महाराष्ट्र: इस किले में है 22 किमी लम्बी सुरंग, देवी मंदिर तक जाता है इसका रास्ता
By मेघना वर्मा | Updated: January 9, 2018 14:23 IST2018-01-09T13:46:50+5:302018-01-09T14:23:44+5:30
पहले यादवों, फिर बहमनी और अंत में सन् 1673 में छत्रपति शिवाजी ने इस किले पर राज किया।

महाराष्ट्र: इस किले में है 22 किमी लम्बी सुरंग, देवी मंदिर तक जाता है इसका रास्ता
महाराष्ट्र, अलग-अलग संस्कृतियों के मेल के लिए जाना जाता है। प्राचीन काल से यह प्रदेश अपने इतिहास और परम्पराओं के लिए चर्चित रहा है। सिर्फ यही नहीं महाराष्ट्र अपने खूबसूरत पर्यटन क्षेत्रों के साथ ही किलों के लिए भी जाना जाता है। देश में सर्वाधिक किले इसी राज्य में स्थित हैं। यहां के अधिकतर किलों का निर्माण छत्रपति शिवाजी ने किया था। इन्हीं में से एक है, कोल्हापुर के पास स्थित पन्हाला किला।
पन्हाला शहर वैसे तो हिल स्टेशन के तौर पर जाना जाता है। लेकिन इस शहर का इतिहास शिवाजी महाराज से जुड़ा है। बताया जाता है कि यहां बने पन्हाला किले में शिवाजी सबसे अधिक समय तक रहे थे। इस किले को 'सांपों का किला' भी कहा जाता है। इस किले की सबसे बड़ी खासियत है इसकी 22 किमी लम्बी सुरंग, जो किले से शुरू होकर एक देवी के मंदिर तक जाती है।
पन्हाला किला कोल्हापुर-रत्नागिरी मार्ग पर स्थित है। जो 7 किमी एरिया में फैला है।इसके जिग-जैक शेप के कारण इसे सांपों का किला भी कहा जाता है। माना जाता है कि शिवाजी ने यहां 500 से भी ज्यादा दिन बिताए थे। बाद में वर्ष 1827 ई. में पन्हाला अंग्रेजों के अधीन हो गया था। बताया जाता है कि इसका निर्माण राजा भोज ने करवाया था, लेकिन समय के साथ यह किला कई राजाओं के अधीन रहा। इस किले के पास अंबरखाना एक अन्य किला है, जो पुराने समय में अन्न भण्डार की तरह इस्तेमाल किया जाता था।
इसी किले के पास जूना राजबाड़ा में कुलदेवी तुलजा भवानी का मंदिर भी स्थित है। जिसमें बनी सुरंग के जरिए 22 किमी दूर पन्हाला किले पर आसानी से जाया जा सकता है। फिलहाल सुरक्षा कारणों से सुरंग के रास्तें बंद है। ऐसा कहा जाता है कि इस सुरंग में कभी महर्षि पराशर रहते थे। यही नहीं यहां 18वीं सदी के मशहूर कवि मोरोपंत ने कविताओं की रचना भी की थी।
गुप्त रूप से बनवाई गई थी अंधार बावड़ी
पन्हाल किले में एक अंधार बावड़ी है, जो एक इमारत के नीचे गुप्त तरह से बनाई गई है। बताया जाता है कि इसका निर्माण मुगल शासक आदिल शाह ने करवाया था। उसका मानना था कि जब किले पर हमला होगा तो दुश्मन पानी में जहर मिला सकते हैं। इसलिए शाह ने तीन मंजिला इमारत के नीचे गुप्त रूप से बावड़ी बनवाई थी।
कई राजवंशों के रहा अधीन
यह किला कई राजवंशों के अधीन रह चुका है। यादवों, बहमनी, आदिल शाही आदि के हाथों से होते-होते सन् 1673 में इस किले का आधिपत्य छत्रपति शिवाजी के अधीन हो गया। शिवाजी ने इस किले को अपना मुख्यालय बना लिया था।