Karwa Chauth 2020 Puja Samagri List : करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। सदियों से चले आ रहे इस व्रत की परंपरा आज भी बरकरार है। करवा चौथ पति-पत्नी के बीच प्रेम का त्योहार है। आज के दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं। रात में चंद्रमा को देखकर अपने पति के हाथों पानी पीकर ही व्रत का पारण करती हैं। इस पवित्र पूजा में प्रयोग में होने वाली हर चीज का अपना महत्व है, जो इस व्रत के इतिहास और शक्ति का प्रतीक हैं। हम आपको कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके प्रयोग के बिना करवा चौथ की पूजा अधूरी है। आइए जानते हैं इनके बारे में..
करवाकरवा चौथ की पूजा में करवा का महत्वपूर्ण योगदान है। करवा उस नदी का प्रतिक माना जाता है, जिसमें माता करवा के पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। जिसको माता करवा ने अपने सतीत्व के बल पर छुड़वाया था। करवा मिट्टी का बर्तन होता है, जिसमें पानी भरकर चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है।
करवा माता की तस्वीरअन्य देवी-देवताओं की तुलना में माता करवा की तस्वीर बिल्कुल अलग है। यह तस्वीर भारतीय संस्कृति के जीवन की झलक को दर्शाती है। इस तस्वीर में सूर्य के साथ-साथ चंद्रदेव और तारे भी दर्शाए गए हैं। साथ ही करवा चौथ की कथा का अंश मिलता है।
दीपकसनातन धर्म में बिना दीपक के कोई भी पूजा नहीं होती, इसलिए करवा चौथ की पूजा में भी दीपक का महत्व है। दीपक से करवा माता और चंद्रमा की पूजा करते हैं और छलनी में दीपक को रखकर पति का चेहरा भी देखते हैं। दीपक की लौ हमारे जीवन की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है।
सींककरवा चौथ के व्रत में पूजा करते समय और कथा सुनने के दौरान सींक जरूर अपने पास रख लें। सींक माता करवा की शक्ति का प्रतिक माना जाता है। माता करवा ने सींक की मदद से चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था।
छलनीकरवा चौथ की पूजा में छलनी/छन्नी/छननी/चलनी से चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसका कारण वीरवती की कथा में सुनाया जाता है। भाई अपनी बहन के प्रेम में छलनी से नकली चंद्रमा प्रतिविंब बनाया था, जिससे उसके पति के जीवन पर संकट आ गया था। मान्यता है कि सुहागन महिला से कोई छल न कर पाए इसलिए छलनी का प्रयोग किया जाता है।
थालीकरवा चौथी की पूजा की सामग्रीस दीपक, फल, करवा, बताशा आदि चीजें रखने के लिए थाली का प्रयोग किया जाता है। इसमें दीपक जलाकर माता करवा की पूजा की जाती हैं और मां से आशीर्वाद मांगा जाता है।
हलवा-पूरीचांद को देखने के बाद मां गौरी की पूजा का विधान हैं। माता करवा के साथ मां गौरी की पूजा में पूरी और हलवा का भोग लगाया जाता है। फिर उसको सास या फिर घर की सबसे बड़ी महिला को दिया जाता है। इससे घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है।