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Pradosh Vrat 2020: माघ मास का पहला प्रदोष व्रत 22 जनवरी को, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 20, 2020 14:46 IST

Pradosh Vrat: इस बार त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी को रात 1.44 बजे हो रही है और इसका समापन 22 जनवरी की रात को 1.48 बजे होगा।

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ठळक मुद्देमाघ मास का पहला प्रदोष व्रत 22 जनवरी को है, ये साल 2020 का दूसरा प्रदोष व्रतमाघ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी को रात 1.44 बजे हो रही है

Pradosh Vrat 2020: इस साल का दूसरा और माघ मास का पहला प्रदोष व्रत 22 जनवरी (बुधवार) को है। यह कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला प्रदोष है। भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत हर मास के कृष्ण पक्ष और फिर शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में पड़ता है।

एकादशी में जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा का विशेष विधान है, उसी प्रकार प्रदोष में भगवान शिव की अराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के लिए समर्पित इस व्रत को करने से मानव जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उस पर आने वाला संकट भी टल जाता है।

Pradosh Vrat 2020: इस बार सौम्यवारा प्रदोष

मान्यताओं के अनुसार हर मास के पक्षों में जिस दिन भी प्रदोष व्रत पड़ता है, उसकी महिमा दिन के हिसाब से अलग-अलग होती है। सभी का महत्व और लाभ भी अलग-अलग होता है। वैसे तो हर दिन का प्रदोष शुभ है लेकिन कुछ विशेष दिन बेहद शुभ और लाभदायी माने जाते हैं। 

सोमवार को आने वाले प्रदोष, मंगलवार को आने वाले भौम प्रदोष और शनिवार को पड़ने वाले शनि प्रदोष का महत्व अधिक है। ऐसे ही रविवार के प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष और बुधवार के प्रदोष व्रत को सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं। गुरुवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष कहा जाता है। शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष को भ्रुगुवारा प्रदोष कहते हैं।

Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत की शाम की पूजा आरंभ करने से पहले स्नान करें और पवित्र वस्त्र पहनकर पूजा करने बैठे। संभव हो तो उत्तर-पूर्व की ओर मुंह करते हुए पूजा के स्थान पर बैठें। इसके बाद पांच रंगों से रंगोली बनाए और पंचामृत से भगवान शिव का अभिषेक करें। इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। अभिषक के बाद विधिवत पूजा करें और बेल पत्र, धतुरा, फूल, मिठाई, फल आदि का भोग भगवान शिव को लगाएं। इस पूरे दिन उपवास जरूर रखें। 

मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत करने से आर्थिक संकटों से जूझ रहे लोगों को विशेष लाभ होता है। अविवाहित लड़के-लड़कियों के लिए भी इस पूजन का महत्व है। पुत्र की कामना करने वाले लोगों को भी इस व्रत को करना चाहिए।

Pradosh Vrat 2020: माघ मास में प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त

इस बार माघ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी को रात 1.44 बजे हो रही है और इसका समापन 22 जनवरी की रात को 1.48 बजे होगा। प्रदोष व्रत की पूजा शाम में करना शुभ होता है। इस लिहाज से प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6.25 बजे से रात 8.59 तक होगा। माघ माघ के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत इसके बाद 6 फरवरी (गुरुवार) को पड़ेगा।

Pradosh Vrat 2020: प्रदोष व्रत की कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव एक बार क्षय रोग से पीड़ित हो गये थे। इसके चलते उन्हें कई कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। भगवान शिव ने चंद्र देव के उस 'दोष' का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी (तेरस) के दिन ही एक तरह से नया जीवन प्रदान किया। इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। प्रदोष का एक अर्थ गोधूलि बेला भी होता है। इसलिए प्रदोष व्रत की पूजा शाम को की जाती है।

स्कंद पुराण के एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती। ऐसे ही एक दिन वह जब भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे एक अत्यंत सुन्दर बालक दिखा। वह बालक उदास था और अकेला बैठा हुआ था। वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। हालांकि, ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है।

एक युद्ध में शत्रुओं ने धर्मगुप्त के पिता को मार दिया था और उसका राज्य हड़प लिया था। इसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और अच्छे से उसका पालन-पोषण किया। 

कुछ समय बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई। यहीं उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि ने बताया कि जो बालक मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है। यह सुनकर महिला उदास हो गई। इसे देख ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। 

दोनों बालक कुछ दिनों बाद जब बड़े हुए तो वन में घूमने निकले गये। वहां उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया। 

कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को पता चला कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा और आशीर्वाद से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करा दिया। राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर फिर से अपना शासन स्थापित किया।

मान्यता है कि ऐसा ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंद पुराण के अनुसार जो कोई प्रदोष व्रत करता है और इसकी कथा सुनता या पढ़ता है उसकी तमाम समस्याएं दूर होती हैं।

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