कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के द्वितीया यानी यम द्वितीया (भाई दूज) को चित्रगुप्त जयंती भी मनाई जाती है। विशेषकर कायस्थ समाज चित्रगुप्त जयंती को हर्षोल्लास के साथ मनाता है। चित्रगुप्त को धर्मराज और मृत्यु के देवता यमराज के सहायक के तौर पर जाना जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा का मानस पुत्र भी कहा जाता है। भगवान चित्रगुप्त सभी प्राणियों के पाप और पुण्यकर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। आदमी का भाग्य लिखने का काम यही करते हैं।
पौराणिक कथानुसार, परम पिता भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से जब सृष्टि की कल्पना की तो उनके नाभि से कमल फूल निकला और उस पर आसीन पुरुष ब्रह्मा कहलाए क्योंकि ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के लिए उनका जन्म हुआ था।
भगवान ब्रह्मा ने समस्त प्राणियों, देवता-असुर, गंधर्व, अप्सरा और स्त्री-पुरूष बनाए। सृष्टि के क्रम में धर्मराज यमराज का भी जन्म हुआ। यमराज को धर्मराज इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि जीवों के कर्मों के अनुसार उन्हें सजा देने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाली गई।
चूंकि, काम की अधिकता थी इसलिए यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि इतनी बड़ी सृष्टि के प्राणियों की सजा का काम देखने के लिए एक सहायक भी चाहिए। यमराज ने साथ ही कहा कि सहायक धार्मिक, न्यायाधीश, बुद्धिमान, शीघ्र काम करने वाला, लेखन कार्य में दक्ष, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेदों का ज्ञाता होना चाहिए।
इस पर ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष तपस्या की और फिर अपने मानस से एक पुरुष को जन्म दिया। ब्रह्माजी से उत्पन्न इन पुरुष का नाम चित्रगुप्त पड़ा। चूंकि इनका जन्म ब्रह्मा जी के शरीर यानी काया से हुआ था इसलिए वह कायस्थ कहलाए।
भगवान चित्रगुप्त प्राणियों की कर्म किताब में उसका लेखा-जोखा लिखते हैं, जिससे जीवों को उनके कर्मों के हिसाब से न्याय और सजा दी जाती है।
भगवान चित्रगुप्त की पूजा धर्मराज यमराज के साथ की जाती है। चित्रगुप्त और यमराज की पूजा करते वक्त उनसे जाने आनजाने हुए पापकर्मों के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।