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स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए औषधि के विज्ञापन पर पाबंदी लगाई जाए

By भाषा | Updated: December 16, 2021 17:01 IST

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(जोएल लेक्सचिन, यॉर्क यूनिवसिर्टी)

(संपादक: इम्बार्गो : भारतीय समयानुसार सात बजे, 17/12/2021)

टोरंटो, 16 दिसंबर (360इन्फो) नयी औषधियों को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन प्रभावी हैं लेकिन वे अक्सर अनुपयुक्त चिकित्सकीय सलाह का कारण बनते हैं। अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए देशों को इस कार्य पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

निश्चित तौर पर सभी नहीं लेकिन कई औषधि, रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने और उनकी रोकथाम करने या बीमारी का इलाज करने में अत्यधिक उपयोगी हैं। जो कंपनियां उनका उत्पादन करती हैं, उनसे आमतौर पर ऊंची कीमतों या विक्रय की बड़ी मात्रा के साथ मुनाफा कमाने और राजस्व बढ़ाने की उम्मीद की जाती है।

हालांकि, तकरीबन सभी समृद्ध विकसित देश औषधियों की कीमत पर पाबंदी लगाते हैं, जिससे वह विकल्प हमेशा उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए कंपनियां बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन पर भारी मात्रा में धन खर्च करती हैं।

केवल अमेरिका में ही, ब्रांड नाम वाली औषधियों के लिए चिकित्सकों को मनाने को लेकर 2016 में 20 अरब डॉलर खर्च किये गये।

यह खर्च सिर्फ चिकित्सकों पर ही नहीं किया जाता है। अमेरिका और न्यूजीलैंड, दोनों देशों ने सीधे उपभोक्ताओं तक विज्ञापन पहुंचाने की अनुमति दी, जिसके तहत औषधि के नाम और किस रोग में उसका उपयोग किया जाएगा, उसका जिक्र किया गया। कंपनियां अमेरिका में उपभोक्ताओं के बीच औषधि के विज्ञापन पर सालाना 10 अरब डॉलर खर्च करती है।

साक्ष्यों से पता चलता है कि विज्ञापन मरीजों को प्रभावित करता है। एक अमेरिकी सर्वेक्षेण में शामिल किये गये तीन-चौथाई लोगों ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से विज्ञापन वाली औषधि के बारे में वे पूछने की सोच रहे हैं और 26 प्रतिशत ने कहा कि वे पहले ही ऐसा कर चुके हैं।

इसमें पाया गया कि करीब एक चौथाई लोगों के चिकित्सक यदि अनुरोध किये गये ब्रांड नाम वाली औषधि लिखने से इनकार करेंगे तो वे दूसरे चिकित्सक को ढूंढेंगे। हालांकि, इस तरह के विज्ञापनों के सकारात्मक की तुलना में नकारात्मक प्रभाव अधिक हैं।

कनाडा की भी अमेरिका जैसी मेडिकल संस्कृति है, लेकिन उसने सीधे उपाभोक्ता तक विज्ञापन पहुंचाने की अनुमति नहीं दी है। हालांकि कुछ अमेरिकी मीडिया कनाडावासियों के पास औषधि विज्ञापन की चिकित्सकीय सलाह लेकर पहुंची है जो कि कनाडाई कानून के तहत अवैध है।

बारबरा मिंज्स और उनके सहकर्मियों ने चिकित्सकीय सलाह के फैसलों की तुलना करने के लिए वैंकुवर (कनाडा) तथा सैक्रामेंटो (अमेरिका) में मरीजों और चिकित्सकों का सर्वेक्षण किया।

सैक्रामेंटो में मरीजों ने विज्ञापन के कारण औषधि के बारे में कहीं अधिक पूछा। हालांकि दोनों देशों में चिकित्सकों ने तभी अनुरोध को पूरा किया जब मरीजों ने औषधि का नाम लिया।

अन्य अनुसंधानकर्ताओं के दल ने अमेरिकी मीडिया में विज्ञापन वाली तीन औषधियों पर गौर किया तथा अंग्रेजी भाषी कनाडा और मुख्य रूप से फ्रेंच भाषी क्यूबेक में चिकित्सकीय सलाह की दर की तुलना की। क्यूबेक (कनाडा के दक्षिण पूर्वी प्रांत) में अमेरिकी मीडिया का कम प्रभाव है।

उन्होंने टेगासेरोड औषधि लिखने की दर अधिक पाई, जिसे बाद में सुरक्षा कारणों से बाजार से वापस ले लिया गया।

दशक भर से भी कुछ समय पहले, अनुसंधानकर्ताओं ने 58 अध्ययनों का विश्लेषण किया था और चिकित्सकीय सलाह लिखने के आयामों का विश्लेषण किया।

मेडिकल जर्नल में विज्ञापन देने के मामले में सरकार का सीधे तौर पर नियमन करना कहीं बेहतर है। हालांकि, सरकारी एजेंसियों के पास संसाधनों का अभाव है। विधान समर्थित और आय के एक स्थिर स्रोत वाली सिर्फ एक गैर सरकारी संस्था ही सक्रियता से विज्ञापनों की निगरानी कर सकती है। हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि औषधि कंपनियों पर जुर्माना लगा कर यह गतिविधि रोकी जा सकती है।

सीधे उपभोक्ता तक विज्ञापन पहुंचाने से चिकित्सकों के औषधि लिखने पर प्रभाव पड़ता है। यह सरकारों और मेडिकल पेशे की जिम्मेदारी है कि वह इस समस्या का समाधान करे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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