कबीरदास जयंती विशेष: जब अपने ही गुरु को कबीर ने विनम्रता सहित पढ़ाया एक पाठ

By गुलनीत कौर | Published: June 28, 2018 10:37 AM2018-06-28T10:37:30+5:302018-06-28T10:37:30+5:30

इस कहानी में मनुष्य जीवन से जुड़े अन्धविश्वास की झलक है, जिसे कबीर दस जी ने सहजतापूर्वक दूर करने की कोशिश की है।

Kabir das jayanti: Unknown story of sant kabir das and his guru ji | कबीरदास जयंती विशेष: जब अपने ही गुरु को कबीर ने विनम्रता सहित पढ़ाया एक पाठ

कबीरदास जयंती विशेष: जब अपने ही गुरु को कबीर ने विनम्रता सहित पढ़ाया एक पाठ

संत कबीरदास जी के जन्म से जुड़ी कई कहानियां इतिहास में प्रचलित हैं। लेकिन कौन सी कहानी सच्ची है, यह कोई नहीं जान पाया है। यहां तक कि आजतक कोई यह नहीं बता पाया है कि कबीरदास जी हिन्दू थे या मुस्लिम। आज यानी 28 जून को देशभर में संत कबीरदास जयन्ती मनाई जा रही है। कबीरदास जी को इतिहास में हसे सभी संतों-कवियों में से महान संत का दर्जा दिया जाता है। उनके संबंध में कई सारी कहानियां प्रचलित हैं, आइए आपको भी एक कहानी सुनाते हैं जो कबीरदास जी और उनके गुरु से जुड़ी है। 

एक बार की बात है, कबीरदास जी अपने गुरु की शरण में बैठे हुए थे। तभी उनके गुरु ने कहा कि 'कबीरदास, पितर का समय चल रहा है, तुम ऐसा करो, कहीं जाओ और गाय का दूध निकालकर, भोजन का कुछ इंतजाम करके तैयारी करो, हम पितर को भोजन करवाएंगे'।

गुरु की आज्ञा पाकर कबीर दस जी निकल पड़े और दूध और अन्य भोजन सामग्री को एकत्रित करने में लग गए। कुछ सामग्री उन्होंने बटोरी ही थी कि रास्ते में उन्हें एक मारी हुई गाय दिख गई। वे उस मरी हुई गाय के सामने बैठ गए और उसे खाने के लिए चारा दाल दिया।

काफी देर तक कबीरदास जी वहीं बैठे रहे। जब समय अधिक बीत गया तो गुरु जी को चिंता हुई कि आखिर कबीर दस कहाँ रह गया। इतना समय हो चला है और वह अभी तक वापस नहीं लौटा है। इस बात से चिंतित गुरु जी कबीरदास को ढूंढने के लिए आश्रम से निकल दिए। 

कबीरदास को खोजते-खोजते अचानक उनकी नजर एक ऐसी दृश्य पर पड़ी जिसे देख वे बेहद क्रोधित हो उठे। उन्होंने देखा कि कबीरदास एक मरी हुई गाय के सामने बैठा है और गाय के सामने चारा भी डला हुआ है। गुरु जी आगे बढ़े और कबीरदास को क्रोधित आवाज में पुकारा और कहा कि 'मैं कबसे तुम्हारा आश्रम में इन्तजार कर रहा हूं। जिस भोजन सामग्री को हमें पितरों को खिलाना था, उन्हें तुमने इस मरी हुई गाय के सामने डाल दिता। इस मूर्खता की क्या वजह है?' 

कबीरदास जी ने विनम्रता से जवाब दिया कि 'अगर कुछ घंटे पहले मरी हुई गाय मेरा दिया यह भोजन ग्रहण नहीं कर सकती है, तो करोड़ों वर्ष पहले मरे पितरों तक हमारा भोजन कैसे पहुंचेगा? वे कैसे इस भोजन का सेवन करेंगे?'

कबीरदास जी की यह बात सुन गुरु जी कुछ पलों के लिए अचम्भित हो गए और फिर मुस्कुराने लगे। उन्हें कबीरदास जी की बात में वजन लगा। उन्होंने कबीरदास जी से कहा कि 'तुम सही कहते हो, हमें वही काम करने चाहिए जिनका कोई लाभ हो और जिन्हें करने का कोई तात्पर्य भी हो। देखा-देखी ब्रह्म में नहीं पड़ना चाहिए'। 

Web Title: Kabir das jayanti: Unknown story of sant kabir das and his guru ji

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