-बारूद और विस्फोटक सामग्री की तस्करी, सीमा पार से होने वाले संगठित अपराधों से लड़ने और अंतरराष्ट्रीय सूचना सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा सीमा सुरक्षा को मजबूत करने जैसे कदम शामिल होंगे।

इसमें कहा गया, ‘‘सदस्य देश आतंकवादी, पृथकतावादी और चरमपंथी विचारधाराओं के प्रसार पर नियंत्रण के साझा प्रयासों को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।’’

संयुक्त घोषणा में कहा गया कि सदस्य देश इस बात पर सहमत हैं कि चरमपंथी, अलगाववादी और आतंकी विचारों को बढ़ावा देने, दुष्प्रचार और आतंकवाद को उचित ठहराए जाने से कट्टरपंथी भावनाओं के प्रसार और आतंकी संगठनों में उनके समर्थकों की भर्ती की स्थितियां उत्पन्न होती हैं।

रासायनिक और जैविक आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के लिए एससीओ देशों ने निरस्त्रीकरण पर सम्मेलन की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें रासायनिक और जैविक आतंकवाद जैसे कृत्यों को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर बुहपक्षीय चर्चा शुरू हो।

घोषणा में यह भी कहा गया कि एससीओ अन्य देशों या क्षेत्रों के खिलाफ निर्देशित कोई गठबंधन नहीं है और यह क्षेत्रीय एवं वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए पारस्परिक हितों एवं समान रुख के आधार पर अन्य देशों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ व्यापक सहयोग के लिए तैयार है।

एससीओ को नाटो के जवाब में बना गठबंधन माना जाता है, जो नौ सदस्यीय आर्थिक एवं सुरक्षा समूह है। यह सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों में से एक के रूप में उभरा है।

भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके स्थायी सदस्य बने थे, जबकि ईरान 2021 में इसका सदस्य बना।

एससीओ की स्थापना 2001 में रूस, चीन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने की थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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