Makar Sankranti: मकर संक्रांति का महाभारत से अद्भुत कनेक्शन, जानिए भीष्म ने क्यों त्यागा था इस दिन देह
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 11, 2020 04:40 PM2020-01-11T16:40:38+5:302020-01-11T16:40:38+5:30
Makar Sankranti: मकर संक्रांति का अद्भुत जुड़ाव महाभारत काल से है। मान्यता है कि इसी दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपना देह त्यागा था।
Makar Sankranti 2020:मकर संक्रांति के दिन का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। मान्यता है सूर्य इस दिन धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस त्योहार को देश भर के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है।
दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर भारत में इसे खिचड़ी, पतंगोत्सव या मकर संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है। कई जगहों पर इसे उत्तरायन भी कहा जाता है।
Makar Sankranti: मकर संक्रांति के दिन भीष्म पितामह ने त्यागा देह
मकर संक्रांति का अद्भुत जुड़ाव महाभारत काल से है। मान्यता है कि कई दिनों तक बाणों की शैय्या पर पड़े रहने के बाद इसी दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपना देह त्यागा था। दरअसल, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए अर्जुन के बाणों से बुरी तरह चोट खाने के बावजूद वे जीवित रहे थे।
महाभारत के युद्ध में भीष्म 10 दिनों तक कौरवों के सेनापति रहे थे और लगातार पांडव की सेना का संहार कर रहे थे। बाद में पांडवों ने शिखंडी की मदद से भीष्म को धनुष छोड़ने पर मजबूर किया और फिर अर्जुन ने एक के बाद एक कई बाण मारकर उन्हें धरती पर गिरा दिया था।
भीष्म पितामह ने ये प्रण ले रखा था कि जब तक हस्तिनापुर सभी ओर से सुरक्षित नहीं हो जाता, वे प्राण नहीं देंगे। एक कथा के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में एक वसु थे। वसु एक प्रकार के देवता ही माने गए हैं। वसु ने ऋषि वसिष्ठ की गाय चुरा ली थी। इसी बात से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेने का शाप दिया था।
Makar Sankranti: मकर संक्रांति के दिन भीष्म पितामह ने क्यों त्यागा देह
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तराय का महत्व बताते हुए कहा है कि 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायन होते हैं और धरती प्रकाशमयी होती है, उस समय शरीर त्यागने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है। ऐसे लोग सीधे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यही कारण भी है कि भीष्म पितामह ने शरीर त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायन होने तक का इंतजार किया।
Makar Sankranti: गंगाजी सागर में मिली थी
पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन गंगाजी भी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर और कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं सागर में जाकर मिल गई थीं। इस कारण भी मकर संक्रांति का बहुत महत्व है।
मकर संक्रांति के दिन नदियों में स्नान की भी परंपरा है। साथ ही दान और भगवान सूर्य की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। एक खास बात ये भी है कि इस दिन से मलमास या खरमास भी खत्म हो जाता है और शुभ दिनों की शुरुआत होती है।