Shardiya Navratri 2021: मां दुर्गा का चौथा रूप है मां कूष्मांडा, जानें पूजा विधि, मंत्र और आरती
By रुस्तम राणा | Published: October 9, 2021 02:16 PM2021-10-09T14:16:15+5:302021-10-09T14:20:46+5:30
शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। इस पर्व में मां शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चतुर्थी तिथि के दिन मां कूष्मांडा की पूजा का विधान है। हालांकि इस साल तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन पड़ रही हैं। ऐसे में मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन ही की जाएगी।
धार्मिक मान्यता है कि मां कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों के समस्त प्रकार के रोग-दोष मिट जाते हैं। इनकी आराधना से भक्तों की आयु, यश, बल आरोग्य, संतान सुख की वृद्धि होती है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मांड में चारो ओर अंधकार था, कोई जीव-जंतुओं का नामो-निशान नहीं था तब मां कूष्मांडा ने इस सृष्टि की रचना की थी। इसी कारण मां को कूष्मांडा कहा जाता है। आज के दिन पहले मां का ध्यान मंत्र पढ़कर उनका आवाह्न किया जाता है और फिर मंत्र पढ़कर उनकी आराधना की जाती है।
मां कूष्मांडा का स्वरूप
मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में जपमाला है। मां शेर की सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां अपने भक्तों की सारी मुरादें पूरी करती हैं। इनके दर से किसी भी सवाली की भी झोली खाली नहीं जाती है।
इस विधि से करें मां कूष्मांड की पूजा
सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद मां कूष्मांडा का ध्यान कर उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। फिर मां कूष्मांडा को हलवे और दही का भोग लगाएं। मंत्र सहित मां का ध्यान करें और अंत में आरती करें।
देवी कूष्मांडा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
मां कूष्मांडा आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुंचती हो मां अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥