महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद भस्म हो गया था अर्जुन का रथ, श्रीकृष्ण ने बताई थी ये वजह
By मेघना वर्मा | Published: June 5, 2020 04:36 PM2020-06-05T16:36:55+5:302020-06-05T16:36:55+5:30
पांडवों के पक्ष में खुद श्रीकृष्ण खड़े थे। जो अर्जुन के सारथी थे। युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि वो हनुमानजी से प्रार्थना करें और रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित हों।
महाभारत, हिन्दू धर्म के सबसे ज्यादा प्राचीन धर्म ग्रंथों में एक माना जाता है। जिसकी रचना महर्षि वेद व्यास द्वारा की गई थी। महाभारत की कहानी जिंदगी के हर मोड़ पर इंसानों को कुछ अलग सीख दे जाती है। महाभारत के पाठ सभी को कुछ ना कुछ शिक्षा जरूर दे जाते हैं। वहीं महाभारत के कई प्रसंग आज भी हमें अचम्भे में डाल जाते हैं।
इसी प्रसंग के अनुसार जिस समय महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ अर्जुन और श्रीकृष्ण दोनों ही रथ से उतर आए। श्रीकृष्ण के रथ छोड़ते ही पूरा रथ भस्म हो गया। इसे लेकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया। आइए आपको बताते हैं यही पौराणिक कथा-
महाभारत में कौरव सेना में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे महारथी थे। यही कारण था कि दुर्योधन को लग रहा था कि वो बड़ी आसानी से पांडवों को हरा देगा। मगर पांडवों के पक्ष में खुद श्रीकृष्ण खड़े थे। जो अर्जुन के सारथी थे। युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि वो हनुमानजी से प्रार्थना करें और रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजित हों। अर्जुन ने ऐसा ही किया।
पौराणिक कथा के अनुसार अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे। स्वंय शेषनाग ने रथ के पहियों को पकड़ रखा था ताकि दिव्यास्त्रों का प्रहार रथ पर ना हो। अर्जुन के रथ की रक्षा हनुमान जी भी कर रहे थे। वहीं जब युद्ध समाप्त हो गया तो अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि आप रथ से उतरिए फिर मैं उतरूंगा। मगर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पहले उतने को कहा इसके बाद श्रीकृष्ण खुद रथ से उतरे।
लग गई रथ में आग
पुराणों की मानें तो जिस समय श्रीकृष्ण रथ से उतरे शेषनाग पाताल लोक चले गए और हनुमानजी रथ के ऊपर से अंतर्ध्यान हो गए। जैसे ही ये सब उतर गए रथ धू-धू कर जल उठा। थोड़ी देर में रथ पूरी तरह जल गया। ये देखकर अर्जुन हैरान रह गए। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूझा कि भगवान ये कैसे हुआ।
श्रीकृष्ण ने बताई वजह
श्रीकृष्ण ने बताया कि कौरवों में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथी थे। उनके दिव्यास्त्रों के प्रहार से पहले ही ये रथ खत्म हो चुका है। इस पर हनुमानजी विराजित थे और स्वयं इसका सारथी मैं था। इसी वजह से ये रथ सिर्फ मेरे संकल्प की वजह से चल रहा था। अब इस रथ का काम पूरा हो चुका है। इसलिए ये रथ मैंने छोड़ दिया और ये भस्म हो गया।