Chaitra Navratri 6th Day: जब राक्षसों ने किया था देवों का अपमान, देवी कात्यायनी ने लिया था अवतार-पढ़ें पौराणिक कथा
By मेघना वर्मा | Updated: March 30, 2020 08:40 IST2020-03-30T08:40:40+5:302020-03-30T08:40:40+5:30
मां कात्यायनी के स्वरूप की बात करें तो इनका शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां की चार भुजाएं और सवारी सिंह है।

Chaitra Navratri 6th Day: जब राक्षसों ने किया था देवों का अपमान, देवी कात्यायनी ने लिया था अवतार-पढ़ें पौराणिक कथा
नवारात्रि का आज छठवां दिन हैं। आज के दिन मां की कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन जो भक्त पूरे मन से भगवान कात्यायनी की पूजा करता है उसके सारे दोष खत्म हो जाते हैं। देवी कात्यायनी अपने भक्तों की हर परेशानी को दूर करती है।
मां कात्यायनी को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। बताया जाता है कि द्वापर युग में गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी। कहा जाता है कि कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो तो मां कात्यायनी की उपासना से लाभ होता है।
ऐसा है मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी के स्वरूप की बात करें तो इनका शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां की चार भुजाएं और सवारी सिंह है। जिन पर वो सवार हैं। मां के हाथ में तलवार है और दूसरे हाथों में कमल का फूल है। मां की इस मुद्रा से स्नेह और शक्ति दोनों सम्मलित हैं।
देवी कात्यायनी का मंत्र
चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना,
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां कात्यायनी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार महान महर्षि कात्यायन ने आदिशक्ति देवी दुर्गा के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी इसी तपस्या से खुश होकर मां ने उनके घर में पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। मां का जन्म महर्षि कात्यान के आश्रम में ही हुआ।
पुराणों के अुनसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बढ़ा उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई। मां ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मांस के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनकी तीन दिनों तक पूजा की थी।
मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत किया था। इसके बाद शुभ और निशुम्भ ने स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छीन लिया तथा नवग्रहों को बंधक बना लिया। उन दोनों ने सभी देवताओं का अपमान कर उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया।
इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की। मां प्रकट हुईं और शुंभ-निशुंभ का वध कर देवताओं को इस संकट से मुक्ति दी। मां ने देवताओं को ये वरदान दिया था कि वो संकट के समय उनकी रक्षा करेंगी।
मां कात्यायनी की आरती
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।


