काबुल: तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही इस देश के भविष्य को लेकर एक बार फिर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सबसे बड़ी चिंता तालिबान राज में महिलाओं के अधिकार और अफगानियों के जीवन में स्थायित्व की है।
अफगानिस्तान के इतिहास को उठाकर देखें तो जंग उसके लिए नया नहीं है। पिछले 200 साल में भी अफगानिस्तान ने ऐसी बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी जो किसी भी देश को तोड़ दे। पिछले 40 सालों में ही दुनिया की दो महाशक्तियों रूस और अमेरिका की सेना ने अफगान की जमीन पर कदम रखा।
इससे पहले ब्रिटेन ने भी कभी अफगानिस्तान से जंग लड़ी और फिर बाद में उसे मुंह की भी खानी पड़ी। आइए आज हम आपको अफगानिस्तान में पिछले 200 साल में हुए बड़े युद्धों के बारे में बताते हैं।
अफगानिस्तान के पिछले 200 साल में 5 बड़े युद्ध
पहला एंग्लो-अफगान वार: ये युद्ध 1839 से 1842 के बीच ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ा गया था। ब्रिटिश सेना को शुरूआत में सफलता मिली। ब्रिटेन की इस सेना में भारतीय भी थे और वे तब काबुल के शासक दोस्त मोहम्मद को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहे। शाह शूजा (दुर्रानी) को सत्ता सौंपी गई। हालांकि ब्रिटिश सेना बहुत दिनों तक अपनी सेना वहां रखने में नाकाम रही और उसे वापस लौटना पड़ा। इसके बाद दोस्त मोहम्मद के बेटे मोहम्मद अकबर खान ने बगावत का बिगुल फूंक दिया। नतीजतन सर विलियम मैकनघटेन सहित कई ब्रिटिश राजनयिकों की हत्या कर दी गई और आखिरकार सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया। इसके बाद भारत बंदी बनाकरर लाए गए दोस्त मोहम्मद को भी अंग्रेजों को छोड़ना पड़ा।
दूसरा एंग्लो-अफगान वार: ये युद्ध 1878 से 1880 से बीच अमीरात ऑफ अफगानिस्तान और ब्रिटिश राज के बीच लड़ा गया। इस समय अफगानिस्तान में शेर अली खान का शासन था जो दोस्त मोहम्मद खान के बेटे थे। रूस के मध्य एशिया में तब प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश को देखते हुए ब्रिटेन ने अफगानिस्तान पर हमले की योजना रची थी।
तीसरा एंग्लो-अफगान वार: ये लड़ाई 1919 में ब्रिटिश के खिलाफ आजादी के लिए लड़ी गई। इसमें अफगानिस्तान की जीत हुई और ब्रिटेन ने उसे स्वतंत्र देश का दर्जा दिया।
सोवियत संघ का अफगानिस्तान पर प्रभुत्व: साल 1979 में सोविय-अफगान युद्ध शुरू हुआ और करीब 10 सालों तक चला। सोवियत संघ ने दरअसल देश में सत्ताधारी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान (PDPA) को समर्थन दिया और अफगान मुजाहिदीनों के खिलाफ जंग लड़ी। अफगान मुजाहिदीनों को तब अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्तान सहित कई देशों का समर्थन मिला था। आखिरकार रूस को हार मानना पड़ा।
अमेरिका ने किया हमला: सोवियत संघ से जंग के बाद अफगानिस्तान में कुछ वर्षों के लिए गृह युद्ध भी चला और फिर 1996 आते-आते तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद तालिबान का अफगानिस्तान पर शासन चलने लगा। इसी बीच अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकी हमलों ने अफगानिस्तान पर एक और युद्ध थोप दिया। अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को अमेरिका में हुए हमलों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया। ऐसी भी बात सामने आई कि तालिबान उसे संरक्षण दे रहा था। अमेरिका ने इसके बाद बदला लेने के लिए हवाई हमले शुरू किए और फिर तलिबान को भागने पर मजबूर कर दिया।