Makar Sankranti 2020:मकर संक्रांति देश के कई राज्यों में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और फिर दान की परंपरा है। साथ ही कई घरों में भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है तो वहीं, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में दही-चूड़ा और तिलबा (तिल का लड्डू) खाने की परंपरा है।
मकर संक्रांति को ही कई इलाकों में खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। आखिर क्या है मकर संक्रांति पर खिचड़ी की परंपरा? इस बारे में बाबा गोरखनाथ से जुड़ी एक कहानी का जिक्र आता है।
Makar Sankranti 2020: मकर संक्रांति पर खिचड़ी की परंपरा
कुछ कथाओं के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने जब आक्रमण किया तो उस समय नाथ योगी भी उसका पूरी ताकत के साथ मुकाबला कर रहे थे। अक्सर लड़ाई के बाद वे इतना थक जाते थे कि उनके लिए भोजन पकाना भी संभव नहीं हो पाता था। कई बार समय भी नहीं मिलता था कि वे भोजन बना सके।
ऐसे में वे अक्सर भूखे सो जाते थे। ऐसे में बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का हल निकाला। उन्होंने दाल, चावल और सब्जी क एक साथ पकाने की सलाह दी।
इससे काफी समय बच जाता था। इस तरह से खिचड़ी की शुरुआत हुई। सभी योगियों को ये नया भोजन बहुत स्वादिष्ट भी लगा। इससे नये भोजन से योगियों की समस्या का समाधान निकल गया। बाद में खिलजी के आतंक को भी दूर करने में कामयाबी मिली। मकर संक्रांति को गोरखपुर में विजय दर्शन पर्व के तौर पर भी मनाया जाता है।
आज भी गोरखपुर में मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ के मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है। इसके बाद इस खिचड़ी को प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में बांटा जाता है। साथ ही मकर संक्रांति के दिन से यहां खिचड़ी मेला भी शुरू होता है।
Makar Sankranti 2020: खिचड़ी का क्या है महत्व
जानकारों के अनुसार खिचड़ी में चावल और जल चंद्रमा के प्रभाव में होता है। खिचड़ी में डाली जाने वाली उड़द की दाल का संबंध शनि देव से है। हल्दी का संबंध गुरु ग्रह से और हरी सब्जियों का संबंध बुध से माना जाता है।
खिचड़ी में घी का भी महत्व है। मान्यता है कि इसका संबंध सूर्य देव से होता है। घी से शुक्र और मंगल भी प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि खिचड़ी खाने से बीमारियां दूर भागती हैं और सभी कष्टों से मुक्ति भी मिलती हैं।
Makar Sankranti 2020: दही-चूड़ा और तिल का भी महत्व
मकर संक्रांति का त्योहार कड़ाके की ठंड के बाद आता है। मान्यता है कि इस दिन से सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर ज्यादा तेज होने लगती है और ये ठंड को अलविदा कहने का संकेत देता है। इस मौके पर तिल का लड्डू खाने की परंपरा है। साथ ही कई क्षेत्रों में दही-चूड़ा और कई तरह की सब्जियां खाई जाती है।