हाजी अली में माथा टेकने से होती है हर मुराद पूरी, हर जाति-धर्म के लोग आते हैं यहां

By धीरज पाल | Published: January 18, 2018 08:11 PM2018-01-18T20:11:19+5:302018-01-18T22:55:43+5:30

गुरुवार और शुक्रवार को इस दरगाह पर हर मजहब के करीब 40,000 लोग आते हैं।

history of haji ali dargah in mumbai | हाजी अली में माथा टेकने से होती है हर मुराद पूरी, हर जाति-धर्म के लोग आते हैं यहां

हाजी अली में माथा टेकने से होती है हर मुराद पूरी, हर जाति-धर्म के लोग आते हैं यहां

हाजी अली दरगाह दक्षिणी मुंबई के वरली तट से कम से कम 500 गज दूर अरब सागर के तट पर स्थित है। समुद्र के किनारे बसी यह दरगाह खुदा का एक अद्‌भुत नमूना है। ये दरगाह संप्रादायिक सौहार्द की भी पहचान है जहां केवल इस्लाम ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग अपनी-अपनी मन्नतें लेकर आते हैं। सुन्नी समूह के बरेलवी संप्रदाय द्वारा दरगाह की देख रेख की जाती है। प्रत्येक शुक्रवार को यहां काफी भीड़ देखने को मिलती है। 

हाजी अली का इतिहास 

हाजी अली की दरगाह का निर्माण 15वीं सदी में शुरु हुआ था। इसका निर्माण रनजीकर ने कराया था जो तीर्थयात्रियों को मक्का ले जाने वाले जहाज के मालिक थे। हाजी अली एक धनी मुस्लिम व्यापारी थे उन्होंने अपनी मक्का की तीर्थ यात्रा से पहले सारे धन  को त्याग दिया था। दरगाह तक पहुंचने के लिए एक संकरी रास्ता बना हुआ है जिसके दोनों तरफ से समुद्र की लहरें हिलोरे मारती हुई दिखाई देती है। दूर से देखने से ऐसा लगता है मानों समुद्र की लहरें भी इस दरगाह की इबाबत करती हुई चली जाती हैं। जब कभी समुद्र की लहरें तेज होती हैं तो रास्ता तो डूब जाता है लेकिन दरगाह नहीं डूबता है। इस दरगाह के पीछे एक कहानी काफी प्रचलित है।

क्या है हाजी अली शाह बुखारी दरगाह के पीछे की कहानी 

भारत में इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए अरब देश और फारस से ख्वाजा गरीब नवाज जैसे कई संत आए, जिन्होंने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए भारत के कोने कोने का भ्रमण किया। कहा जाता है कि जब पैगंबर मुहम्मद का निर्देश मिला तो ये संत-फकीर घर आए। सूफी-संतों ने भारत में बसकर इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार किया। उसी दौरान ईरान से एक ऐसे ही संत आए, इनका नाम था पीर हाजी अली शाह बुखारी। 

कहा जाता है कि पीर हाजी अली शाह बुखारी के समय और उनकी मौत के बाद कई चमत्कारी घटनाएं घटी। पीर हाजी अली शाह ने शादी नहीं की थी और उनके बारे में जो कुछ मालूम चला है वो दरगाह के सज्जादानशीं ट्रस्टी और पीढ़ी दर पीढ़ी से सुनी जा रहे किस्सों से ही चला आ रहा है।

जब हाजी ने अंगूठा जमीन में धसाकर निकाला था तेल 

ऐसी ही एक कहानी है जिसके अनुसार एक बार पीर हाजी अली शाह बुखारी उज्बेकिस्तान में एक वीरान जगह में बैठे नमाज पढ़ रहे थे तभी एक महिला वहां से रोती जा रही थी। पीर के पूछने पर उसने बताया कि वह तेल लेने गई थी लेकिन बर्तन से तेल गिर गया और अब उसका पति उसे मारेगा। पीर उसे लेकर उस स्थान पर गए जहां तेल गिरा गया था। पीर ने उस महिला से बर्तन लिया और हाथ का अंगूठा जमीन में गाड़ दिया। ऐसा करते ही जमीन से तेल का फव्वारा निकल पड़ा और बर्तन भर गया।

लेकिन इस घटना के बाद पीर हाजी अली शाह को बुरे-बुरे ख्वाब आने लगे कि उन्होंने अपना अंगूठा जमीन में धसाकर पृथ्वी को जख्मी कर दिया। उसी दिन से वह गुमसुम रहने लगे और बीमार भी पड़ गए। फिर आपनी मां की इजाजत लेकर वह अपने भाई के साथ भारत रवाना हो गए और मुंबई की उस जगह पहुंच गए जो दरगाह के करीब है। उनका भाई वापस अपने देश लौट गया।

पीर हाजी अली शाह ने अपने भाई के हाथ मां को एक खत भिजवाया और कहा कि उन्होंने इस्लाम के प्रचार के लिये अब यहीं रहने का फैसला किया है और ये कि वह उन्हें इस बात के लिये माफ कर दें।
 
शुक्रवार को होती है कव्वाली का आयोजन

पीर हाजी अली शाह अपने अंतिम समय तक लोगों और श्रृद्धालुओं को इस्लाम के बारे में ज्ञान बांटते रहे। अपनी मौत के पहले उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे उन्हें कहीं दफ्न न करें और उनके कफन को समंदर में डाल दें। उनकी अंतिम इच्छा पूरी की गई और ये दरगाह शरीफ उसी जगह है जहां उनका कफन समंदर के बीच एक चट्टान पर आकर रुक गया था।

इसके बाद उसी जगह पर उनकी याद में दरगाह बनाई गई। गुरुवार और शुक्रवार को दरगाह पर हर मजहब के करीब 40,000 लोग आते हैं। अक्सर शुक्रवार को दरगाह पर कव्वाली का भी आयोजन किया जाता है। 

Web Title: history of haji ali dargah in mumbai

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