दो अध्यक्षों में महायुद्धः अमित शाह से तेज निकल रहे हैं राहुल गांधी, छह मोर्चों पर दी मात

By जनार्दन पाण्डेय | Published: August 28, 2018 07:24 AM2018-08-28T07:24:18+5:302018-08-28T12:43:49+5:30

राहुल गांधी को दिसंबर 2017 में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। देशी की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष होने के नाते वह सीधे तौर पर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के प्रतिद्वंदी हैं।

War between 2 presidents: Rahul Gandhi beats Amit Shah in 2019 LS poll preparations | दो अध्यक्षों में महायुद्धः अमित शाह से तेज निकल रहे हैं राहुल गांधी, छह मोर्चों पर दी मात

फाइल फोटो

Highlightsराहुल गांधी ने 2019 की रणनीति के लिए कांग्रेस कोर ग्रुप कमेटी का किया गठनकांग्रेस अध्यक्ष ने सबसे बड़ी समिति घोषणा पत्र यानी मैनिफ‌िस्टो तैयार करने के लिए चुनीप्रचार तंत्र के माहिर खिलाड़ियों को अभी से 2019 के प्रचार का जिम्मा सौंपा, 13 कांग्रेस सिपहसालारों की कमेटी गठितराज्यों में काग्रेस ने बिठाई अलग से टीम, बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत यूपी-गुजरात-बिहार दिया युवाओं को जिम्मामध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में चौकसी बढ़ाने में राहुल ने मारी बाजीकर्नाटक चुनाव में राहुल ने बीजेपी को दी पटखनी, तिलमिलाए अमित शाह ने की थी प्रेस कॉन्फ्रेंस

नई दिल्ली, 28 अगस्तः करीब एक दशक से बार-बार यह बात उठ रही थी कि कांग्रेस एक सुस्त संगठन है। हाल ही में लंदन में एक भाषण के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की दस सालों की सरकार के दौरान कांग्रेस में घमंड आ गया था। इसे ही दूसरी भाषा में कहें तो कांग्रेस में आलस आ गया था। चाहे लोकसभा चुनाव 2014 हारने के बाद कई मौकों पर यह कहना हो कि हम अपने अच्छे कामों के बारे में लोगों को बता ही नहीं पाए, या फिर गोवा-मणिपुर जैसे राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश न करना हो। चीर-प्रतिद्वंदी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी यह कहने में संकोच नहीं कर रही थी कि अभी तो कांग्रेस की पीसीसी की बैठक होगी, तब जाकर कहीं कोई सुध ले जाएगी।

अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी सबसे पहले इसी छवि को तोड़ने की ओर अग्रसर हैं। बीते छह-आठ महीनों में राहुल गांधी ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को उन्हीं के अंदाज में टक्कर दी है। यहां तक कि आलाकमान की ओर से लिए जाने वाले फैसलों में वह अमित शाह से आगे निकलते दिखाई दे रहे हैं। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से लिए गए ये छह फैसले, यह दिखाते हैं कि वह अमित शाह के दिमाग के आगे-आगे चल रहे हैं-

1. कांग्रेस कोर ग्रुप कमेटी का गठन

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2019 के बाबत अभी तक बस उत्तर प्रदेश में विधायकों-सांसदों की एक बैठक की है। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष महज कुछ घंटों के लिए बैठे थे। इसमें से भी बाहर यह सूचनाएं ज्यादा आईं कि टिकट किसके-किसके कटने हैं। इसी तरह से सूरजकुंड में सांसदों की हुई एक बैठक में भी राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संगठन (आरएसएस) की दखल और सांसदों के रिपार्ट कार्ड के लिए ज्यादा मशहूर हुई। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी की ओर से अब तक का सबसे बड़ा कदम संपर्क समर्थन ही दिखाई दे रहा है, जो कि बहुत सफल होता अभियान फिलहाल नहीं दे रहा। इस क्रम में अमित शाह ने कई राज्यों का दौरा जरूर किया है। लेकिन तीन बार महाराष्ट्र की यात्रा के बावजूद वह शिव सेना को मना नहीं पाए हैं।

जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए खासतौर पर समर्पित एक कोर ग्रुप कमेटी का गठन कर दिया है। राहुल गांधी ने बीते 25 अगस्त को पार्टी की सबसे अहम नौ सदस्यीय कोर ग्रुप कमेटी का गठन कर दिया, जो 2019 को ध्यान में रखकर फैसले लेने में सक्षम है। इस समिति से आया फैसला अंतिम और सर्वमान्य होगा। आगामी लोकसभा में रणनीति के स्तर पर कांग्रेस के फैसले बिना इस समिति के पास किए आगे नहीं बढ़ेंगे। इसमें उन्होंने गुलाम नबी आजाद, पी चिदंबरम, जयराम रमेश समेत अपने उन सार‌थ‌ियों को लगाया है, जो कांग्रेस की नस-नस से वाकिफ हैं।

असल में यह अमित शाह का दिया फॉर्मूला है। अमित शाह ने ही पार्टी अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद हर मोर्चे पर अहम लोगों की समिति ग‌ठित कर के उनसे जवाब मांगने का काम शुरू किया था। लेकिन अभी वे 2019 को लेकर ऐसी कोई समिति गठित नहीं कर पाए हैं।

2. राहुल ने घोषणा पत्र यानी मैनिफ‌िस्टो कमेटी को लगाया काम पर

कांग्रेस पहले ऐसी कोई अलग से कमेठी का गठन कर के अपना घोषणा पत्र यानी मैनिफिस्टो नहीं तैयार कराती ‌थी। एक संघीय समिति होती थी, जो आम तौर पर रणनीति पर काम करती थी, वही घोषणा पत्र की अंतिम कॉपी भी तैयार करती थी। लेकिन इस बार कांग्रेस में बदलाव आया है। राहुल गांधी ने एक मैनिफिस्टो कमेटी का गठन किया है। इसमें कांग्रेस के सबसे तेज-तर्रार 19 नेताओं को शामिल किया है। इसमें शशि थरूर, कुमारी शैलजा, मीनाक्षी नटराजन सरीखे नाम हैं। इस टीम में इस बात का खास खयाल रखा गया है कि देश के करीब-करीब सभी हिस्सों को कवर कर लिया जाए। यानी इस बार कांग्रेस का जो मैनिफिस्‍टो तैयार होगा वह समग्र भारत के लिए होगा। यह भी कह सकते हैं कि सभी क्षेत्रों के लिए इसमें खास तौर पर उस खास क्षेत्र में कांग्रेस कैसा काम चाहती है, यह भी दिखाई देगा।

बीजेपी की पिछली चुनाव नीति पर नजर डाले तो पाएंगे कि सरकार ही वायदों, घोषणाओं की आदि पर बनी थी। इस खास विषय पर काम करने के लिए कई चुनावी मैनेजमेंट कंपनियों की बहुत चर्चा हुई। बताया गया कि बीजेपी ने मैनिफिस्टो के पीछे अपने सबसे काबिल लोगों को लगा रखा था। राहुल गांधी को अंदेशा तो होगा ही कि इस बार भी अमित शाह कुछ ऐसा ही करेंगे, इसलिए शायद उन्होंने अमित शाह से पहले ही अपनी घोषणा पत्र समिति का गठन कर उसे काम पर लगा दिया।

3. राहुल ने पब्लिसिटी के लिए बनाई खास कमेटी

संचार माध्यमों के विस्तार के साथ इस वक्त चुनाव की पहली जरूरत प्रचार बन गए हैं। मसलन 1952 में जब पहली बार भारत में चुनाव लड़े गए तब पूरे देश में बस गिनती के कुछ ब्लैक एंड व्हाइट पोस्टर चस्पा किए थे। बड़े नेताओं की रैलियां हुई थीं। लेकिन रैली के बाद उस भाषण के किसी खास हिस्से की वीडियो एडिटिंग कर के उसे एक-एक आदमी के व्हाट्सएप पर नहीं भेजा गया था। टीवी के आने के बाद विज्ञापनों का दौर बढ़ा था। लेकिन इंटरनेट, सोशल मीडिया के आने के बाद चुनाव प्रचार की ऐसी होड़ मची है कि अपने अदने से काम को बताने के लिए भी राजनेताओं को सेल्फी पोस्ट करनी पड़ती है, ताकि समर्थकों से उसे रीट्वीट कराया जा सके।

इसी कारणवश 2019 के चुनावों के बारे में कहा गया कि ये चुनाव सोशल मीडिया पर लड़े गए। 2014 के चुनाव ने ही प्रशांत किशोर जैसा चुनाव प्रचार मैनजर भी ला खड़ा किया, जो बाकायदे अब एक जॉब अपारच्यूनिटी के तौर देखी जा रही है। युवा खुद को पॉलिटिकल मैनेजमेंट का गुरु बनते देखना चाह रहे हैं। इस दौर में जब चुनाव प्रचार का काम इतना आवश्यक हो गया है, उसमें राहुल गांधी ने बीजेपी से पहले अपनी समर्प‌ित पब्ल‌िसिटी कमेटी का गठन करके अमित शाह की प्रतिद्वंदता बढ़ा दी है। राहुल ने इस कमेटी में 13 लोगों को लगाया है। इसमें दिव्या स्पंदना से लेकर रणदीप सुरजेवाला भी शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि बीजेपी भी 2019 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अहम कार्यकारिणी की बैठक अगस्त महीने में ही करने जा रही थी। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के चलते टालनी पड़ी। अब सितंबर में यह मीटिंग होगी।

4. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में चौकसी बढ़ाने में राहुल ने मारी बाजी

बीते करीब चार सालों में कांग्रेस ने एक के बाद एक राज्यों के विधानसभा चुनावों में शिकस्त झेली है। बीजेपी की चौकस नजर ने आज भारत के 29 राज्यों में से 22 तक अपना विस्तार करने में सफल रही। इसके लिए काफी कुछ अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी की ओर से दिया गया नारा कांग्रेस हटाओ कारगर रहा। लेकिन अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनौती देते हुए राहुल गांधी ने राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस ली है। बल्कि इस मामले में वे अमित शाह से भी आगे निकलते दिखाई रहे हैं।

इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में विधानसभा चुनाव होने के आसार हैं। इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी का शासन है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह 15-15 सालों से जमे हैं। जबकि राजस्‍थान में वसुंधरा राजे सिंधिया जमी हैं। तीनों ही अपने-अपने राज्यों के इतने कद्दावर नेता हैं कि इनके सामने अमित शाह की छवि कमजोर है। करीब-करीब यह भी तय है कि बीजेपी के इन्हीं तीनों शासकों के चेहरे पर अगला चुनाव लड़ेगी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तीनों राज्यों में उस तरह से सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे हैं। जबकि पीएम मोदी ने परियोजनाओं के उद्घाटन आदि के मौके से राज्यों में दौरा और भाषण करते रहते हैं।

लेकिन राहुल गांधी ने इन तीनों राज्यों में चुनाव की दृष्टि से नियुक्तियां कीं और खुद आगे बढ़कर तीनों राज्यों का दौरा कर रहे हैं। एक तरफ 15 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आए दूसरी तरफ 16 और 17 मई को राहुल छत्तीसगढ़ में चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे।

राहुल गांधी ने अप्रैल माह में ही अपने करीबी कमलनाथ को मध्य प्रदेश बतौर अध्यक्ष भेज दिया था। अगर आप राहुल की ओर से गठित हालिया समितियों पर ऊपर नजर डालें तो पाएंगे कि राहुल का खास होने के बाद भी कमलनाथ को किसी केंद्रीय कमेटी में जगह नहीं मिली। राहुल ने यह जता दिया है कि उनके लिए मध्य प्रदेश का चुनाव कितना जरूरी है। ठीक इसी तरह छत्तीसगढ़ में पीएल पुनिया को प्रभारी के तौर भेजा गया। पुनिया को भी केंद्रीय जिम्मेदारियों से मुक्त रखा गया, ताकि वह पूरा ध्यान छत्तीसगढ़ पर लगाएं। ठीक इसी तरह राजस्‍‌थान के दिग्गज अशोक गहलोत को तो राहुल ने केंद्रीय टीम का हिस्सा बनाया, लेकिन राहुल के नजदीकी कहे जाने वाले सचिन पायलट तक को लोकसभा चुनाव संबंधित समितियों से दूर रखा गया ताकि उनका ध्यान राजस्‍थान के अलावा और कहीं ना भटके। ज्योतिरादित्य सिंधिया और भूपेश बघेल भी ऐसे ही नेता हैं, जो राहुल के बेहद करीबी बताए जाते हैं लेकिन फिलहाल राहुल ने इन्हें क्रमशः मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की कमान सौंप रखी है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी की ओर से ऐसा कोई बदलाव या कार्यभार सौंपे जाने जैसा कुछ सुनाई फिलहाल नहीं दे रहा।

5. बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत यूपी-गुजरात-बिहार में बिठाई कांग्रेस की टीम

आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात और उत्तर प्रदेश में कई फेरबदल किए हैं। उन्होंने आठ नए पार्टी सचिवों की नियुक्ति की है। राहुल ने रायबरेली सदर की विधायक अदिति सिंह को ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया है। जबकि गुजरात के ओबीसी नेता और राधानगर के विधायक अल्पेश ठाकुर को कांग्रेस का सचिव नियुक्त किया गया है। इसके साथ ही उन्हें बिहार का सह प्रभारी बनाया गया है। गौरतलब है कि अल्पेश ने विधानसभा चुनाव के दौरान गुजरात में बीजेपी को चुनौती देने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसके अलावा विधायक शकील अहमद खान को जम्मू, राजेश धमानी को उत्तराखंड, बीपी सिंह-सरत राउत-मोहम्मद जावेद पश्चिम बंगाल, चल्ला वमशी चंद रेड्डी-बीएम संदीप को महाराष्ट्र का सचिव नियुक्त किया गया है।

उल्लेखनीय है कि 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत यूपी और गुजरात बने थे। खुद पीएम मोदी ने यूपी की वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा था। जबकि पूरे में देश में उन्होंने गुजरात मॉडल का बखान किया था। यही नहीं देश के बड़े राज्य यूपी की 80 सीटों में बीजेपी अकेले 72 और बीजेपी की नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 73 सीटें जीतने में सफल रहा था। इस बार भी बीजेपी अभी से यूपी को साधने में लगी है। लेकिन राहुल गांधी ने पहले ही समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनाव लड़ने का मूड बनाए हुए हैं। इसके बाद उन्होंने यूपी में अपने खास को काम पर लगाया है।

6. कर्नाटक चुनाव में राहुल ने बीजेपी को दी पटखनी

कर्नाटक में संख्या बल ना होने के बाद सरकार बनाकर सदन में विश्वास मत से पहले इस्तीफा देने वाली बीएस येदियुरप्पा वाली सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की किरकिरी कराई ‌थी। अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से यह पहला मौका था जब कांग्रेस रणनीतिक स्तर पर भारी साबित हुई थी। साल के शुरुआत में चुनाव नतीजों के घोषणा होते ही आमतौर पर देर से जागने वाली कांग्रेस ने इस बार अपने दो दिग्गज गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को बीजेपी के पर्यवेक्षकों से पहले कनार्टक में एयरलिफ्ट कर दिया।

बीजेपी कर्नाटक के तीसरी पार्टी जनता दल सेक्यूलर से बातचीत आरंभ करती, इससे पहले ही कांग्रेस ने उसे बिना शर्त समर्थन देने की बात कर बहुमत महज 7 सीटें पिछड़ने वाली बीजेपी से पहले राजभवन जाकर सरकार बनाने का दावा पेश करा दिया। लेकिन इसके बाद भी राज्यपाल की ओर से बीजेपी को सरकार बनाने का मौका दिया गया। इसके बाद कांग्रेस ने अपने सभी 76 सांसदों को टूटने से बचा ले गई और बीजेपी को विश्वास मत से पहले ही हार माननी पड़ी। कांग्रेस ने इतनी तेजी और चौकसी सालों बाद दिखाई थी। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है जब कांग्रेस में बीजेपी की हार तय हो गई हो तो बीजेपी अध्यक्ष ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखकर पत्रकारों को करीब 100 पन्नों का दस्तावेज सौंपा था जिसमें कांग्रेस और जेडीएस की सरकार कितनी नापाक है, इसकी जानकारी थी।

My View: एक तरफ राहुल गांधी आगामी चुनावों को लेकर की जा रही संयुक्त विपक्ष की कल्पना के कथ‌ित तौर पर नेता यानी पीएम कैंडिडेट हैं। यानी उनकी सीधी टक्कर नरेंद्र मोदी से है तो दूसरी तरफ वह देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष हैं, यानी अमित शाह से सीधी टक्कर है। इन दोनों ही मोर्चों पर फिलहाल राहुल गांधी पूरे जोर-शोर से लगे हुए हैं और बीजेपी की जादूई जोड़ी को अकेले कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

Web Title: War between 2 presidents: Rahul Gandhi beats Amit Shah in 2019 LS poll preparations