Navratri 2020: आज नवरात्रि के सातवें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा, जानें विधि, मंत्र और कथा
By गुणातीत ओझा | Published: October 22, 2020 11:39 PM2020-10-22T23:39:33+5:302020-10-23T09:37:21+5:30
आज 23 अक्टूबर शुक्रवार को आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है। सप्तमी की तिथि में मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। नवरात्रि में सप्तमी की तिथि को विशेष महत्व माना गया है।
Navratri 7th Day: आज 23 अक्टूबर शुक्रवार को आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है। सप्तमी की तिथि में मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। नवरात्रि में सप्तमी की तिथि को विशेष महत्व माना गया है। मां कालरात्रि असुरों का वध किया था। मान्यता है कि सप्तमी की तिथि पर विधि विधान से पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करती हैं। मां कालरात्रि की पूजा से अज्ञात भय, शत्रु और मानसिक तनाव दूर चले जाता है। मां कालरात्रि की पूजा नकारात्मक ऊर्जा को भी जड़ से मिटाती है। मां कालरात्रि को बेहद शक्तिशाली देवी का दर्जा प्राप्त है। इन्हें शुभंकरी माता के नाम से भी पूजा जाता है। मां कालरात्रि की पूजा रात के समय भी की जाती है।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में बहुत ही भंयकर है, लेकिन मां कालरात्रि का हृदय बहुत ही कोमल और विशाल है। मां कालरात्रि की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं। मां कालरात्रि की सवारी गर्धव यानि गधा है। मां कालरात्रि का दायां हाथ हमेशा ऊपर की ओर उठा रहता है, इसका अर्थ मां सभी को आशीर्वाद दे रही हैं। मां कालरात्रि के निचले दाहिने हाथ की मुद्रा भक्तों के भय को दूर करने वाली है। उनके बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र है। निचले बाएं हाथ में कटार है।
पूजा विधि
मां कालरात्रि की पूजा आरंभ करने से पहले कुमकुम, लाल पुष्प, रोली लगाएं। माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाएं। मां को लाल फूल अर्पित करें। साथ ही गुड़ का भोग लगाएं। इसके बाद मां के मन्त्रों का जाप या सप्तशती का पाठ करें। इस दिन मां की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है।
मां कालरात्रि का मंत्र
1- या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2- ॐ कालरात्रि देव्ये नम:
मां कालरात्रि की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना आंतक मचाना शुरू कर दिया तो देवतागण परेशान हो गए और भगवान शंकर के पास पहुंचे। तब भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। भगवान शंकर का आदेश प्राप्त करने के बाद पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया। लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। तब मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने इसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया।