RamKrishna Paramhans Jayanti: रामकृष्ण परमहंस जयंती आज, मां काली का किया था दर्शन, जानिए उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 25, 2020 11:59 AM2020-02-25T11:59:33+5:302020-02-25T11:59:33+5:30
RamKrishna Paramhans Jayanti: हिंदी पंचांग के अनुसार रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हुआ था।
RamKrishna Paramhans Jayanti: भारत के महान संत, अध्यात्मिक गुरु और विचारक रामकृष्ण परमहंस का जन्म पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर में हुआ था। आज यानी 25 फरवरी को उनकी जयंती है। उनका असली नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था लेकिन आगे चलकर वे रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। आई, रामकृष्ण परमहंस की जयंती पर उनके बारे में जानते हैं कुछ दिलचस्प बातें...
हिंदी पंचांग के अनुसार रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हुआ था। यही तिथि आज है। हालांकि, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मान्यता है कि उनका जन्म 18 फरवरी, 1836 को हुआ। कहते हैं कि रामकृष्ण परमहंस बचपन से ही मां काली के भक्त थे। उन्होंने केवल 17 साल की उम्र में अपने घर का त्याग कर दिया और फिर अपना पूरा जीवन मां काली को सौंप दिया।
कैसे मिली गदाधर चट्टोपाध्याय को परमहंस की उपाधि
इस उपाधि के बारे में कहा जाता है कि ये केवल उसी को मिलता है जिसने अपने इंद्रियों पर वश पा लिया हो और उसके पास असीम ज्ञान का भंडार हो। रामकृष्ण ये सबकुछ कर चुके थे और अपने विचार और उपदेश से लोगों को प्रेरित करने का काम किया। ऐसा भी कहते हैं कि उन्होंने मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताते हुए निराकार ईश्वर की अराधना की बात की। कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस को काली माता के दर्शन हुए थे।
रामकृष्ण परमहंस के कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर से जुड़ने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। वे अपने बड़े भाई रामकुमार के साथ कोलकाता आए थे। रामकुमार को तब दक्षिणेश्वर काली मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था। यहीं उनकी देवी काली में आस्था बढ़ने लगी।
जब विवेकानंद से पहली बार मिले रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानंद जब पहली बार रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उनसे पूछ लिया- 'महाराज, क्या आपने ईश्वर को देखा है?'
परमहंस ने जवाब दिया, 'हां, मैंने ईश्वर का दर्शन किया है।' कहते हैं कि परमहंस के साथ दूसरी मुलाकात में विवेकानंद को बेहद विचित्र अनुभव हुए। विवेकानंद ने ऐसा अनुभव किया कि जैसे कमरे की दीवारें, मंदिर का उद्यान और यहां तक कि पूरा ब्रह्मांड ही घूमते हुए कहीं विलीन होने लगा है।
विवेकानंद ये सब देख बेचैन हो गए। इस पर गुरु परमहंस खिलखिलाकर हंसे विवेकानंद का सीना स्पर्श कर उन्हें शांत किया और कहा- अच्छा, अभी रहने दे। समय आने पर सब होगा।