छठ 2018: सिर्फ द्रोपदी ने ही नहीं मां सीता ने भी रखा था छठी मां का व्रत, जानिए पौराणिक कथा और शुभ मुहूर्त

By मेघना वर्मा | Published: October 29, 2018 04:12 PM2018-10-29T16:12:50+5:302018-10-29T16:12:50+5:30

मान्यता है कि लंका पर जीत हासिल के बाद जब राम और सीता वापिस अयोध्य लौट रहे थे तब उन्होंने कार्तिक माह की षष्ठी को माता छठी की पूजा की थी।

chhath puja 2018: know the date,shubh-muhurat, nahay-khay, puja-vidhi and history in hindi | छठ 2018: सिर्फ द्रोपदी ने ही नहीं मां सीता ने भी रखा था छठी मां का व्रत, जानिए पौराणिक कथा और शुभ मुहूर्त

छठ 2018: सिर्फ द्रोपदी ने ही नहीं मां सीता ने भी रखा था छठी मां का व्रत, जानिए पौराणिक कथा और शुभ मुहूर्त

दिवाली के छह दिन बाद उत्तर भारत के एक और बड़े पर्व छठ को बड़े ही धूम-धाम और आस्था के साथ मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला ये त्योहार मूल रूप से झारखंड, नेपाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है जिसमें मां छठी के साथ सूर्य की उपासना की जाती है। इस साल छठ का ये पर्व 13 और 14 नवंबर को पड़ रहा है। 

दो से चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे का कठिन उपवास करती हैं। जिसकी शुरूआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन घर को हर तरह से शुद्ध करके शाकाहारी भोजन बनता है और उसे खाया जाता है। 

व्रत के दूसरे दिन यानी पंचमी तिथी को पूरे दिन उपवास रखा जाता है और शाम को खरना की रस्म होती है। पूजा के तीसरे दिन यानी षष्ठी को नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। शाम को एक बार फिर सूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना व बाकी सब्जियां और फल रख कर सूर्य देव और छठी माई को अर्घ्य दिया जाता है। दो बार अर्घ्य देने के बाद पीपल के पेड़ की पूजा के बाद अपना व्रत तोड़ते हैं। 

छठ पूजा का पहला दिन
11 नवंबर
नाह खाई
06:44 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:01 पर

लोहंडा और खारना दिवस के लिए पंचांग
12 नवंबर
06:44 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:01 पर

छठ पूजा का तीसरा दिन
13 नवंबर
06:45 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:01 पर

छठ पूजा का चौथा दिन
उषा अरघ्या का दिवस
14 नवंबर को होगा अंतिम दिन
उषा अरघ्या, पराना दिवस
06:45 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:00 बजे

राम-सीता ने की थी छठी माई की पूजा

मान्यता है कि लंका पर जीत हासिल के बाद जब राम और सीता वापिस अयोध्य लौट रहे थे तब उन्होंने कार्तिक माह की षष्ठी को माता छठी की पूजा की थी। इसमें उन्होंने सूर्य देव की पूजा की थी। तब से ही यह व्रत लोगों के बीच इतना प्रचलित है। 

कर्ण ने की थी सूर्य उपासना

एक और पौराणिक कथा के अनुसार छठ की सबसे पहली पूजा सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। सूर्य देव के प्रति उनकी आस्था आज भी लोगों के बीच चर्चित है। वे हमेशा कमर तक के जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया। सूर्य देव की कृपा के कारण ही उन्हें बहुत सम्मान मिला। तब से सभी सूर्य की उपासना करने लगे। 

द्रौपदी ने परिवार की समृद्धि के लिए रखा व्रत

हिन्दू मान्यताओं में एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार महाभारत काल में द्रौपदी ने भी छठी माई का व्रत रखा था। मान्यता है कि उन्होंने अपने परिवार की सुख और शांती के लिए यह व्रत रखा। अपने परिवार के लोगों की लंबी उम्र के लिए भी वह नियमित तौर पर सूर्य देव की पूजा करती थीं। 

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