Mahalaya Amavasya 2022 Date: कब है सर्व पितृ अमावस्या? इस दिन होती है पितरों की विदाई, जानें विधि और महत्व
By रुस्तम राणा | Published: September 16, 2022 02:18 PM2022-09-16T14:18:39+5:302022-09-16T14:18:39+5:30
Sarva Pitri Amavasya 2022 Date: इस साल 25 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या है। इसी दिन पितृ विसर्जन होता है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में हमारे दिवंगत परिजन धरती में विचरण करने आते हैं और आश्विन माह की अमावस्या के दिन पुनः परलोक चले जाते हैं।
श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha) का समापन आश्विन अमावस्या के दिन होता है। शास्त्रों में इसे सर्व पितृ अमावस्या या फिर महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस साल 25 सितंबर, रविवार को सर्व पितृ अमावस्या है। इसी दिन पितृ विसर्जन होता है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में हमारे दिवंगत परिजन धरती में विचरण करने आते हैं और आश्विन माह की अमावस्या के दिन पुनः परलोक चले जाते हैं।
इस प्रकार सर्व पितृ अमावस्या का दिन पितरों की विदाई का दिन माना जाता है। पितृ पक्ष में तिथि अनुसार, पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। किंतु जब हमें अपने दिवंगत पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती है। उस स्थिति में सर्व पितृ अमावस्या के दिन ही उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिससे पितृ ऋण से मुक्ति मिल सके।
सर्व पितृ अमावस्या तिथि
अमावस्या तिथि प्रारंभ : 25 सितंबर की सुबह 03 बजकर 11 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त : 26 सितंबर की सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर
इस विधि से करें पितरों का श्राद्ध
इस दिन प्रातः उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब श्राद्ध के लिए सात्विक भोजन तैयार करें। पकवान में से थोड़ा-थोड़ा भोजन निकाल कर एक थाली में लगाएं। अब अपने घर के आंगन में या छत पर जाकर पत्तल को दोनों में भोजन को जल के साथ रखें। अब पितरों से उसे ग्रहण करने का आग्रह करें और किसी भी त्रुटि के लिए उनसे क्षमा मांगे। शाम के समय सरसों के तेल के दीपक जलाकर चौखट पर रखें। अब पितरों से आशीर्वाद बनाए रखने और परलोक लौटने का आग्रह करें।
महालया अमावस्या का महत्व
हिन्दू धर्म शास्त्रों में सर्व पितृ अमावस्या तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। यूं तो सभी मास की अमावस्या पितरों के लिए महत्वपूर्ण होती है, किंतु महालया अमावस्या (आश्विन अमावस्या) तिथि पर पितरों के लिए जल दान, श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से वे पूरी तरह तृप्त हो जाते हैं। इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं। ये दोनों ग्रह पितरों से संबंधित हैं। जहां सूर्य पिता का प्रतिनिधित्व करता है तो वहीं चंद्रमा मां का प्रतीक है। इस तिथि पर पितृ अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर पुनः मृत्युलोक चले जाते हैं।