मकर संक्रांति का महाभारत से भी है खास जुड़ाव, युद्ध खत्म होने के बाद भीष्म पितामह ने त्यागा था इस दिन देह
By विनीत कुमार | Published: January 11, 2021 03:57 PM2021-01-11T15:57:03+5:302021-01-11T16:08:22+5:30
महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन अपना देह त्यागा था। कई दिन बाणों की सैय्या पर गुजारते हुए उन्होंने सूर्य के उत्तरायन होने का इंतजार किया।
Makar Sankranti: मकर संक्रांति का महाभारत से भी खास कनेक्शन है। महाभारत की कथा के अनुसार इसी दिन भीष्म पितामह ने अपना देह त्यागा था। कथा के अनुसार अर्जुन ने युद्ध के 11वें दिन भीष्म पितामह को बाणों की सैय्या पर गिरा दिया था। इसके बाद 58 रातें बाणों की उसी सैय्या पर भारी कष्ट के साथ काटने के बाद सूर्य के उत्तरायण होने पहले दिन पितामह ने देह त्यागा था।
दरअसल, मकर संक्रांति के दिन का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। मान्यता है सूर्य इस दिन धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन से देवों के दिन का प्रारंभ भी कहा जाता है। इस त्योहार को देश भर के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाई जाती है।
Makar Sankranti: मकर संक्रांति के दिन भीष्म पितामह ने क्यों त्यागा देह
भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए अर्जुन के बाणों से घायल होने के बावजूद जीवित रहे थे।
भीष्म 10 दिनों तक कौरवों के सेनापति रहे थे और इस दौरान पांडव को सफलता का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। ऐसे में कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने स्वयं पितामह से उन्हें मारने का तरीका पूछा।
भीष्म पितामह सब समझ गए। उन्होंने बस इतना कहा कि रणभूमि में अगर कोई महिला आ जाए तो वे शस्त्र नहीं उठाएंगे। इसके बाद अगले दिन पांडवों ने शिखंडी को रणभूमि में खड़ा कर दिया और फिर अर्जुन ने एक के बाद एक कई बाण मारकर पितामह को धरती पर गिरा दिया था।
भीष्म पितामह के मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागने का ये भी कारण था कि उन्होंने प्रण ले रखा था कि जब तक हस्तिनापुर सभी ओर से सुरक्षित नहीं हो जाता, वे प्राण नहीं देंगे।
महाभारत: भीष्ण पितामह की मृत्यु का पूर्व जन्म से भी कनेक्शन
एक और कथा के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में एक वसु थे। वसु एक प्रकार के देवता ही माने गए हैं। वसुओं ने ऋषि वसिष्ठ की गाय चुरा ली थी। इसी बात से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेने का शाप दिया था।
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए कहा है कि 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और धरती प्रकाशमयी होती है, उस समय देह त्यागने वाले का फिर से मृत्युलोक में जन्म नहीं होता है। ऐसे लोग सीधे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसे भी एक कारण कहा जा सकता है कि भीष्म पितामह ने शरीर त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायन होने तक का इंतजार किया।