जितना ज्यादा फेसबुक का इस्तेमाल करेंगे, उतना बुरा फील करेंगे: रिसर्च
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 2, 2019 02:34 PM2019-11-02T14:34:49+5:302019-11-02T14:34:49+5:30
ऑनलाइन सोशल नेटवर्किंग साइट का लोग अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग अपनी बाकी चीजों को छिपाकर सिर्फ अपने ग्लैमर को प्रोजेक्ट करते हैं तो कुछ लोग अपने करीबीयों से जुड़े रहने के लिये इसका इस्तेमाल करते हैं।
फेसबुक कंपनी की तरफ से पिछले साल उपलब्ध कराये गये डेटा के अनुसार एवरेज फेसबुक यूजर लगभग 1 घंटा समय फेसबुक पर बिताते हैं। डेलॉइट के एक सर्वे में यह निकलकर आया कि अधिकांश स्मार्टफोन यूजर्स सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले सबसे पहले अपना स्मार्टफोन चेक करते हैं।
समाज से जुड़े रहना बेशक मानव अस्तित्व के लिये एक स्वस्थ्य और आवश्यक हिस्सा है। हजारों अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला कि अधिकांश मनुष्य तभी कामयाब होते हैं जब अन्य मनुष्यों के साथ उनके मजबूत और सकारात्मक संबंध होते हैं।
पुराने रिसर्च से पता चलता है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल आमने-सामने वाले रिश्ते से अलग हो सकता है, सार्थक गतिविधियों को कम कर सकता है। इसके चलते मोबाइल, लैपटॉप की स्क्रीन पर समय ज्यादा बीतता है जिसके चलते सुस्त व्यवहार में बढ़ावा देखने को मिल सकता है। इससे इंटरनेट का आदी होने का खतरा है और अनुचित समाजिक तुलना से आत्मसम्मान को भी खत्म कर सकता है।
खुद की तुलना मानव स्वभाव पर एक मजबूत प्रभाव डाल सकता है क्योंकि सोशल मीडिया पर लोग अपने जीवन के सबसे सकारात्मक पहलुओं को ही अधिकतर प्रदर्शित करते हैं। इससे इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया में यह सब देखकर खुद के और अपने जीवन के बारे में नकारात्मक सोच से घिर जाता हो।
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल से दुख और अप्रसन्नता नहीं फैलती बल्कि सोशल मीडिया को अधिकतर इस्तेमाल ऐसे लोग करते हैं जो नाखुश हैं। अन्य दूसरे अध्ययनों में पाया गया कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल से सामाजिक समर्थन और वास्तविक दुनिया के रिश्तों में नयापन आता है जिसके प्रभाव से खुशी आती है।
कई लोगों के एक समूह का अध्ययन किया गया। इसमें फेस-टू-फेस और ऑनलाइन इंटरैक्शन की सीधी तुलना की गयी। इससे मिलने वाले परिणामों से पता चला कि जब तक वास्तविक दुनिया के सामाजिक नेटवर्क के जरिये सभी एक दूसरे से सकारात्मक रूप से जुड़े थे सभी खुश और प्रसन्न थे। जब इसी समूह के लोग सालभर फेसबुक के जरिये एक दूसरे से जुड़े रहे तो उनका जुड़ाव नकारात्मक था।
कहने का मतलब है कि ऑनलाइन सोशल मीडिया के जरिये दूसरों के घुमावदार जीवन को देखकर व्यक्ति खुद को नकारात्मक महसूस करता है। दूसरी बात सोशल मीडिया इंटरैक्शन वास्तविक जीवन के अनुभव से अलग हो सकता है। इससे साफ होता है कि ऑनलाइन सामाजिक संपर्क वास्तविकता का विकल्प नहीं है।