हम सभी के जीवन में संयम और शालीनता का महत्व क्या हो सकता है, इसका एक उदाहरण स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी एक घटना से भी मिलता है। आम तौर पर हमसे कोई कुछ भी कह दे तो हमारे कान तुरंत खड़े हो जाते हैं और हम वाद-विवाद के लिए तैयार हो जाते हैं। स्वामी विवेकानंद इस आचरण से बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करते थे फिर चाहे जगह कोई भी हो।
ऐसी ही स्वामी विवेकानंद से जुड़ी एक कहानी बहुत प्रचलित है। दरअसल विवेकानंद एक बार ट्रेन से कहीं जा रहे थे। स्वामी जिस ट्रेन डब्बे में वह सफर कर रहे थे, उसमें कुछ अंग्रेज यात्री भी मौजूद थे। उन अंग्रेजों ने जब गेरुए वस्त्र में एक शख्स को अपने साथ देखा तो उन्होंने उनकी निंदा करनी शुरू कर दी। वे गाली भी दे रहे थे। उन्हें लगा था कि स्वामीजी अंग्रेजी नहीं जानते होंगे। इसलिए उन्होंने आपसी बातचीत में साधुओं को काफी बुरा-भला कहा।
रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया। वहां, स्वामी विवेकानंद के स्वागत के लिए हजारों लोग उपस्थित थे। उनमें कुछ विद्वान और अधिकारी भी थे। स्टेशन पर उपस्थित लोगों को संबोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गये सवालों का जवाब स्वामीजी अंग्रेजी में ही दे रहे थे।
विवेकानंद को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देख ट्रेन में सवार अंग्रेज यात्री हैरान रह गये। ट्रेन जब उस स्टेशन से आगे बढ़ी तो अवसर मिलने पर ये अंग्रेज विवेकानंद के पास आए और उनसे नम्रतापूर्वक बोले, 'आपने हमारी बातों का बुरा माना होगा?'
इतना सुन स्वामी विवेकानंद ने शालीनता से कहा, 'मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना व्यस्त था कि आप लोगों की बातें सुनने के बावजूद उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला।' यह सुनकर अंग्रेजों का सिर शर्म से झुक गया और अपने व्यवहार के लिए उनसे माफी मांगी।