Sawan Somvar 2021: सावन माह का ऐसे तो हर दिन बेहद पवित्र माना गया है लेकिन सोमवार के दिन का महत्व बेहद विशेष है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव को जल चढ़ाना चाहिए और पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। वहीं कुंआरी कन्याएं भी अच्छे वर के लिए सोमवार का व्रत करती हैं।
सावन सोमवार 2021: इस बार पड़ेंगे 4 सोमवार
इस बार सावन में चार सोमवार पड़ रहे हैं। दरअसल पंचांग के अनुसार सावन माह की शुरुआत 25 जुलाई, 2021 से हो रही है। ये रविवार का दिन होगा। इसके बाद श्रावण-2021 का पहला सोमवार 26 जुलाई को पड़ेगा। देखें सावन सोमवार-2021 की पूरी लिस्ट...
सावन का पहला सोमवार- 26 जुलाई सावन का दूसरा सोमवार- 2 अगस्तसावन का तीसरा सोमवार- 9 अगस्त सावन का चौथा और आखिरी सोमवार -16 अगस्त
सोमवार व्रत कथा (Somvar vrat Katha)
कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में बहुत धनवान साहूकार रहता था। उसको हालांकि एक बहुत बड़ा दुख ये था कि उसके कोई पुत्र नहीं थे। पुत्र की प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था। साथ ही शाम को शिव मंदिर में जाकर दीपक भी जलाया करता था।
उसके उस भक्तिभाव को देखकर एक बार पार्वती माता ने ने शिवजी से कहा कि साहूकार आप का अनन्य भक्त है और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है। इसलिए इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए ।
पार्वती जी का ऐसा आग्रह देख शिवजी ने कहा इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिन्ता में यह दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र नहीं है पर फिर भी मैं इसे पुत्र की प्राप्ति का वर दे सकता हूं लेकिन यह केवल 12 साल जीवित रहेगा।
यह सब बातें साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही दुख हुआ। वह पहले जैसा ही शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ दिनों के बाद साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया।
बालक जब 11 साल का हुआ तो उसकी माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए कहा तो साहूकार कहने लगा कि अभी वो इसका इसका विवाह नहीं करेंगे और उसे पढ़ने के लिए काशी भेजेंगे।
इसके बाद साहूकार ने बालक के मामा को बुला करके उसको बहुत सा धन देकर कहा तुम उस बालक को काशी जी पढ़ने के लिये ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ।
काशी जाने के रास्ते में हुई शादी
दोनों के काशी जाने के रास्ते में एक शहर पड़ा। उस शहर में राजा की कन्या का विवाह था। वहीं, दूसरे राजा का लड़का जो विवाह के लिये बारात लेकर आया था वह एक आंख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं उसे देख कन्या के माता-पिता विवाह में कोई अड़चन पैदा न कर दें।
ऐसे में राजा ने जब साहूकार के सुंदर लड़के को देखा तो सोचा कि क्यों न दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाये। राजा ने लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गये फिर उस लड़के को वर के कपड़े पहनाकर दरवाजे पर ले जाया गया।
इसके बाद राजा ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाय तो क्या बुराई है? इस पर भी लड़का और उसके मामा राजी हो गए। हालांकि जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुनरी पर लिख दिया कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ है परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंक से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं।
लड़के के जाने के पश्चात उस राजकुमारी ने जब अपनी चुनरी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई।
उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए और पढ़ने लगा। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। तभी लड़के ने अपने मामा से कहा- आज उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है।
मामा ने अंदर जाकर सोने को कहा और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोने लगूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा।
शिवजी की कृपा से फिर उठ खड़ा हुआ लड़का
मामा ने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरम्भ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से जा रहे थे। जब शिव- पार्वती ने पास जाकर देखा तो एक लड़का मुर्दा पड़ा था। पार्वती जी कहने लगीं- महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था।
पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया और लड़का जीवित हो गया। इसके बाद शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत चले गये।
इसके बाद शिक्षा पूरी होने पर लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था। वहां पहुंचने पर लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की साथ लड़की और जमाई को विदा किया।
जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने सबसे पहले आगे जाकर मां-बाप को पूरी बात बताई। पिता को विश्वास नहीं हुआ। इस पर मामा ने कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ लेकर आया है तो सेठ ने आनन्द के साथ उसका स्वागत किया और सभी बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे।
कथा के अनुसार जो कोई भी सोमवार के व्रत इसी श्रद्धा से करता है, कथा को पढ़ता या सुनता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।