महाभारत की लड़ाई के दौरान कैसे हुई 18 दिनों तक कौरव-पांडव के लाखों सैनिकों के खाने की व्यवस्था?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 23, 2021 04:14 PM2021-02-23T16:14:21+5:302021-02-23T16:26:18+5:30
महाभारत की लड़ाई में करीब 45 लाख से अधिक योद्धाओं ने हिस्सा लिया था। ऐसे में इन सभी के लिए खाने की व्यवस्था एक बड़ी जिम्मेदारी थी। एक राजा ने इसकी जिम्मेदारी संभाली थी और 18 दिन तक कौरव और पांडवों की सेना को खाना खिलाया था।
महाभारत की कहानी कई रोचक प्रसंगों से भरी हुई है। पांडवों और कौरवों के बीच चले 18 दिनों के युद्ध की इस कहानी में कई दिलचस्प मोड़ हैं। कुछ बातें तो ऐसी हैं, जिसके बारे में कई लोग नहीं जानते हैं। इसी में एक रोचक प्रसंग महाभारत के योद्धाओं के भोजन की व्यवस्था से भी जुड़ा है।
महभारत को सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है, जिसमें लाखों सैनिकों ने हिस्सा लिया था। कौरवों के पास 11 अक्षैहिणी तो पांडवों के पास 7 अक्षैहिणी सेना थी। इन्हें मिलाकर कुल करीब 45 लाख सैनिकों ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया था। ऐसे में क्या आपने सोचा है कि युद्ध में हिस्सा ले रहे इन सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था कैसे हुई थी।
उडुपी नरेश ने की थी लाखों सैनिकों के भोजन की व्यवस्था
कौरव और पांडव में जब युद्ध की ठहर गई तो हर पक्ष दूसरे राजा को अपनी ओर मिलाने में लगा था। किंवदंती के अनुसार कौरव-पांडव के प्रतिनिधि उडुपी नरेश को भी अपनी ओर से युद्ध लड़ने के लिए मनाने में लगे थे।
दोनों पक्षों की बातें सुनकर उडुपी नरेश तय नहीं कर पाए कि वह किसकी ओर से युद्ध लड़ें। ऐसे में उडुपी नरेश श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचे। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि भाईयों के बीच होने जा रहे इस भयंकर युद्ध के वह समर्थक नहीं हैं। हालांकि ये भी सच है कि वे इसे टाल नहीं सकते।
ऐसे में वे इस युद्ध में भूमिका तो निभाना चाहते हैं लेकिन शस्त्रों के माध्यम से हिस्सा नहीं लेना चाहते। उडुपी ने इस ओर भी श्रीकृष्ण का ध्यान दिलाया कि सभी राजा-महाराजा लड़ने के लिए तो आ रहे हैं कि लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि इस महायुद्ध के दौरान सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था कैसे होगी।
श्रीकृष्ण समझ गए उडुपी नरेश की बात
श्रीकृष्ण समझ गए कि उडुपी नरेश क्या कहना चाहते थे। फिर भी उन्होंने कहा- आपने बिल्कुल सही सोचा है और मुझे ऐसा लगता है कि आपके पास इस समस्या का कोई निदान है।
उडुपी ने इसके बाद अपनी इच्छा रखते हुए कहा कि वे इस युद्ध में दोनों पक्षों के योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध करना चाहते हैं। इस पर श्रीकृष्ण भी मान गए और उडुपी नरेश ने इस प्रकार अपनी सेना के साथ बिना शस्त्रों के ही महाभारत के इस महायुद्ध में भाग लिया।
उडुपी नरेश ने दोनों ओर के सैनिकों के लिए 18 दिन तक रोजाना भोजन उपलब्ध कराया। युधिष्ठिर ने भी युद्ध के बाद अपने राजतिलक समारोह के दौरान उडुपी नरेश की प्रशंसा की।