Swami Vivekananda Jayanti: स्वामी विवेकानंद की बात जब भी होती है, रामकृष्ण परमहंस की चर्चा भी जरूर हो जाती है। विवेकानंद के जीवन को बड़ा बदलाव देने का श्रेय उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस को ही जाता है जिनसे मुलाकात के बाद उनके जीवन में सबकुछ बदल गया।
ऐसे तो इस गुरु और शिष्य के बीच जीवन दर्शन और अध्यात्म को लेकर कई दिलचस्प संवाद हैं, जिनसे कुछ न कुछ सीखने को मिलता है लेकिन इन सभी में सबसे खास विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की पहली मुलाकात है।
विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जब पहली बार मिले
स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस के बीच मुलाकात एक बेहद अलग बात थी। ये एक शिक्षित और अशिक्षित के बीच, धनी और गरीब के बीच की मुलाकात थी। कोलकाता के दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण से पहली ही मुलाकात में विवेकानंद ने पूछा- 'महाराज, क्या आपने ईश्वर को देखा है?'
परमहंस ने कहा, 'हां, मैंने ईश्वर का दर्शन किया है, तुम लोगों को जैसे देख रहा हूं, ठीक वैसे ही बल्कि और भी स्पष्ट रूप से। फिर उन्होंने कहा कि ईश्वर को देखा जा सकता है, उनसे बातें की जा सकती हैं, लेकिन उन्हें चाहता ही कौन है?' परमहंस ने आगे कहा, 'लोग पत्नी-बच्चों के लिए, धन-दौलत के लिए आंसू बहाते हैं, लेकिन ईश्वर के दर्शन नहीं हुए इस कारण कौन रोता है? यदि कोई उन्हें हृदय से पुकारे तो वे अवश्य ही दर्शन देंगे।'
ऐसा कहते हैं कि परमहंस के साथ दूसरी मुलाकात में विवेकानंद को और विचित्र अनुभव हुए। विवेकानंद ने ऐसा अनुभव किया कि जैसे कमरे की दीवारें, मंदिर का उद्यान और यहां तक कि पूरा ब्रह्मांड ही घूमते हुए कहीं विलीन होने लगा है। उनका अपना 'अहं' भाव भी शून्य में लय होने लगा। विवेकानंद ये सब देख बेचैन हो गए। इस पर गुरु परमहंस खिलखिलाकर हंसे विवेकानंद का सीना स्पर्श कर उन्हें शांत किया और कहा- अच्छा, अभी रहने दे। समय आने पर सब होगा।