Chandra Grahan July 2019: चंद्र ग्रहण को लेकर हिंदू मान्यताओं में कहा गया है कि इस दिन राहु नाम का असुर चंद्रमा को ग्रस लेता है। इसलिए चंद्र ग्रहण लगता है। इस साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 16 जुलाई और 17 जुलाई की रात लग रहा है। यह गुरू पूर्णिमा का भी दिन है। साथ ही ग्रहण के अगले दिन सावन का महीना भी शुरू हो रहा है। ऐसे में ये चंद्र ग्रहण कई मायनों में खास बन गया है।
भारत में चंद्र ग्रहण 16 जुलाई की मध्यरात्रि 1.31 बजे से शुरू होगा। ग्रहण का मध्य तीन बजे होगा और इसका मोक्ष 4.30 बजे होगा। इस खंड ग्रास चंद्र ग्रहण की पूर्ण अवधि दो घंटे और 59 मिनट की होगी। भारत में चंद्रमा 17 जुलाई की सुबह 5.25 बजे अस्त होगा। हिंदू मान्यताओं के अनुसार चंद्रग्रहण में 9 घंटे पहले से सूतक लग जाता है। इस लिहाज से चंद्र ग्रहण का सूतक 16 जुलाई को दिन में 4.30 बजे से शुरू हो जाएगा।
Lunar Eclipse July 2019: चंद्र ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार समुंद्र मंथन के बाद जब अमृत बाहर आया तो इसे लेकर देवताओं और असुरों में विवाद हो गया। असुर चाहते थे कि पूरा अमृत उन्हें मिल जाए जबकि देवता इसके खिलाफ थे। वैसे भी समुंद्र मंथन देव और असुर दोनों ने मिलकर किया था, ऐसे में देवता अपना पूरा हक अमृत पर नहीं जता सकते थे। साथ ही ये भी परेशानी थी कि असुरों को अगर अमृत का कुछ हिस्सा भी मिल गया तो वे अमर हो जाएंगे और फिर पुरी दुनिया को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।
Chandra Grahan: चंद्र ग्रहण के दिन राहु करता है चंद्रमा का ग्रास!
अमृत को लेकर जब विवाद गहराया तो भगवान विष्णु ने एक अपनी चतुराई से एक तरीका निकाला। भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और असुरों को अपने मोहजाल में फांसकर देवताओं से अलग बैठाया। इसके बाद वह खुद एक-एक कर हर किसी को अमृतपान कराने लगीं।
दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु देवताओं को तो अमृत का पान करा रहे थे लेकिन असुरों को उन्होंने अपनी माया से कोई और पेय पदार्थ पिलाना शुरू कर दिया। स्वभार्नु नाम का असुर ये बात समझ गया और वह रूप बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। मोहिनी अभी उले अमृत पिला ही रही थीं कि सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया। यह देख भगवान विष्णु ने वापस अपने रूप में आ गये और स्वभार्नु का सिर अपने सुदर्शन चक्र से उसके धड़ से अलग कर दिया। चूकी स्वभार्नु कुछ अमृत पी चुका था इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हो सकी।
कथा के अनुसार उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। चूकी सूर्य और चंद्र ने राहु को अमृत पीते हुए पहचाना था, इसलिए वह दोनों को अपना दुश्मन मानता है और ग्रहण के समय उन्हें ग्रस लेता है। इस वजह से हर बार चंद्र और सूर्य ग्रहण लगते हैं।
Lunar Eclipse: चंद्र देव का जन्म कैसे हुआ?
अग्नि पुराण में चंद्रदेव के जन्म की कथा के अनुसार ब्रह्माजी को जब सृष्टि के रचने का विचार आया तो उन्होंने पहले मानस पुत्रों की रचना की। इन्हीं मानस पुत्रो में से एक ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ था। इनसे दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम नाम के तीन पुत्र हुए। कहते हैं कि सोम चंद्रदेव का ही एक नाम है।