अंकिता देशकर
मुंबई के मूर्तिकार दत्ताद्री कोथूर ने गणेशोत्सव के जरिये पर्यावरण संवर्धन के नये अनूठे उपाय की खोज की है। इसके तहत वे लाल मिट्टी, जैविद खाद, प्राकृतिक रंग और बीजों का उपयोग कर गणेशमूर्ति बना रहे हैं। उससे मूर्ति विसर्जन के बाद पौधे उगते हैं। इन मूर्तियों को 'ट्री गणेशा' का नाम दिया गया है।
'ट्री गणेशा' की स्थापना से बड़े पैमाने पर पर्यावरण का संबर्धन करना आसान हो जाएगा। आरंभ में गणेशमूर्ति बनाने के लिए मिट्टी का उपयोग किया जाता था। मिट्टी की मूर्ति बनाने से पर्यावरण, जलस्रोत तथा जलचर प्राणियों को कोई खतरा नहीं होता था। बदली हुई परिस्थितियों में गणेश मूर्ति बनाने के लिए पीओपी का इस्तेमाल होने लगा। पीओपी की गणेशमूर्ति दिखने में आकर्षक होने से उसका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है लेकिन पीओपी सहज नहीं होता है।
नतीजतन उसका पर्यावरण, जलस्रोत और जलचर प्राणियों के लिए बड़ा खतरा होता है। इन स्थितियों को बदलने के लिए 'ट्री गणेशा' का उपाय असरदार साबित हो सकता है। लोकमत समाचार संवाददाता ने कथूर के साथ फोन पर बातचीत की। उन्होंने विस्तार से इसकी जानकारी दी। कोथूर ने कहा कि पर्यावरण संवर्धन समय की जरूरत है। इसलिए गणेशोत्सव नैसर्गिक पद्धति से मनाने की बड़ी इच्छा होती थी। इसी सोच से 'ट्री गणेशा' का विचार मन में उपजा और अब इसको प्रतिसाद मिल रहा हैष
पिछले वर्ष नागपुर से अनेक लोगों ने 'ट्री गणेशा' की मांग की थी। कोथूर ने 'ट्री गणेशा' बनाने की विधि भी बताई है। उनके अनुसार 'ट्री गणेशा' बनाने के लिए गुजरात की लाल मिट्टी का उपयोग किया जाता है। एक मूर्ति बनाने में पूरा एक दिन लग जाता है। इस मूर्ति को सीखने के लिए 10 दिन लगते हैं। मूर्ति बनाते समय मिट्टी में विविध प्रजातियों के 7-8 बीज डाले जाते हैं। इसके अलावा अन्य वस्तुएं भी प्रकृति से जुड़ी होती हैं।