श्रीमद भगवद गीता को जीवन का सार कहा जाता है। कहते हैं इसमें जीवन से जुड़े सभी प्रश्नों और उलझनों का हल है। गीता का सही मायनों में जिसने ज्ञान हासिल कर लिया उससे खुशी दूर नहीं रह सकती है। महाभारत की कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का अनमोल ज्ञान अर्जुन को उस समय दिया जब वे युद्ध से पहले मोह-माया के बंधन में बंधे थे। अर्जुन जब रणभूमि में पहुंचे तो अपने सामने दूसरे खेमे में नाते-रिश्तेदारों, मित्रों, भाईयों और गुरु को देख भावुक हो गये और अपने युद्ध के कर्तव्य को करने से मना कर दिया।
अर्जुन इस कल्पना मात्र से ही डर गये कि भीष्ण पितामह, गुरु, भाईयों और मित्रजनों पर बाण कैसे चलाएं। अर्जुन की इस दुविधा का निवारण तब भगवान श्रीकृष्ण ने बीच रणभूमि में किया और उस परम ज्ञान से परिचय कराया जो मानव जीवन के लिए आज भी बहुत महत्वपूर्ण है। इन्हीं में से कुछ जिक्र उन बातों का भी है जो व्यक्ति को नर्क तक ले जाता है। आईए जानते हैं....
Srimad Bhagavad Gita: नर्क के तीन द्वार हैं- काम, क्रोध और लालच
भगवान श्रीकृष्ण ने गीत के संदेश में स्पष्ट कहा है कि किसी भी व्यक्ति के लिए काम, क्रोध और लालच, ये तीनों नर्क का द्वार खोलते हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं-
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।16.21।।
इसके मायने ये हैं कि काम, क्रोध और लोभ तीनों नर्क का द्वार हैं और जीव के पतन की राह खोलते हैं। इसलिए इन तीनों का त्याग कर दिया जाना चाहिए। भगवान कहते हैं कि किसी भी चीज को सुख का साधन समझकर उसके बारे में लगातार चिंतन करने से उसकी कामना पैदा होती है। अगर कामना पूर्ण हो जाए तो व्यक्ति का लोभ बढ़ता है और पूर्ण न हो या इसमें कोई बाधा आये तो क्रोध उत्पन्न होता है। अगर कामना बहुत बलवती है तो क्रोध भी उतना ही उग्र होता है कि जीवन पर इस प्रभाव दिखने लगता है।
भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार कामना पूर्ण होने पर लोभ तो बढ़ता ही है साथ ही हमेशा असंतुष्टि का भाव बना रहता है। असंतुष्ट या लोभी पुरुष कभी शान्ति और सुख प्राप्त नहीं कर पाता क्योंकि यही लोभ का स्वभाव है। गीता में कहा गया है- क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है। भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है और जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क का नाश हो जाता है। जब तर्क का नाश होता है तब व्यक्ति का भी पतन होता है।